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इश्क़ वो बेशक़ीमत शै है जिस से ख़ुदा किसी किसी को नवाज़ता है,इसके लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं। कहते हैं एक बार जो इश्क़ की गिरफ़्त में आया तो फिर कभी नहीं छूटता, भले ही सारा ज़माना मुख़ालिफ़ क्यों न हो जाए। कितने ही तूफ़ान आ कर गुज़र जाएँ मगर ये अपनी जगह अडिग रहता है । जिस रूह में इश्क़ उतर गया उसके लिए सारी दुनिया फ़ानी है । वो बस अपने माशूक़ की धुन में रहता है, उस पर दिन रात एक ही नाम का नश्शा तारी होता है। कोई भी उसके सामने हो,उसकी नज़र में एक ही चेहरा रहता है । उसके लिए अपने पराए का भेद ख़त्म हो जाता है । वो जाति, धर्म और देश-काल के बंधनों से आज़ाद हो जाता है। वो हर शै पर अपनी मोहबब्त लुटाता है ।
पढ़िए अलका मिश्रा की इश्क़ में सराबोर ग़ज़लें “बला है इश्क़” में….
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