Product Description
कवि श्री मनोज शुक्ल ‘मनुज’ के पुस्तक ’मन शिवाला हो गया’ के शिवमय मुखपृष्ठ का अवलोकन करते ही मन सहसा वहीं ठिठक जाता है I मन का शिवाला हो जाना बड़ी ही विदग्ध परिकल्पना है I शिवाला माने शिव जी का घर, जहाँ शिव जी वास करते हैं I जब कवि का मन ही शिवाला हो जाए तो उसकी नस नस में कितना अध्यात्म कितना शिवत्व रमा होगा, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है I यह परिकल्पना भारतीय आस्था के उस अधिकरण पर भी खडी है, जहाँ ईश्वर को अन्तर्यामी या घट-घटवासी कहा गया है I
मन शिवाला हो गया’ काव्य का आरंभ भगवान राम के उस स्वरुप की वंदना से हुआ है, जहाँ राम मोक्ष प्रदाता हैं I
मनुज जी स्वभाव से ओज के कवि हैं I यह ओज व्यवस्था के प्रति उनके अधिकाधिक विद्रोह को पूरी शिद्दत से बयाँ करता है I इसी विद्रोही भावना के कारण वे प्रायशः आवेशित भी होते हैं I मजे की बात यह है कि जब वे शिव या राम के सम्मुख होते हैं तब भी ‘देव रति’ स्थाई भाव के समक्ष भी उनका उत्साह या क्रोध खंडित नहीं होता ।
मनुज जी के इस काव्य में बहुत से विषय है, बहुत से भाव और विचार हैं और भाव अपना कलेवर भी इस तरह बदलते रहते है कि उन्हें किसी परिभाषा में बाँधा नहीं जा सकता I जिस तरह इन्द्रधनुष अपनी सप्तवर्णी आभा बिखेरता है, कुछ वैसा ही प्रभाव इस काव्य का है I मगर इसमें कवि के जो दो मुख्यस्वरुप उभर कर बड़ी शिद्दत से सामने आते है, उनमे एक ANGRY YOUNG MAN का है I समाज में अविचार, बेईमानी, भाई-भतीजावाद. मौकापरस्ती, अयोग्य का वर्चस्व और इस तरह के अनेक विमर्श योग्य सन्दर्भ कवि को सहन नहीं होते I वह विमर्श में पड़ना भी नहीं चाहता I इन सदर्भों पर वह सीधी चोट करता है –
कौतूहल ही कौतूहल हर ओर दिखा है /
मूल्यवान जो था कौड़ी के मोल बिका है //
क्रूर कुटिल अन्यायी का अब मान बहुत है /
चांडालों का धूर्तों का यशगान बहुत है //
चमक रहा है खूब अँधेरा सच कहता हूँ /
बिखर गया है मन का डेरा सच कहता हूँ //
Abhay Anand –
अद्भुत काव्य।पढ़कर मन शिवाला हो गया।