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प्रतिभा सुमन शर्मा की कविताएँ

प्रतिभा सुमन शर्मा की कविताएँ

उठती हूँ तो बोले, उठी क्यों?
बैठती हूँ तो बोले, बैठी क्यों?
भागती हूँ तो बोले, ऐ मत भागो!
लेटी हूँ तो बोले क्या दिन भर लेटी रहोगी?
कपड़े ठीक से पहनो
मुँह पर थोड़ा पावडर लगाया करो
माथे पर लाल रंग की ही बिंदी लगाया करो

एक- रोक-टोक

उठती हूँ तो बोले, उठी क्यों?
बैठती हूँ तो बोले, बैठी क्यों?
भागती हूँ तो बोले, ऐ मत भागो!
लेटी हूँ तो बोले क्या दिन भर लेटी रहोगी?
कपड़े ठीक से पहनो
मुँह पर थोड़ा पावडर लगाया करो
माथे पर लाल रंग की ही बिंदी लगाया करो
हाथ में हरी चूड़ी पहनो, सुहागन हो न?
पल्लू ज़रा सिर से सरक जाता है
पिन लगाया करो।
पैरों में पायल क्यों नहीं पहनी?
ब्लाउज़ का गला थोड़ा छोटा बनवाया करो।
बिछुवे तुमको चुभे चाहे, पर पहनो
सुहागन की निशानी है यह।
और यह मर्दों से इतनी
हँस-हँस के क्या बात करती हो?
चलते हुए थोड़ा औरतों की तरह चला करो
घुंघरू की पायल पहना करो
आते-जाते पता चले न
कि बहू है
इतनी देर लगा दी लोटा पार्टी में?
उन औरतों के ज़्यादा मुँह न लगा करो
और आते हुए थोड़ी
चूल्हे के लिए लकड़ी ही ले आती
बहन को बोलो थोड़ा नीची आवाज़ में बात करें
भाई अभी तो आके गया,
फिर इतनी जल्दी बहन भी?
बहन-बेटी को ससुराल में
थोड़ी तहज़ीब से रहना चाहिए
और यह क्या!
पैर फैला कर क्या बैठ गयीं?
पढ़ाई-लिखाई दिमाग में घुस गई है?
इसलिए बदज़ुबानी पर उतर आई हो?
लाई क्या हो ऐसा दहेज में?
बरातियों को खाना तक कम पड़ गया था!
नौकरी क्या हमारे लिए करती हो?
करती हो तो रौब नहीं सुनेंगे, छोड़ दो नौकरी
घर का काम क्या तुम्हारी माँ आके करेगी?
चार साल हो गये शादी को
बाँझ कहने लगे है लोग।
ऐसे कैसे? तुम औरत हो आदमी को रिझाओ
दूसरी औरत के पास मुँह क्यों मारेगा?
तुम ठंडी पड़ी रहती होगी बिस्तर में।
अरे काम क्या हम नहीं करते?
और इस बार तनख्वाह का
आधा पैसा माँ को दे आयी?
बेटी हुई चलो पहली बेटी लक्ष्मी की पेटी
बच्चे को पालना सीखो अब, बेटी है वह।
यह किस तरह से बड़ा कर रही हो बेटी को?
तहज़ीब तो सिखाई नहीं बेटी को!
स्कर्ट के नीचे स्लैक्स पहनाया करो
दी तो आख़िर बेटी ही न?
कौनसा चिराग़ दिया है ख़ानदान को??
और वैसे भी आजकल ज़माना बहुत ख़राब है
इसको थोड़ा दबा के रखा करो।
कुछ हो हा गया तो हम कहीं
मुँह दिखाने के काबिल न रहेंगे।
क्या लड़कों ने छेड़ दिया??
इसको ही क्यों छेड़ा ???
इसी में कुछ ऐब होंगे।
कपड़े ढंग के पहनाओ।
और यह जो इसका दिनभर आईने के सामने
नैन मटक्का चलता है?
दिन भर फ़ोन पर लगी रहती है
कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है।

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दो- स्तंभ

खड़ी हूँ युगों से
एक स्तंभ बनकर मैं
निच्छल अविरत!
न कोई आँधी डिगा पायी
न कोई तूफान हिला पाया
समक्ष साक्षी हूँ मैं
कितने ही घटित-अघटित किनारों की।
दीप स्तंभ भी कह सकते हो मुझे
प्रेणाओं की तेजोमय ज्योति भी
कर्ण की कुंती ने क्यूँ फेंका
कर्ण को पानी में, जानती हुँ
क्यों सरेआम नीलाम हुई
द्रौपदी? यह भी समक्ष देखा मैंने
अहिल्या क्यों पथराई?
और अनुसूया थी किस वासना की बलि?
सीता को अचेत होते भी देखा है
कैसे लिया माँ ने फिर कोख में?
यह भी।
कई बार मैं पत्थर हूँ और हूँ बेजान
यह सोचकर कइयों ने किया उपहास
कितनों ने तो उखाड़ फेंकने का यत्न भी किया
पर स्तंभ हूँ मैं
जड़ें बेहद रुंझी है मेरी।
इसलिए किसी का बस न चला अब तक
पर फिर कल झाँसी की बाई
एक और देखी निर्भया!
अपनी अस्मत के लिए लड़ मरी
अब न जाने क्या देखना बाकी है
कि खड़ी हूँ निशब्द, निस्तब्ध!
देखती हूँ कच्ची कलियों का संहार।
आप आओगे, जियोगे और जाओगे
पर मुझे इससे छुटकारा नहीं
खड़े रहना बनकर समक्ष साक्षी
यही नियति है मेरी
क्योंकि मैं हूँ एक स्तंभ
पर कलियुग में लोग मुझे
कुछ और कहते है।
बड़े अनोखे नाम से पुकारते हैं
लुगाई!
कोई कुछ भी कहें
पर मैं हूँ एक स्तंभ
निच्छल, अविरत, अमिट
एक स्तंभ।

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तीन- चुन्नी

मैं सड़क पार देख रही थी
एक औरत
भागी-भागी आ रही थी मेरी ओर
मैंने उसे रोका थामा और कहा
साँस तो लेलो!

वह बिना साँस लिए ही बोलने लगी
उसके सारे कपड़े चिथड़े थे
स्तन भी बाहर झाँक रहे थे
मैंने उसे अपनी चुन्नी ओढ़ाई
पूछा कहाँ से आई हो?

उसने कहा! किसी ओर युग से
किसी ओर युग से?
हाँ, मैं रानी हूँ महलों की
मुझे हँसी आयी

न-न हँसों नहीं सच है ये
फिर इतने युगों तक कपड़े क्यों नहीं सिले?
हर बार सिले पर
हर युग में वस्त्र हरण हुआ मेरा
सोचा फिर पूछा- कहीं द्रौपदी तो नहीं हो?
बोली, सही पहचाना तुमने।

पर अब इस युग में क्यों आई हो?
यह तो कलियुग है?
यह देखने कि अब
शायद सब ठीक हो
पर अब लोग नज़रों से ही
चीरहरण कर देते है यहाँ
कितनी ही नंगी नज़रें देखी हैं मैंने

सहमकर तुम्हारे पास आयी
तुमने ही मुझे अपनी चुन्नी ओढ़ायी
उसके बदन पर ओढ़ाई चुन्नी पर
मेरे पेन की स्याही का दागग़
और स्याह हो आया.था।

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रचनाकार परिचय

प्रतिभा सुमन शर्मा 'रजनीगंधा'

ईमेल : pratibha.suman1407@gmail.com

निवास : मुंबई (महाराष्ट्र)

जन्मतिथि- 14 जुलाई, 1971
जन्मस्थान- जलगाँव
शिक्षा- स्नातक (अंग्रेज़ी), एन० एस० डी० दिल्ली (अभिनय)
सम्प्रति- लेखिका, अभिनेत्री एवं निर्देशक
लेखन विधाएँ- कहानी एवं कविता
निवास- 1102, डी-विंग, ओमकार अलटा मोंटे, नियर वेस्टर्न एक्सप्रेस वे, मलाड पूर्व, मुंबई- 400097
मोबाइल- 8655410689