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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
ऋषिपाल धीमान की ग़ज़लों में स्मृतियों की अनुगूँज- के० पी० अनमोल

स्मृतियाँ जल से लकदक बादलों की तरह होती हैं, जो अक्सर मन के मरुथल पर बरस कर उसे तरबतर कर दिया करती हैं। जब ये स्मृतियों के बादल घिरकर छाते हैं तो बारिश से पहले की सुहानी पवन की भांति यादों की फ़िल्म-सी चल पड़ती है ज़ेहन में। इस फ़िल्म में वे तमाम ख़ूबसूरत दृश्य होते हैं, जो समय के प्रवाह में कहीं पीछे छूट गये हैं। धीमान जी की ग़ज़लों में भी ऐसे ही अनेक दृश्य देखे जा सकते हैं।

शिक्षा बनाम परीक्षा- संदीप तोमर

अभी हाल ही में एक अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर ने “दि हिन्दू” अखबार में एक लेख लिखा जिसे मेरे सहित जितने भी शिक्षाविदों, चिंतकों ने पढ़ा होगा उनकी नींद उड़ गयी होगी, ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएँ पहले आँखों के सामने से नहीं गुज़रीं लेकिन चूँकि उक्त घटना एक प्रोफेसर के साथ घटी, चुनांचे ध्यान जाना ज़्यादा अहम् है।

रिश्ते काग़ज़ के- डॉ० रजनीकांत

आज रिश्ते स्वार्थों पर आधारित होने लगे हैं। कुछ देकर वापसी चाहते हैं। सब लाभ-हानि देखते हैं। किसी के पास मिलने के लिए समय नहीं है। जब पूछा जाता है तो समय अभाव का रोना रोया जाता है। सभी आजकल व्यस्त हैं। व्यस्तता का ढोंग किया जाता है। दिलों की दूरियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। रिश्ते दोस्ती और संपर्क दूरियों ने खा लिए हैं।

दिनकर की बाल कविताओं का माधुर्य- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफरी

बाल काव्य विषयक दिनकर की दो पुस्तकें हैं- एक 'मिर्च का मज़ा' और दूसरी 'सूरज का ब्याह'। कहना न होगा कि अन्य साहित्य की तरह दिनकर बाल साहित्य भी प्रभावी ढंग से लिखते हैं।