Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
कहानी के बाहर नहीं होता शिल्प- प्रियदर्शन

तो ध्यान रखने की बातें यही दो हैं। कहानी ऐसी कसी हुई हो, ऐसी निर्विकल्पता, निरुपायता की ओर ले जाती हो कि लगे कि इसके अलावा नायक या लेखक के पास कोई चारा ही नहीं था। फिर उसमें दुख-सुख से ज्यादा वह विडंबना बोध हो, जिसमें हमारा आधुनिक समय सबसे ज़्यादा परिलक्षित-प्रतिबिंबित होता है।

जीवन के विविध पहलुओं पर गंभीरता से बात करती हैं ओमप्रकाश यती की ग़ज़लें- के० पी० अनमोल

वर्तमान परिदृश्य का अंकन अथवा अपने समकाल की यथार्थपरक अभिव्यक्ति हिंदी कविता की एक उल्लेखनीय प्रवृत्ति रही है। हिंदी कविता के हर दौर में तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं सन्दर्भ लगातार दर्ज किये जाते रहे हैं। समाज, उसका परिवेश, उसकी समस्याएँ, उसकी चिंताएँ, उसकी चुनौतियाँ आदि निरंतर कविता ने अपने केंद्र में रखे हैं। यही स्वभाव हिंदी ग़ज़ल का भी है।

राम सुकृपा बिलोकहिं जेही- गोवर्धन दास बिन्नाणी 'राजा बाबू'

'अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥'

स्त्री इतिहास की पहली पुस्तक की रचयिता : सावित्री सिन्हा- डॉ० शुभा श्रीवास्तव

सावित्री सिन्हा का ग्रंथ ‘मध्यकालीन हिंदी कवयित्रियाँ’ अपने आप में अनूठा ग्रंथ है। इसका प्रथम संस्करण, जो मुझे प्राप्त है, उसका प्रकाशन वर्ष 1953 ई० है। इसमें उल्लेखित कवयित्रियों के परिचय, तिथि को अन्य ग्रंथों से लिया गया है पर उन पर समालोचनात्मक दृष्टि सावित्री जी की निजी है। मध्यकालीन हिंदी कावयित्रियों पर पर्याप्त सामग्री व अनुशीलन सावित्री जी द्वारा किया गया है। मध्यकालीन हिंदी का पूरा इतिहास स्त्री काव्य की दृष्टि से यह पुस्तक प्रस्तुत करती है। सुमन राजे का इतिहास ग्रंथ भी इसी को आधार बनाकर रचा गया है।