Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
शुभदा मिश्र की कहानी 'युगान्तर'

जब यह रसूख़दार आदमी इतनी ज़मीन घेर रहा है, तो हम क्यों न घेरें। अब तक उन घरों में नई पीढ़ियाँ आ चुकी थीं। यह नई पीढ़ी तो और भी शिक्षित, संपन्न, अमीरी और दिखावे के मारी ही थी। कानून के प्रति सहज बेपरवाह। सो वह सब भी अधिक से अधिक जगह घेरने लगे, बाकायदा दीवाल बनाकर। उस रसूख़दार ने तो शायद पूरा व्यावसायिक कॉमप्लेक्स बनाने की ही योजना बना डाली थी। बाक़ी कब्ज़ा करने वालें में भी मानो होड़ लग गई।

सुधा गोयल की कहानी 'उम्र कैद'

"तुझे यहाँ नहीं रहने दूँगी माधवी! तू मेरे साथ चलेगी। तुझे अभी जमानत पर छुड़ाकर ले जाऊंगी। बता मुझे, क्या हुआ तेरे साथ? तुझे किसने फँसाया है? मैं जानती हूँ तुम मक्खी भी नहीं मार सकती फिर इंसान को कैसे मारेगी! ज़रूर कोई षड्यंत्र रचा गया है तेरे ख़िलाफ़। मुझे बता कौन है।"
भावावेश में नैना जाने क्या-क्या कह गई। माधवी दूर कहीं देखती हुई बोली- "नैना तू सुन सकेगी? जिस समय तू सारी बात जान लेगी, मेरी तरह मौन रह जाएगी।"

नीरजा हेमेन्द्र की कहानी 'पथ से गंतव्य तक'

जीवन का सायंकाल धूसर होता है। इसमें से चमकीले रंग क्या सचमुच समाप्त हो जाते हैं? आख़िर क्यों ऐसा होता है? यह प्रश्न मैं अक्सर स्वयं से पूछता। जबकि मैं वही, प्रियंका भी वही, मेरा बसाया-बनाया घर भी वही और मेरे दोनों बच्चे और मेरी आशाओं के अनुरूप ढला उनका जीवन। सबकुछ ठीक-ठीक ही था फिर मुझे क्यों लगता कि कुछ ऐसा है, जो मेरे अनुरूप नहीं है।

जयनंदन की कहानी 'हनकी बूढ़ी का कवच'

हनकी और उसके बेटे जतिन दयाल और विपिन दयाल पांडव की तरह महाभारत में कूद पड़े लेकिन उसके साथ न कोई कृष्ण था, न कोई घटोत्कच। दीनदयाल ने लोभ, लाभ, पद के प्रभाव और प्रपंच के सहारे अपने पूरे जातीय टोले को अपने पक्ष में कर लिया था।