Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
नीरजा हेमेन्द्र की कहानी 'अमलतास के फूल'

वाश वेसिन के शीशे में स्वयं को देखते हुए मैं सोचने लगी कि घर से बैंक और बैंक से घर की दिनचर्या में समय कब इतना आगे बढ़ गया? मुझे आभास तक न हुआ कि मैं उम्र की तिरपन सीढ़ियाँ पार कर चुकी हूँ। उफ्फ! तिरपन वर्ष? यह तो समय की एक बड़ी अवधि है।

कल्पना मनोरमा की कहानी 'एक नई शुरुआत'

किसी के द्वारा कहा गया एक भी शब्द इस ब्रह्माण्ड में अनसुना नहीं जाता। शब्द की अपनी सत्यता और प्रामाणिकता होती है। शब्द कभी मरते नहीं। वक़्त आने पर ठंडी-गरम तासीर ज़रूर दिखाते हैं।

मीना धर पाठक की कहानी 'लोभ'

कुसुम की दोनों बेटियाँ पढ़ रही थीं। एक दिन उसके न रहने पर कुछ मनचले उसकी झुग्गी में घुस कर बड़ी बेटी से ज़ोर ज़बरजस्ती पर उतर आए थे। वो तो अच्छा हुआ कि पड़ोस का राममोहन उस दिन मजदूरी पर नहीं गया था। शोर सुन कर उसी ने गँइती उठा कर उन लड़कों को दौड़ाया था। साँझ को घर लौटने पर पता चला तो वह काँप उठी थी।

प्रतिमा श्रीवास्तव की कहानी 'ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है'

देह और मन की याददाश्त होती है, उससे कभी भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता, अगर देवयानी उस देह-गंध के साथ जिये तो स्मृतियाँ उसे जीने नहीं देंगी, जबकि 'अब' जीना बहुत ज़रूरी था।