Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
मंजूश्री की कहानी - एक नई सुबह

मैं कमरे की खिड़की पर खड़ी सोचने लगी कि क्या सोचकर मैं इस अपरिचित जगह पर सबकुछ छोड़कर चली आयी हूँ! ये घर, ये लोग, ये रिश्ते सब तो अपरिचित हैं। बीच में कहीं भी किसी से जुड़ाव नहीं, लगाव नहीं। कहीं किसी भी रिश्ते में नहीं। कोई सपने नहीं, पुलक नहीं, उछाह नहीं, उस व्यक्ति के लिए भी नहीं, जिसके सहारे मैं सबकुछ छोड़कर चली आयी हूँ। झटका लगा ये क्या किया मैंने! क्या वाक़ई मेरा क़दम सही था?

प्रियंवद की कहानी- कैक्टस की नाव देह

मैं चुपचाप बैठा उसे देख रहा था। वह हमेशा यही सपना देखा करती थी। इस सपने से उसकी आँखें हमेशा चमकने लगती थीं। वह पूजा करती थी इसलिए उसके पूरा होने के यक़ीन से भी। लेकिन मुझे वनि की चमकती नहीं, गीली आँखें अच्छी लगती थीं। बिलकुल वैसी ही गीली आँखें, जैसे बरसात में खिड़की का शीशा गीला हो। वनि यह जानती थी। 

प्रेमगुप्ता मानी की कहानी- क़िस्सा बाँके बाबू के जाने का

नरेश की आँखें नम हो आई। उसने कमलादेवी को साँत्वना देने की कोशिश की पर दे नहीं पाया...लगा जैसे आगे बढ़े हाथ अचानक ही किसी भारी बोझ से दब गया हो...। पूरे घर का माहौल भी अब पहले से कहीं ज्यादा अजीब-सा हो गया था। गेट के बाहर खड़े लोग भी अब भीतर आ गए थे। 

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी -पापा की सज़ा

पापा ने ऐसा क्यों किया होगा ?
उनके मन में उस समय किस तरह के तूफ़ान उठ रहे होंगे? जिस औरत के साथ उन्होंने सैंतीस वर्ष लम्बा विवाहित जीवन बिताया; जिसे अपने से भी अधिक प्यार किया होगा; भला उसकी जान अपने ही हाथों से कैसे ली होगी? किन्तु सच यही था- मेरे पापा ने मेरी माँ की हत्या, उसका गला दबा कर, अपने ही हाथों से की थी।