Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
नरभक्षी आदिमानवों के बीच- रवि ऋषि

चारों ओर आकाश को लगभग छूते हुए-से पेड़। इससे पहले मैंने अपने जीवन में इतने ऊँचे और विशाल वृक्ष कभी नहीं देखे थे। पेड़ों के आसपास अद्भुत किस्मों की अत्यधिक घनी झाड़ियाँ आपस में इस तरह से गुत्थम-गुत्था थीं कि हवा को भी बीच में से निकलने में अपनी पूरी शक्ति झोंकनी पड़े। जैसे-जैसे हमारी कार उस बीहड़ वन में आगे बढ़ रही थी, रोमांच से हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे। मुझे बचपन में पढ़े हुए वेताल के चरित्र वाले सैकड़ों कॉमिक याद आ रहे थे।

जहाँ ख़ामोशी बोलती है : मणिकर्ण- डॉ० कविता विकास

कौन जाने यह उसका रोष रूप है या प्रेम रूप। कहाँ से इतनी ख़ूबसूरती समेटे हुए है यह धरती! आकाशलोक में केवल एक स्वर्ग है पर धरती की बंद परतों को झांकें तो अनेक स्वर्ग मिलेंगे। तनहाई को किसने देखा है? यह तो महसूसने की चीज़ है लेकिन मणिकर्ण आकर देखें, सशरीर तनहाई दिखाई देगी।

बोलती दीवारों की एकस्वरी दुनिया : वाशिंगटन डी.सी.- डॉ० आरती लोकेश

यह शहर तो वैसे भी है ही संग्रहालयों का साम्राज्य, ‘स्मिथसोनियन म्यूज़ियम्स’ के कुछ संग्रहालय हमारी प्रथम प्रधानता बनी। सभी तो नहीं, इनमें से हमने ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’, ‘हिर्शहॉर्न’, ‘स्मिथसोनियन कैसल’, ‘स्मिथसोनियन गार्डन्स’ चुने और साथ में ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’. ‘लिंकन मेमोरियल’ तथा ‘रिफ्लेक्टिंग पूल’ भी।

एकला चलो रे- पल्लवी त्रिवेदी

घुमक्कड़ी की तलब एक ऐसी तलब है कि एक यात्रा ख़त्म होती नहीं कि कैलेंडर में आगे के महीनों की छुट्टियों पर नज़र घूमने लगती है। एक ऐसी हार्मलेस तलब जो जिस आदमी को लग जाए उसका जीवन बदल दे। दस पैसे खर्च करके सौ पैसे की समृद्धि लाने वाली शै है घुमक्कड़ी। तो इस तलब के मारे हम अक्टूबर में नवम्बर के महीने को खोले बैठे थे सरकारी  कैलेंडर में और तीन छुट्टियाँ लगातार देखकर आँखें चमक उठीं। बस दो दिन की छुट्टी ले लूं तो पांच दिन में कहीं घूमने जाया जा सकता है।