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बोलती दीवारों की एकस्वरी दुनिया : वाशिंगटन डी.सी.- डॉ० आरती लोकेश

बोलती दीवारों की एकस्वरी दुनिया : वाशिंगटन डी.सी.- डॉ० आरती लोकेश

यह शहर तो वैसे भी है ही संग्रहालयों का साम्राज्य, ‘स्मिथसोनियन म्यूज़ियम्स’ के कुछ संग्रहालय हमारी प्रथम प्रधानता बनी। सभी तो नहीं, इनमें से हमने ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’, ‘हिर्शहॉर्न’, ‘स्मिथसोनियन कैसल’, ‘स्मिथसोनियन गार्डन्स’ चुने और साथ में ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’. ‘लिंकन मेमोरियल’ तथा ‘रिफ्लेक्टिंग पूल’ भी।

वाशिंगटन के साथ डीसी लगाना उतना ही आवश्यक है जितना किसी के नाम के साथ उसका सरनेम। इसका कारण यह है कि वाशिंगटन नाम का एक राज्य भी अमेरिका में है और यह वाशिंगटन डीसी, कोलम्बिया राज्य में है। आठ-नौ घंटे की ड्राइव की बोरियत से बचने के लिए हमने बीच में न्यूयॉर्क राज्य के ‘इथाका’ शहर से होकर जाने का निर्णय लिया। इथाका में हमने आई.वी. लीग में सम्मिलित विश्वविद्यालय ‘कोर्नेल यूनिवर्सिटी’ देखी तथा झीलों और झरनों के इस शहर में ‘फ़ॉल क्रीक गोर्ज’ से झरते ‘इथाका झरने’ का आनंद लिया।

पहले दिन कार में हिंदी फ़िल्मों के गाने सुनते-सुनाते हमने वाशिंगटन के एयर बीएनबी वाले गृह में प्रवेश किया। घर के मुख्य दरवाज़े की चाबी आँगन में लगे एक ताले के अंदर थी और उस ताले की चाबी प्रवेश द्वार के पीछे बनी खोह में और प्रवेश द्वार एक यूनिक कोड से खुलता था। सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम ने हमें गदगद कर दिया। मकान मालकिन स्वयं दूसरे तल पर रह रही थीं और जमीनी तल आगंतुकों के लिए था। यहाँ हमें कोई दिक्कत नहीं हुई। किसी भी वस्तु की आवश्यकता होने पर मालकिन उसे सीढ़ियों पर पहुँचा देती और हम वहाँ से उठा लेते। हमें वहाँ पहुँचाकर सूर्य देवता ने भी विदा ली और हमने भी अपना सामान जमाकर व सायंकालीन चहलकदमी की। सड़क पर कुछ दूर तक ही रोशनी थी। आगे की कॉलोनी अंधकार में डूबी थी। क्या यहाँ भी बिजली गुल हो जाती है? इस प्रश्न के साथ हम लौट आए और ए.सी. चलाकर बिजली का लाभ उठाना व शयन करना उचित जाना।

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सुबह उठकर हमने आस-पास की गलियों का मुआयना किया। आस-पास खिले फूलों के चित्र उतारे। गली-सड़कों के किनारे बने छोटे-छोटे स्थानीय चर्च भी हमें लुभाने में कामयाब रहे और हमारे कैमरे की रील का हिस्सा बन गए।
घरों के आँगन बालकों के क्रीड़ा क्षेत्र होंगे। आँगन में रखी मेजों पर शतरंज व अन्य खेलों के छापे बने थे। पेड़ों की घनी छाया सड़क के दोनों ओर व बीच में भी थी। कुछ गलियाँ टापने के बाद अग्निशमन वाहन की रिपेयर वर्कशॉप भी थी, जहाँ एक वाहन का कार्य होते हुए देख रोमांच हो आया।

हम ओल्ड मार्केट हाऊस स्क्वैयर ‘हिस्टोरिक एनाकोस्टिया’ पर खड़े थे। कई दुकानों पर अश्वेत अपनी पूरी मस्ती से उपस्थित थे, जिनका डील-डौल देख हम छोटी कद-काठी वालों को डर उपजना स्वाभाविक था। निवास के आस-पास का जायज़ा लेकर हल्के नाश्ते के बाद हम शहर घूमने निकल पड़े।
801 नम्बर बिल्डिंग की भूमिगत पार्किंग में कार को सुरक्षित खड़ा कर हम भूमि तल पर निकले तो वरांडे की चीन-जापान जैसी पुरातन रीति की साज-सज्जा ने मोहित कर दिया। नमूना देख, हमें यकीन हो गया कि वाशिंगटन डीसी हमें बहुत पसंद आने वाला है।

यह शहर तो वैसे भी है ही संग्रहालयों का साम्राज्य, ‘स्मिथसोनियन म्यूज़ियम्स’ के कुछ संग्रहालय हमारी प्रथम प्रधानता बनी। सभी तो नहीं, इनमें से हमने ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’, ‘हिर्शहॉर्न’, ‘स्मिथसोनियन कैसल’, ‘स्मिथसोनियन गार्डन्स’ चुने और साथ में ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’. ‘लिंकन मेमोरियल’ तथा ‘रिफ्लेक्टिंग पूल’ भी।

ओल्ड पोस्ट ऑफ़िस की इमारत के पास से गुज़रते हुए उसकी तसवीर उतारने के मोह को संवरण न कर पाए। सोचा कि जब यहाँ डाकघर इतना आकर्षक हो सकता है तो और दर्शनीय स्थलों के तो कहने ही क्या!

शुरुआत की, ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम’ प्राकृतिक इतिहास के संग्रहालय से। इस म्यूज़ियम का आकार 18 फ़ुटबॉल के मैदानों के जितना है। यह दुनिया का सबसे प्रसिद्ध व सबसे बड़ा प्रकृति-विज्ञान ऐतिहासिक संग्रहालय है जो प्राकृतिक संसार और उसमें मानव का स्थान दर्शाता है। हमारे ग्रह पृथ्वी के, आग का गोला होने के समय से करोड़ों वर्षों के परिवर्तन और उस पर जीवन का प्रारंभ प्रदर्शनी, गतिविधि, प्राक्वस्तुओं तथा अन्वेषण द्वारा इसमें दिखाया गया है। इसके सबसे अधिक देखे जाने वाले सेक्टर हैं- मानव का उद्गम, प्राकृतिक जीवाश्म, स्तनपायी जीव, समुद्री जीवन, मिस्र की ममी, कीटघर, तितली गृह आदि।

धरती के जन्म से वर्तमान रूप में आने तक की जानकारी हो, प्राचीन युग की या जैविका आहार ज़ंजीर की, सब कुछ इतना जीवंत था कि बिना लेखपत्र तख्ती के भी समझ आ जाए, या कि यों कहो कि अनपढ़ भी जान जाए।

यहाँ से पीछे की तरफ़ बाहर निकले तो सामने धूप में छाँह देता बड़ा-सा ‘स्मिथसोनियन गार्डन’ था जिसके उस पार प्रोफ़ेसर जोसफ़ हेनरी की मूर्ति लगी थी जो कि स्मिथसोनी शिक्षणालय के प्रथम सचिव के रूप में जाने जाते हैं। उसके पार्श्व में ‘स्मिथसोनियन कैसल’ था। यह किला आजकल बंद था। कुछ देर ‘स्मिथसोनियन गार्डन्स’ में सुस्ताने का काम भी किया। रंग-बिरंगे फूल-पौधों ने जुलाई के महीने की गर्म धूप में ठंडक का काम किया। छाया में हवा सुहानी लग रही थी और धूप में गर्म। कुछ देर में पैरों को आराम पड़ा तो आगे का रुख किया।

 

 

किले के ठीक पीछे ही ‘नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ एशियन आर्ट’, ‘नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ अफ़्रीकन आर्ट’ तथा ‘स्मिथसोनियन आर्ट एंड इंडस्ट्रीस बिल्डिंग’ मिलीं। इसके बाद ‘हिर्शहॉर्न म्यूज़ियम’ था।

स्मिथसोनियन के वाशिंगटन में 20 संग्रहालय व राष्ट्रीय पशुघर हैं। हम बहुत-से देशों में जा चुके हैं परंतु कभी भी किसी भी संग्रहालय को निशुल्क देखा हो, ऐसा याद नहीं। यहाँ स्मिथसोनियन के इन सभी संग्रहालयों व प्रदर्शनियों को एकत्र रूप से स्मिथसोनियन संस्थान (इंस्टिट्यूशन) कहा जा जाता है। सच में, यह शिक्षा का अद्भुत संस्थान ही तो है। ये सभी संग्रहालय संसार के सबसे दिलचस्प घटकों को जानने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
हमें यहाँ से आगे ‘एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम’ में जाना था। अत: ‘हिर्शहॉर्न’ के गोल चबूतरे पर कुछ क्षण व्यतीत कर आगे चले। दरअसल इस स्थान पर संग्रहालयों और प्रदर्शनियों की भरमार है तो आपको अपनी पसंद के अनुसार दर्शनीय स्थलों की सूची पहले से ही बनाकर चलना चाहिए। नहीं तो, एक के बाद एक लाइन से खड़े सभी संग्रहालय देखते तो सप्ताह निकल जाएगा। सभी को दो दिन में देखना तो संभव नहीं था अत: कुछ को चित्रादि निकालकर ही धन्य किया और अगले के लिए निकल लिए।

‘हिर्शहॉर्न’ की ठंडक का लाभ उठाकर आगे चले और इन दो भालेनुमा आकृतियों ने हमें रोक लिया। दूर से देखने पर कारीगरी किए हुए पेड़ के तने जैसे प्रतीत होते इन दोनों को पास से देखने पर जाना कि ये लोहे से निर्मित हैं। घास के बीच उसकी पहरेदारी करती ये आकृतियाँ भी हमारे कैमरे को भा गईं।
‘एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम’ में निशुल्क प्रवेश मिलता है तो हमने उसे देखने का सोचा किंतु पहुँचकर पता चला कि पहले बुकिंग करानी होती है, वर्ना प्रवेश नहीं मिलता। कुछ देर भीड़ छँटने और प्रवेश मिलने के इंतज़ार में बिताए परंतु अंतत: आनन-फानन में वहीं खड़े-खड़े मोबाइल एप के द्वारा अगले दिन की बुकिंग करा ही ली। वहाँ आने वालों का रेला इतना अधिक था कि अगले दिन भी बमुश्किल शाम 4 बजे की ही बुकिंग मिल सकी। चलो, दुर्घटना से देर भली। अगर यह देखने को न मिलता तो बच्चे बहुत मायूस हो जाते।

फूड ट्रक्स से खाना खाना अमेरिकी शौक है। सुना बहुत था उसके बारे में, आज हमने भी आजमा लिया। मैक्सीकन फूड टाको और चावल खरीदे और पार्क की बेंच पर बैठकर चाव से खाए। इसके पश्चात ‘नेशनल मॉल’ के लिए आगे बढ़े। ‘मॉल’…, यह शब्द पश्चिमी देशों से आया है, जिसका अर्थ होता है एक ही स्थान पर एक बहुत बड़ा बहुबाज़ार, जहाँ सुई से लेकर हवाईजहाज़ तक मिल जाएँ। ऐसा लगा था कि यह कोई ऐसी ही मॉल होगी परंतु हैरानी हुई कि वाशिंगटन के राष्ट्रीय उद्यान ‘नेशनल पार्क’ को नेशनल मॉल कहा जाता है। कारण यह है कि इस स्थान पर भूत, वर्तमान व भविष्य एक साथ मौजूद हैं। स्मारकों और ऐतिहासिक स्थल जहाँ पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं वहीं ‘स्वाथ ऑफ़ लैंड’ भविष्य की कहानी कहता है। नेशनल मॉल पार्क वाशिंगटन डीसी के बीचों-बीच पड़ता है। दो मील फैले इस बाग के बीच में खड़ी है ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’ की लम्बी इमारत और पूर्व में ‘लिंकन मेमोरियल’ तथा पश्चिम में ‘यू.एस. कैपिटॉल’। ‘लिंकन मेमोरियल’ और ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’ के बीच में है कृत्रिम तलैया जिसे ‘रिफ्लेक्टिंग पूल’ कहा जाता है।
कार पार्किंग की समस्या के कारण अकसर कार बहुत दूर एक जगह खड़ी कर देनी होती है और पैदल-पैदल ही ये सारे स्थल देखने होते हैं। अत: कुछ भी देखने जाते समय इस नेशनल पार्क से होकर गुज़रे बिना जाना संभव नहीं है। यह इन अर्थों में भी ऐतिहासिक है कि वर्तमान में हो रही सभी क्रांतियों, आंदोलनों और धरनों की जमीं यहीं बनती है और सभी प्रकार के उत्सवों को भूमि भी यह पार्क प्रदान करता है। उल्लास हो या आक्रोश, यह पार्क सबका साक्षी बनता है। इस कारण भी इस पार्क का महत्त्व पत्थरों और ईंटों से निर्मित भवनाकृतियों से कहीं अधिक है। अब अगली दिशा थी ‘वाशिंगटन मोनुमेंट’, ‘लिंकन मेमोरियल’ तथा ‘रिफ्लेक्टिंग पूल’ की।

हमने नेशनल मॉल नामक पार्क में प्रवेश किया तो धूप सिर से उतरकर कमर पर आ गई थी और हम भी कमर कसकर पैदल चलने के लिए तैयार थे। मानसिक तैयारी और बात है और शारीरिक क्षमता दूसरी बात। गूगल पर पता करने पर 15-16 मिनट का रास्ता हमारे थके हुए पैरों को बहुत दूर लग रहा था। कुछ-कुछ बादलों ने भी रक्षा के लिए साथ निभाया तो हमने बढ़ते कदम को थमने न दिया। कहते भी हैं कि ‘नेशनल मोनुमेंट’ को देखने पूर्वी दिशा से आना चाहिए। हमने तुक्के से यही किया था। यह इतना प्रसिद्ध है कि हर कोण से इसकी तसवीर उतारी गई। इसके आगे, नीचे, दाएँ-बाएँ; हर ओर खड़े होकर इसे अपने पीछे के फ्रेम में बसाकर भरपूर तसवीरें लीं। कारण कुछ यह भी रहा कि नियागरा में बैठे-बैठे भी हम इसकी अपनी योजनानुरूप तिथि की टिकटें न पा सके थे। अत: इसे बाहर से ही देखने का पूरा सुख उठा लेना चाहते थे। इसी स्थान से उत्तरी दिशा में ‘व्हाइट हाऊस’ भी दिख रहा था।
इसकी अनोखी तसवीर लिंकन मेमोरियल तथा विश्वयुद्ध दो मेमोरियल के मध्य बने ‘रिफ़्लेक्टिंग पूल’ के उस ओर से उतारी जा सकी।

नेशनल मोनुमेंट और लिंकन मेमोरियल के मध्य ही एक और ऐतिहासिक निर्मिति है- ‘नेशनल वर्ड वार 2 मेमोरियल’। यह उन डेढ़ करोड़ सेनानियों के सम्मान में बना है जिहोंने अमेरिका की हथियारबंद सेना में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान युद्धक्षेत्र में कार्य किया। ऐसे चार लाख सैनिकों की याद में भी, जिन्होंने अमेरिका के लिए अपने प्राण गँवाए, यह स्मारक बनाया गया है। यह ऐसे खुले स्थान के रूप में है, जहाँ चौबीसों घंटे इसको देखा व समझा जा सकता है। वैसे पार्क का भ्रमण समय प्रात: नौ बजे से सायं दस बजे तक है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका की विजय का प्रतीक यह गोलाकार स्थल बीच में एक फव्वारे से मनभावन बन पड़ा है। फव्वारे के चारों और ग्रेनाइट पत्थर के छप्पन खंभे हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका के अड़तालीस राज्यों, सात संघीय क्षेत्र तथा एक कोलम्बिया जिले की एकता के सूचक हैं। ये दो अर्ध गोलों के रूप में स्थापित हैं। इसमें आमने-सामने बने हुए तेंतालीस फुट ऊँचे दो द्वार भी बने हैं जो उत्तर दिशा में एटलांटिक और दक्षिण दिशा में प्रशांत पर विजय के द्योतक हैं। दोनों तरफ़ एक-एक दीवार भी है जिस पर काँसे से उकेरे गए युद्ध संबंधी चित्र बने हैं। दाहिनी दीवार की चित्रावली के अंत में अमेरिका व रूसी सेना के जर्मनी में हाथ मिलाने की तसवीर भी अंकित है। इसके थोड़ा-सा आगे ‘फ़्रीडम वॉल’ है जिस पर 4048 सोने के सितारे टँके हुए हैं। हर एक सितारा 100 बहादुर जवानों का प्रतिनिधित्व करता है, जिन्होंने देश के लिए जान कुर्बान की। इसके आगे एक तख्ती पर लिखा है- ‘आज़ादी की कीमत’।

पोटोमेक नदी के किनारे बना हुआ लिंकन मेमोरियल, नेशनल मॉल के पश्चिमी सिरे पर स्थित है। इसमें बने ‘कोलोराडो’ संगमरमर के 36 विशाल खंभे महान राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की मृत्यु (वर्ष 1865) के समय के संयुक्त राष्ट्र के राज्यों की गणना पर आधारित हैं। यह पूरा स्मारक लगभग 200 फुट लम्बा, 120 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है। इस स्मारक का नक्शा हेनरी बेकन ने तैयार किया था। इसकी स्थापत्य कला यूनानी मंदिरों से मेल खाती है, विशेषकर एथेंस के पार्थेनन मंदिर से। इस स्मारक की संकल्पना को मूर्त रूप में लाने, इसका निर्माण करने और आम जनता के लिए खोलने में लगभग दो दशकों का समय व्यतीत हो गया।

लगभग 20 फुट ऊँची सोलहवें राष्ट्रपति लिंकन की सिंहासनस्थ प्रतिमा तक पहुँचने के लिए बहुत-सी सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। 175 टन संगमरमर पर लिंकन ऐसी मुद्रा में विराजे हैं जैसे वे अपने देश की एकता को अखण्ड बनाए रखने की विचार-भंगिमा में हों। इस प्रतिमा का आलेख (डिज़ाइन) एक फ्रांसीसी मूर्ति-आलेखकार डैनियल चेस्टर ने बनाया है। मूर्ति के बाएँ, दीवार पर लिंकन का महान वक्तव्य खुदा हुआ है जो उन्होंने गेट्टीस्बर्ग में दिया था। यह आज भी अमेरिकावासियों को वैसे ही प्रेरणा देता है जैसी कि कभी सन् 1865 में दी थी। अन्य दीवारों पर बनी चित्रकारी उनके जीवन के आदर्शों और घटनाओं को वर्णित करती है।

अँधेरा होने से पहले ही हम एक और मनोरम स्थल ‘व्हार्फ़ डिस्ट्रिक्ट’ में पहुँचे। यह पानी के किनारे एक आलीशान जगह थी। पास में बह रही ‘एनाकोशिया नदी’ के ‘पोटोमेक नदी’ में मिलने से पहले एक नहर ‘वाशिंगटन चैनल’ के किनारे यह मनोहारी स्थान बसाया गया है। इसे मानवनिर्मित जलसमक्ष शहर भी कहा जा सकता है। एक मील दूर तक बसा हुआ यह एक मिली-जुली प्रकृति का स्थल है, जहाँ सबके लिए स्थान है। ‘व्हार्फ़’ भोजनालयों, दुकानों, आवासों, होटलों तथा व्यापारिक केंद्रों से भरा-पूरा है। यहाँ से नेशनल मोनुमेंट के दर्शन भी सुलभ हो रहे थे।
सुबह से शाम तक के नज़ारे में आसमानी भिन्नता थी। गीत-संगीत के मंच, रोशनी की झिलमिलाहटें, पाँच सितारा होटल, यॉट के बंदरगाह, धुन पर थिरकने का प्रबंध, सब कुछ चित्रात्मकता से परिपूर्ण था। वृद्ध से लेकर बालक तक बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे थे। मन बहलाने के सारे साधन यहाँ मौजूद थे।
बीच-बीच में पानी के अंदर बढ़े हुए चबूतरे बहुत सुंदर झाँकी उपस्थित कर रहे थे। संध्या समय मौसम भी खुशगवार हो गया था। वर्ष का अधिकतर समय शीत में गुज़ारने वाले यहाँ के रहवासी इस समय ऐसे ही बाहर प्रकट हो जाते हैं जैसे शीतनिद्रा से उठे हुए खगवृंद।

जलराशि में डुबकी लगाता ताँबें का लोटा और आसमान पर गेरू उड़ाता; सूर्यास्त का अप्रतिम दृश्य भी यहाँ देखने को मिला। अपने घर वापस लौटता सूरज सभी को थकान उतार अपने-अपने घर जाने का संदेश दे रहा था।
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अगले दिन ‘यू.एस. कैपिटॉल बिल्डिंग’ तथा ‘लायब्रेरी ऑफ़ काँग्रेस’ देखकर ‘एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम’ के लिए पूर्व निर्धारित था। कार एक निश्चित पार्किंग लॉट में खड़ी कर हम सबसे पहले यू.एस. कैपिटॉल की ओर बढ़े कि रास्ते में लहराते डिज़ाइन वाले म्यूज़ियम ने हमें रोक लिया। यह ‘अमेरिकन इंडियन म्यूज़ियम’ था। इसे केवल बाहर से ही देखा गया। लगता था कि घूम-फिरकर हम उसी इलाके में आ रहे हैं। इसी कारण यहाँ तीन दिन बहुत थे। कल जिसकी दूर से झलक देखी थी, आज पास से निहारने का अवसर था। यू.एस. कैपिटॉल सबसे प्रतिष्ठित भवन है। इसके लिए पहले से ही समय आरक्षित कराना होता है, जो हमने पहले ही करा रखा था। इसकी विशालता किसी भी कैमरे के लैंस में समाने से इंकार कर देती है। बहुत दूर से लेने पर ही ऐसा चित्र निकालना संभव हो सका है।

देश की प्रबंधकारिणी समिति ‘सीनेट’ की सभाएँ यहीं होती हैं और राष्ट्रहित के लिए नीतियाँ, विकास के लिए अधिवेशन और देश के कानून निर्माण की प्रक्रियाएँ यहीं सम्पन्न होती हैं। यह भी नेशनल मॉल का ही एक अंग है। इसे अट्ठासी फुट ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है, इसी कारण यह दूर तक दिखाई देती है। इसका फैलाव डेढ़ करोड़ वर्ग फुट क्षेत्र में है। इसकी विशालता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इसमें लगभग 600 कमरे और मीलों लम्बे गलियारे हैं। बीच में बना ऊपरी गुंबद महाकर्षक है। गुंबद की चोटी पर आज़ादी की मूरत ‘स्टेच्यू ऑफ़ फ़्रीडम’ विराजी हुई है। वह अकेली ही 288 फुट लम्बी है। इसके डिज़ाइन पर राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने स्वीकृति की मुहर लगाई थी। इसका स्थापत्य बहुत प्रभावित करता है और दुनियाभर के आर्किटेक्ट्स को प्रेरित करता है। दो सदियों से इसमें संसद की बैठकें होती आ रही हैं।
इसमें काँग्रेस के मुख्य कार्यालय के अतिरिक्त, विधान भवन, पुस्तकालय-वाचनालय आदि भी हैं। इसमें अमेरिकी कला और इतिहास का संग्रहालय भी है। गणतंत्र के इस प्रतीक को देखने प्रतिवर्ष करोड़ों सैलानी वाशिंगटन डीसी आते हैं। नवशास्त्रीय स्थापत्य का बेहतरीन नमूना होने के साथ-साथ यह सौंदर्य को क्रियाशीलता से जोड़ता है।

इसकी समूची इमारत में पाँच स्तर हैं। पहले तल पर कमेटी के कक्ष और काँग्रेस के दफ़्तर हैं। इस तल पर ‘हॉल ऑफ़ कॉलम’, ‘ब्रुमिडि कॉरीडोर’, ‘ओल्ड सुप्रीम कोर्ट चैम्बर’ तथा रोटुंडा के नीचे बना, बड़े से झाड़फानूस से सुसज्जित ‘क्रिप्ट’ में आम जनता जा सकती है। एक-एक जगह भव्यता को लिए हुए है। इसकी विराट बनावट व सज्जा से कौन अनुमान लगा सकता है कि यह इमारत क्रांतिकारियों द्वारा कई बार आगजनी का शिकार हुई है।

दूसरे तल पर प्रतिनिधि भवन, संसद भवन आदि हैं पर यहाँ भी जनता के लिए ‘रोटुंडा’ अर्धचंद्राकार पूर्व संसद भवन तथा ‘नेशनल स्टेच्युरी हॉल’ है। इन जगहों पर ले जाने के लिए एक ऑडियो गाइड दिया जाता है और छोटे-छोटे समूहों में ही अंदर जाने दिया जाता है। सबसे पहले एक थियेटर में कैपिटॉल का इतिहास व निर्माण प्रक्रिया पर चलचित्र भी दिखाया जाता है। आपके साथ चल रहा गाइड मूर्तियों वाले गोल कमरे यानि ‘स्टेच्युरी हॉल’ में प्रत्येक मूर्ति के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। ये मूर्तियाँ अमेरिका के कभी न भुलाने वाले महान नागरिकों अथवा प्रशासकों की हैं।

तीसरे तल पर गलियारों में प्रवेश दिया जाता है जहाँ की काँच की खिड़कियों से सीनेट को कार्य करते हुए देखा जा सकता है।
अन्य अनेक भवनों की कारीगरी छत-दीवारें सब देखते ही बनता है। अन्य दो तल दफ़्तर, मशीनें तथा अन्य सहायक सामग्री के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। इस अनोखी इमारत में अनेक कैफ़ेटेरिया व रेस्टोरेंट हैं। इनमें से एक की शरण में हमने भी भूख-प्यास मिटाई। यहाँ एक बात यह देखी कि आपको केवल कप हासिल करने के पैसे देने होते हैं फिर उसी कप में आप वहीं बैठे हुए चाहे 4 बार कॉपी पी लो। अपने देश में ऐसी उदारता संभव नहीं है।

इस स्थान से ‘लायब्रेरी ऑफ़ काँग्रेस’ जाने के लिए सड़क मार्ग तथा अंदर ही अंदर भूमिगत पथ दोनों ही बने हुए हैं। हमने भूमिगत गलियारे को चुना क्योंकि इससे हम धूप से बचकर सीधा वहाँ पहुँच सकते हैं। इसका केवल एक ही नुकसान होता है कि बाहर से इमारत का चित्र नहीं मिलता है। पुस्तकालय का यह चित्र बाहर निकलने के बाद लिया गया।
पुस्तकों के अलावा दृश्य-श्रव्य माध्यम से भी बहुत-सी जानकारियाँ दी गई थीं। यह विकलांगों, दिव्यांगों तथा दृष्टिहीन पाठकों के लिए भी उतनी ही वरीयता से सेवाएँ देता है जितनी कि एक आम नागरिक के लिए।

पूर्व-राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन की निजी लाइब्रेरी की साढ़े छ: हज़ार पुस्तकों को दुनिया की सबसे बड़ी लायब्रेरी, काँग्रेस ने उस समय क्रय किया जब कैपिटॉल की आगजनी में उनकी अपनी लायब्रेरी तबाह हो गई थी। इसमें रखी 17 करोड़ पुस्तकों को अलग-अलग रिबन से चिह्नित किया गया था। जेफरसन की अपनी निजी पुस्तकों के रिबन हरे रंग के थे। नई खरीदकर इसकी शोभा बढ़ाने वाली पुस्तकों के सुनहरे रंग के रिबन लगे थे। जेफरसन की अपनी पुस्तकें जो काँग्रेस लायब्रेरी का हिस्सा थीं, उनमें कोई रिबन नहीं लगाया गया था। उनकी अपनी किताबें जो गुम हो गई थीं, उनके लिए पुस्तकाकार खाली डिब्बे लगाकर स्थान सुरक्षित किया गया है और उनको तलाशने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस पुस्तकालय में मात्र पुस्तकें ही नहीं, दुनिया भर की अमूल्य निधि है। इसमें तरह-तरह के नक्शे, कलात्मक कार्य और अन्य अनेक सामग्री उपलब्ध है।

अब वह समय आ गया था जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था। चार बजे से कुछ पहले ही हम ‘एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम’ पहुँच गए। अधिकतर स्थानों पर हमें बैग स्कैन करवाना होता ही था, सो यहाँ भी हुआ। परंतु सब मंज़ूर था मानवीय उड़ानों और अंतरिक्ष की उड़ान की उपादेय जानकारी हासिल करने के लिए। इसमें हमें तरह-तरह के विमान, अंतरिक्षयान, मिसाइल, रॉकेट और उड़ान संबंधी अनेक अन्य अनुपल्ब्ध सामग्री देखने को मिली। बहुत वास्तविक व जीवंत वातावरण में सभी वस्तुओं को जमाया व टिकाया गया था। लगता था कि हम अंतरिक्ष में या किसी उड़ान में ही हैं। विमान के अन्वेषक राइट भाइयों की सजीवसम मूर्तियाँ, उनके द्वारा अन्वेषित सिलसिलेवार सभी यान हमें उसी युग में पहुँचा रहे थे।

गगन उड़ान और अंतरिक्ष यान के अनुसंधान का यह महत्त्वपूर्ण केंद्र है जिसे अमेरिका में अन्य संग्रहालयों की तुलना में सबसे अधिक पर्यटकों द्वारा देखा जाता है। चाँद और मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर आदि देखकर बहुत रोमांच हुआ। पूरे सौरमंडल के सभी ग्रह और उपग्रह उसी अनुपात में आँखों के सामने घूमते मिले। एक वायुयान के कॉकपिट में जाने का मौका भी मिला।

यहाँ इतना कुछ जानने को है कि मस्तिष्क के गोदाम में 1 टैराबाइट का डेटा भर जाए और फिर भी कसर बाकी रह जाए। यह संग्रहालय इतना कुछ बताता है कि सुनने-समझने के लिए यहीं बस जाना होगा।

उड़ानों के इतिहास के साथ ही उनके भूगोल की भी त्रिआयामी जानकारी थी। बीच में एक बड़ा सा हॉल और पहले व दूसरे तल पर उसके चारों ओर कई कक्ष रोमांचकारी ज्ञान उँडेल रहे थे। यह एक ऐसा स्थान है कि जिसे विज्ञान विषय से डर लगता हो तो उसे वही प्रिय विषय लगने लगेगा।

मानसिक थकावट शारीरिक ऊर्जा का भी क्षय करती है। वनस्पति उद्यान को भी देखनी की इच्छा थी किंतु हिम्मत ने जवाब दे दिया। अपनी रिहायश पर जाकर कुछ देर विश्राम किया। शाम के समय के लिए टाइडल बेसिन तथा मेरीलैंड यूनिवर्सिटी में से एक को चुनना था। बेटी की मित्र का निवास ‘कॉलेज पार्क’ मेरी लैंड में होने के कारण मेरीलैंड ने विजय पाई।

यहाँ सुपुत्री ने पढ़ाई की थी, इसलिए भी इसका देखना तो बनता ही था। फिर टाइडल बेसिन के लिए उसी क्षेत्र में जाना होता जहाँ हम दो दिन से चक्कर काट ही रहे थे। साथ ही यह भी जाना कि उसे देखने का सर्वश्रेष्ठ समय होता है जब चैरी ब्लॉसम के फूलों से पेड़ भर जाते हैं।

ऐसे कई स्थान हमसे छूट गए जो हम देखना चाहते थे मगर नहीं देख पाए। वाशिंगटन डीसी का ‘जॉर्जटाऊन’ भी इच्छा सूची में था किंतु समय न मिल पाया। इसकी ऐतिहासिक गलियों व बाज़ारों ने हमें कभी पुकारा तो पुन: वाशिंगटन जाना हो शायद।

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रचनाकार परिचय

आरती 'लोकेश'

ईमेल : arti.goel@hotmail.com

निवास : दुबई, संयुक्त अरब अमीरात

सम्प्रति- लेखिका, कवयित्री एवं शिक्षाविद
निवास- दुबई, संयुक्त अरब अमीरात
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संक्षिप्त परिचय
डॉ. आरती ‘लोकेश' ढाई दशकों से दुबई में निवास करती हैं। यू.ए.ई. सरकार द्वारा उनके लेखन कार्य के लिए ‘गोल्डन वीसा’ दिया गया है। अंग्रेज़ी-हिन्दी दोनों विषयों में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी में गोल्ड मैडलिस्ट व पी.एच.डी. हैं। लेखन व संपादन के अतिरिक्त पाठ्यक्रम निर्माण व शोध-निर्देशन का कार्य भी कर रही हैं । ‘अनन्य यू.ए.ई.' की मुख्य संपादक तथा अमेरिका, यू.ए.ई. व भारत की कई पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं तथा शोध जर्नल का सह-संपादन भार भी सँभाला हुआ है। इनके 4 उपन्यास, 4 कविता-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, 4 कथेतर गद्य, यू.ए.ई. के बालकों व वयस्कों की रचनाओं के संकलन की 6 संपादित मिलाकर 22 पुस्तकें प्रकाशित व 5 अन्य प्रकाशनाधीन हैं। इनके साहित्य पर पंजाब, हरियाणा, ओडिसा,  मॉरीशस व यूक्रेन के विश्वविद्यालय में विद्यार्थी शोध कर रहे हैं। इनकी अनेक रचनाओं पर अनुवाद किया जा रहा है। इनके साहित्य पर दो प्रवक्ताओं, डॉ. उर्मिला व डॉ. पूनम के सम्पादन में पुस्तक ‘डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ की साहित्य सुरभि’ प्रकाशित हो चुकी है।

इन्हें भारत व मॉरीशस सरकार द्वारा सर्वप्रतिष्ठित सम्मान ‘आप्रवासी हिन्दी साहित्य सृजन सम्मान’ $2000 राशि सहित, ‘काव्य विभूषण’, ‘महाकवि प्रो॰ हरिशंकर आदेश साहित्य सम्मान’, ‘रंग राची सम्मान’, 'शब्द शिल्पी भूषण  सम्मान', 'प्रज्ञा सम्मान', ‘निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान’, ‘प्रवासी भारतीय समरस श्री साहित्य सम्मान’, ‘शिक्षा रत्न’, ‘कलम की सुगंध हिंदी सेवी सम्मान’  से  नवाज़ा गया है। रेडियो ‘मेरी आवाज़’ द्वारा विश्व की 101 प्रभावशाली महिलाओं में नाम सम्मिलित है।