Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
मधु शुक्ला के गीत

ये महज संयोग है या लेख विधि का
टूटता यूँ ही नहीं घेरा परिधि का
मैं बनाती राह खुद पगडंडियों सी
आ मिली हूँ आज पनघट से तुम्हारे।

यतीन्द्र नाथ राही के गीत

 
रोज़ सवेरे  किरन कान में
कुछ कह कर जाती है
खिड़की के उस पार
डाल पर चिड़िया कुछ गाती है
कलियों के कहकहे गन्ध के
लुटते खील बताशे
किसने माँग सवारी ऋतु की
किसने अंग तराशे?
 

प्रमोद पवैया के गीत

हमें स्वर्ग का मूल्य चुकाकर
नर्कवास को ठुकराना है,
और अदेखी वैतरणी में
सतत डूबना-उतराना है,

व्यापारी को
संत मानकर,
ख़ुश रहना है।

वेद प्रकाश शर्मा 'वेद' के गीत

देखता गुमसुम समय
यह फेसबुक की घुड़चढी है