Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
देवेन्द्र पाठक 'महरूम' के गीत

अस्ताचल पर बुझा अंगारा,
धुँधला हर परिदृश्य हो रहा,
बोध नहीं पथ, दिशा, समय का
गहन तिमिर में लक्ष्य खो रहा;

आशा देशमुख के गीत

कच्ची पगडंडी पर
बजते निरगुन
पाखी के कलरव में
दुआ के शगुन,
 

राघव शुक्ल के गीत

कामनाओं का हवन होगा
यहीं अब चिंतन मनन होगा
भावनाओं के भवन में फिर
प्रेम से भगवद्भजन होगा
यहीं होंगे स्वप्न सब साकार
क्षुब्ध मन में छा गया उल्लास

शीतल बाजपेयी के गीत

सूर्य डूबता नहीं कभी भी, धरा अक्ष पर घूमा करती।
दृष्टिकोण उत्कृष्ट बने तो मंज़िल पग को चूमा करती।
हार नही मानी है मैने, ना मरते दम तक मानूँगी।
जितना दुर्व्यवहार करोगे उतनी ही मजबूत बनूँगी।