Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
सत्यम भारती की ग़ज़लें

अक्षर-अक्षर सत्य दिखाई देता है
सुख-दुख सबकुछ आकर ठहरा चेहरे पर
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सपने, ख़ुशबू, बादल, जुगनू
सबका कारोबार तुम्हीं से

डॉ० आरती कुमारी की ग़ज़लें

ताज पाने के लिए क्या-क्या नहीं होता यहाँ पर
क्यों मिला था राम को वनवास हम सब जानते हैं

चाँदनी 'समर' की ग़ज़लें

मुज़फ्फ़रपुर, बिहार की उभरती हुई ग़ज़लकार चाँदनी 'समर' की ग़ज़लें आम-फ़हम भाषा की सधी हुई ग़ज़लें हैं। इनके पास ग़ज़ल का पारंपरिक रंग भी है और अपने दौर की फ़िक्र भी। शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए चाँदनी, अदब में भी अच्छा मुकाम बनाने के लिए अग्रसर हैं।

डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें

डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें अपने समय के यथार्थ का पूरा ख़ाका खींचती हैं। इनकी ग़ज़लों में सत्ता और व्यवस्थाओं के खेल, माफ़ियाओं का आतंक, आम आदमी को वंचित रखने की कवायदें, नदी-पेड़-पर्वतों की चिंता, समाज के अशिक्षित तथा ग़ैरज़िम्मेदार इंसान की कारगुज़ारियाँ आदि वे सब चीज़ें मिलती हैं, जिनसे दुःख पैदा होते हैं। अच्छी बात यह भी है कि डॉ० जोशी अपनी ग़ज़लों में लगातार आम आदमी को सम्बोधित किये रहते हैं और उसे इन दुखों से, इन मुसीबतों से पार होने के तरीक़े समझाते रहते हैं। पर्यावरण, पहाड़ और पहाड़ी जीवन की झलक इनकी ग़ज़लों में जगह-जगह देखने को मिलती है।