Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
ख़ुरशीद खैराड़ी की ग़ज़लें

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जाएँ तो धागे टूट जाते हैं

चमन में बेटियों के वालिदों-सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का बोझ पौधे टूट जाते हैं

रश्मि शर्मा 'सबा' की ग़ज़लें

दर्द बेताब है अल्फ़ाज़ में ढलने  के   लिए
रास्ता चाहिए सब को ही निकलने के लिए

डॉ० अल्पना सुहासिनी की ग़ज़लें

समर अब ख़ुद ही लड़ना है, निरंतर आगे बढ़ना है
सो अपने दिल में हिम्मत का नगीना तुमको जड़ना है

अलका मिश्रा की ग़ज़लें

टूट गया जब सब्र नदी का उस लम्हा
जितने  थे  मज़बूत  किनारे  टूट  गए