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डॉ० अल्पना सुहासिनी की ग़ज़लें

डॉ० अल्पना सुहासिनी की ग़ज़लें

समर अब ख़ुद ही लड़ना है, निरंतर आगे बढ़ना है
सो अपने दिल में हिम्मत का नगीना तुमको जड़ना है

ग़ज़ल- एक 

बे-ज़ुबां इस शह्र की मैं ही ज़ुबां हो जाऊँगी
चल पड़ी तनहा भी गर तो कारवां हो जाऊँगी

वक़्त की दहलीज़ पर करके नुमायां मैं निशां
आने वाली पीढ़ियों की दास्तां हो जाऊँगी

लहलहाती झूमती नन्ही-सी कोंपल के लिए
ख़ुद ही उसकी सायबां, ख़ुद बाग़बां हो जाऊँगी

छीनकर मेरा क़लम तुमको मिलेगा कुछ नहीं
मैं मगर ऐ दोस्त! मेरे बेज़ुबां हो जाऊँगी

मेरे हक़ की रोटियाँ मत छीनना मुझसे कभी
वरना मैं भी तेरे हक़ में दर्दे-जां हो जाऊँगी

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ग़ज़ल- दो  

समर अब ख़ुद ही लड़ना है, निरंतर आगे बढ़ना है
सो अपने दिल में हिम्मत का नगीना तुमको जड़ना है

भले ही अब मुख़ालिफ़ हो तुम्हारे, कौरवी सेना
मगर कौन्तेय तुमको ही नया इतिहास गढ़ना है

चलेंगे शब्दबेधी बाण तुम पर बारहा लेकिन
उन्हें भी अनसुना करके शिखर पे तुमको चढ़ना है

तुम्हारे अस्त्र ही बन जाएँगे सच्चाइयाँ अब तो
भरोसा करके ख़ुद पर ही हमेशा सच पे अड़ना है

यहाँ पर नाग भी तुझको पिपासाओं के घेरेंगे
निशाना साध कर रखना नहीं अब भ्रम में पड़ना है

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रचनाकार परिचय

अल्पना सुहासिनी

ईमेल : 2011alpana@gmail.com

निवास : ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

पिता- श्री निर्दोष हिसारी
शिक्षा- बी०ए० ऑनर्स (हिंदी), एम०ए० (हिंदी), पी०एचडी
सम्प्रति- आकस्मिक उदघोषिका, आकाशवाणी दिल्ली, हिसार एवं दूरदर्शन प्रस्तोता, हिसार
प्रकाशन- संग्रह 'तेरे मेरे लब की बात' प्रकाशित।
अनेक अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं यथा पुरवाई (यूके), ऑस्ट्रेलियांचल आदि एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर कविताएँ, लेख आदि प्रकाशित।
प्रसारण- राष्ट्रीय साँस्कृतिक साहित्यिक मंचों, जश्ने-अदब, ज़ी न्यूज़, इण्डिया न्यूज़, दूरदर्शन दिल्ली आदि सहित कई टी०वी० चैनलों से काव्य-पाठ
पता- राजनगर एक्सटेंशन, ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)