Ira
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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की दसवीं कड़ी

फिर अचानक धीरे-धीरे प्रीति को दर्द में आराम आना शुरू हुआ और उसकी साँसे धीरे-धीरे करके ठंडी पड़ती गई। जाने से पहले प्रीति ने मेरा एक हाथ कसकर पकड़ लिया था। जैसे ही प्रीति ने विदा ली, उसका हाथ मेरे हाथ से छूटकर बिस्तर पर गिर पड़ा। हम दोनों चुपचाप लाचार खड़े हुए उसको जाता हुआ देखते रहे।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की नवमीं कड़ी

स्त्रियाँ जब अपने किसी प्रिय की बाट जोहती हैं तो कितना प्रेम स्वयं में सँजोकर विशाल क़द की हो जाती हैं। इस भाव को महसूस करने वाले का क़द भी तभी विशाल होता है, जब उसे किसी का किया हुआ महसूस हो। शिखा ने ज्यूँ ही समीर की आँखों में देखा, उसे समीर की अनकही समझ आ गई। प्रखर के अपनी बात पुनः शुरू करने से दोनों उसे सुनने लगे।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की आठवीं कड़ी

सच कहूँ शिखा! जब से प्रीति की बीमारी का मुझे पता चला था, मैं बहुत डर गया था। लखनऊ में गुज़रे हुए पूरे सात-आठ दिन में मैंने प्रीति से जुड़े निर्वात को बहुत क़रीब से महसूस कर लिया था। प्रीति को कभी भी खो देने का डर मेरे अंदर ठहर गया था। मेरी बातों को सुनकर प्रीति की आँखों में नमी तैर गई थी, जो मुझे भी बहुत अच्छे से नज़र आ गई थी। उसके चेहरे को देखकर महसूस हो रहा था कि कहीं न कहीं वह भी मेरी तरह ख़ुद को कमज़ोर महसूस कर रही थी। इतने वर्ष लंबे समर्पण के बाद हम एक-दूसरे को जीने लगते हैं। हैं न समीर, समीर ने भी सहमति में सिर हिलाया।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की सातवीं कड़ी

प्रखर को रोता हुआ पाकर शिखा भी फूट-फूट कर रोने लगी। प्रखर को चोट पहुँचे और शिखा चोटिल न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। प्रखर को रोता हुआ देखकर समीर की भी आँखों में भी नमी तैर गई। दर्द जाने-अनजाने में एक-दूसरे की दुखती रगों को छू रहे थे।