Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की अंतिम कड़ी

मैंने तुम्हारा सपना... खैर, कबीर तुमने प्रॉमिस किया था न ..कि कभी भी परिस्थितियों से भागोगे नहीं, हर हाल में ...तुम्हें याद है ना !! मैंने हर करवाचौथ तुम्हारी लंबी उम्र की प्रार्थना की है ...कबीर ...पता नहीं ऊपर वाले ने कभी भी मेरी कोई प्रेयर क्यों नहीं मानी। पर तुमने मानी है मेरी हर बात... मेरा हर नखरा उठाया है तुमने... मेरे लिए तो तुम्हीं...मेरी प्रार्थना की लाज रखना प्लीज....

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की छठवीं कड़ी

उसके मैसेज पढ़कर शिखा ने लिखा- मैं भी तुम्हें कभी भूली नहीं प्रखर! मेरा पहला प्यार थे तुम। तुमने मुझे अहसास करवाया प्यार क्या होता है। हमारे प्यार में शरीर कभी आया ही नहीं। तभी रूह से रूह का रिश्ता ख़त्म हुआ ही नहीं। तुम्हारी कई कविताएँ आज भी मेरे पास महफ़ूज़ हैं। जब भी तुम्हारी बहुत याद आती थी, तुम्हारी कविताओं को निकाल कर पढ़ लेती थी और घंटों तुम्हारे ख़यालों में खोई रहती।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की पाँचवी कड़ी

एक उम्र के बाद कुछ दर्द बहुत अपने-से लगने लगते हैं। शिखा कुछ ऐसा ही प्रखर के दर्द में महसूस करने लगी थी। यही सच प्रखर से भी जुड़ गया था।
स्वतः घटित होने वाले भाव कितने निश्चल और मासूम होते हैं। यह प्रेम करने वाले ही समझ सकते हैं।

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की पाँचवीं कड़ी

यह सब घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ कि कबीर न तो समझ पाया न ही सम्हल पाया...आख़िर ऐसा क्या ग़लत कह दिया था उसने.... इन छः महीनों के साथ में हर क्षण उसने यही महसूस किया था कि स्निग्धा भी वही चाहती है जो वह चाहता है... फिर ग़लती कहाँ हुई, जो भी था वह सपना था, या जो अब हो रहा है वह सपना है? क्या कहेगा वह पापा मम्मी को ..हर दिन जिस की बातें करता रहा... वह लड़की मुझसे शादी ही नहीं करना चाहती ...लिव इन की बात करती है . शनैः शनैः कबीर की आँखों में अँधेरा छाने लगा... अब क्या करें न तो स्निग्धा के बग़ैर जी सकता है , न उसकी शर्ते मान कर ...