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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की पाँचवी कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की पाँचवी कड़ी

एक उम्र के बाद कुछ दर्द बहुत अपने-से लगने लगते हैं। शिखा कुछ ऐसा ही प्रखर के दर्द में महसूस करने लगी थी। यही सच प्रखर से भी जुड़ गया था।
स्वतः घटित होने वाले भाव कितने निश्चल और मासूम होते हैं। यह प्रेम करने वाले ही समझ सकते हैं।


अपने बेटे की बातों को साझा करते-करते प्रखर के चेहरे पर आने वाला उत्साह उसे ढेरों ख़ुशियाँ दे रहा था। प्रखर ने और भी बहुत सारी बातें प्रणय की साझा कीं। कैसे प्रणय पहले शादी करने के लिए तैयार ही नहीं था। उसे लगता था माँ को गए हुए अभी बहुत कम दिन हुए हैं, बात-बात पर प्रीति को याद करके रोता था। मैंने उसको बहुत समझाया।

मेरे बहुत दबाब डालने पर शादी के लिए तैयार हो गया। उसने प्रिया को कॉलेज समय से ही पसंद किया हुआ था। दोनों कई सालों से अच्छे दोस्त थे। जब प्रणय ने मुझे प्रिया के बारे में बताया तो मैं बेहद ख़ुश हुआ। मैं हर क़ीमत पर अपने बेटे को ख़ुश देखना चाहता था।

मैंने पिछले साल ही प्रणय और प्रिया की शादी की। प्रिया भी बहुत प्यारी बच्ची है। उससे मिलने के बाद लगा ही नहीं कि वह दूसरे घर से आई है। प्रिया से मिलने के बाद मुझे प्रणय की पसंद पर गर्व हुआ। प्रणय के अलावा उसके भी फोन आते रहते हैं। ख़ैर अब तुम दोनों अपने बारे में बताओ। मैं तो बहुत कुछ बता चुका हूँ। तुम्हारी बातों से लगा कि तुम्हारे भी एक बेटा है। तुम्हारा बेटा कैसा है? क्या करता है? प्रखर ने शिखा और समीर से पूछकर उनकी ओर देखा। तब शिखा बोली- "बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारी फॅमिली की बातें सुनकर प्रखर! पहले अपनी बातें पूरी करो। फिर हमारे बेटे के बारे में भी सुन लेना।" समीर ने भी शिखा की बात पर सिर हिलाकर सहमति दी। प्रखर ने अपनी बात जारी रखी-

"दिसम्बर में जब बच्चे आएँगे, मैं तुम दोनों को उससे ज़रूर मिलवाऊँगा। प्रणय और प्रिया चाहतें हैं कि अब मैं उनके पास ही हमेशा के लिए शिफ्ट हो जाऊँ पर तुम दोनों से मिलने के बाद अब मैं वहाँ नहीं जाना चाहता। ख़ैर ज़ल्द ही तुम्हारी भी फेस-टाइम पर बात करवाऊँगा। अपनी बात बोलकर प्रखर चुप हो गया।

प्रखर की आत्मीयता समीर और शिखा के मन को छू रही थी। उन्हें भी प्रणय पर बहुत लाड़ आया क्योंकि वे अपने बेटे सार्थक से ख़ुश नहीं थे। समीर अपने दुख-दर्द कभी भी किसी के साथ नहीं बाँटते थे पर आज न जाने कैसे प्रखर से बोल पड़े- "यार प्रखर! तुम्हारी बातें सुनकर हमें भी प्रणय पर बहुत लाड़ आ रहा है। ऐसा सुख हमारे भाग्य में नहीं था। पहले तो संतान ही भाग्य में नहीं थी। सात साल अकेले ही रहे। शिखा का बहुत मन था कि हमारे घर में बच्चा भी हो। सारे मेडिकल टेस्ट करवाए पर कहीं कोई कमी नहीं निकली। बस किस्मत में बच्चा होना नहीं लिखा था। तब अनाथाश्रम जाकर सभी औपचारिकताएँ पूरी करके सार्थक को गोद लिया। हम दोनों ने उसे ख़ूब लाड़-प्यार-दुलार किया। जो हमसे श्रेष्ठ हो सकता था, वही हमने देने की कोशिश की पर उसका व्यवहार समझ नहीं आता था। जो हमारे बीच बॉन्ड होना चाहिए था, वो कभी महसूस नहीं होता था।"

फिर समीर ने संक्षिप्त में उन सभी बातों को प्रखर के साथ साझा किया, जो उन्हें अखरती थी। ज्यों-ज्यों समीर अपनी बातें साझा कर रहे थे, शिखा की आँखों में नमी तैरने लगी थी। समीर पहली ही मीटिंग में प्रखर के इतने क़रीब आ गए थे कि अपना भी दर्द बताने लगे थे। प्रखर को भी शिखा-समीर का दर्द अपना ही लगा। शिखा की आँखों में अनायास आये आँसू, प्रखर को चोट पहुँचा रहे थे। उस दिन के बाद तीनों के बीच जो बातों का सिलसिला चल पड़ा, वो फिर नहीं थमा। समीर और प्रखर तो आज पहली बार मिले थे पर उन दोनों को भी आपस में बहुत आत्मीयता महसूस हुई।

समीर की बात सुनकर प्रखर ने दोनों से कहा- "हम सभी के अपने-अपने हिस्से के सुख-दु:ख हैं पर अब हम साथ हैं न! एक-दूसरे का साथ निभाने की कोशिश करेंगे। तुम दोनों परेशान मत हो। हाँ, मैं कहाँ तक बता चुका था, वहीं से आगे बढ़ता हूँ।"

"आज से दो साल पहले मुझे सरकारी काम से लखनऊ जाना था। वहाँ एक दिन रुककर मुझे वापस कानपुर आना था। उस समय मेरी पोस्टिंग कानपुर में थी। चूँकि प्रीति की कुछ फ़्रेंड्स लखनऊ में थीं तो उसने भी साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की। मुझे प्रीति का साथ बहुत प्रिय था। मैं जब भी किसी जगह सरकारी काम से जाता, प्रीति से ज़रूर पूछ लेता था। चूँकि हमारा बेटा भी कई सालों से घर के बाहर था और घर पर काका के होने से कोई चिंता नहीं थी। उस रोज़ भी प्रीति और मैं लखनऊ की यात्रा पर साथ ही थे। ऐसी यात्राओं में प्रीति का साथ मिलने से मुझे हमेशा ही बहुत ख़ुशी होती थी। जब कभी हमारी लंबी ट्रैवलिंग होती, हम दोनों पूरा रास्ता ग़ज़लें सुनकर गुज़ार देते। वो हमारे लिए क्वालिटी टाइम होता था।"

"हमें अगले दिन ही लौटना था। कानपुर से लखनऊ बहुत लंबी ट्रैवलिंग भी नहीं थी पर जिस दिन हम लौटे रहे थे, अचानक प्रीति को कार में बैठकर आने में बेहद तकलीफ़ हुई।" अपनी बात बताते-बताते प्रखर अचानक ही कहीं खो गया। उसकी आवाज़ में शिखा और समीर को कंपन-सा महसूस हुआ। जैसे ही समीर की नज़र प्रखर पर पड़ी, उसे आभास हुआ जैसे प्रखर परेशान और विचलित हो गया हो। तब शिखा ने उसे टोकते हुए कहा- "अगर मन ख़राब हो रहा है प्रखर तो कभी और बता देना, अभी रहने दो।"

एक उम्र के बाद कुछ दर्द बहुत अपने-से लगने लगते हैं। शिखा कुछ ऐसा ही प्रखर के दर्द में महसूस करने लगी थी। यही सच प्रखर से भी जुड़ गया था।
स्वतः घटित होने वाले भाव कितने निश्चल और मासूम होते हैं। यह प्रेम करने वाले ही समझ सकते हैं। बहुत देर हो जाने से तीनों ने ही निर्णय लिया कि अब वह तीनों पहले डिनर करते हैं। फिर जैसा प्रखर का मन होगा, वही करेंगे क्योंकि प्रीति की बीमारी से जुड़ी हुई बात चल रही थी। थोड़ा ब्रेक लेने का सभी ने मानस बना लिया।

बात करते-करते रात के नौ बज चुके थे। प्रखर के बहुत आग्रह करने पर तीनों उठकर डिनर के लिए टेबल पर आए तो शिखा ने प्रखर से पूछा- "कुछ रसोई में काम करवाना हो तो बताओ प्रखर। मैं करवा देती हूँ।" उसकी बात पर प्रखर मुस्कुरा कर बोला- "मैं तुम्हारा बनाया हुआ खाना किसी रोज़ ज़रूर खाऊँगा शिखा! वो भी तुम लोगों के यहाँ। मैं तो अपने किचन में कभी नहीं गया। यह तो सब काका ही सँभालते हैं। प्रीति ने इन्हें इतना अच्छा ट्रेंड किया है कि कुछ भी देखने की ज़रूरत नहीं होती। आज आप दोनों को भी इनसे मिलवाता हूँ।"

प्रखर अब काफ़ी संयत हो चुका था। उसने काका और काकी को आवाज़ देकर बुलाया और उनसे मिलवाया। पिछले बीस सालों से दोनों पति-पत्नी उसके यहाँ काम कर रहे थे। प्रसाद काका और उनकी धर्मपत्नी राजो। दोनों ने ही बहुत सलीके से समीर और शिखा से नमस्ते की। फिर वापस अपने रसोई के काम में जुट गये। खाना बहुत अच्छा बना था। तीनों ने बहुत प्रेम से खाना खाया। खाने के अंत में जब काका मिठाई लेकर आए तो शिखा ने उन्हें रुपये दिए तो वे बोले-
"आप दोनों साहब के दोस्त हैं। रुपये लेकर हम गुनाहगार नहीं बनना चाहते। साहब का दिया हुआ बहुत है हमारे पास। आपको हमारा बनाया हुआ खाना पसंद आया, हमें बहुत ख़ुशी हुई मेमसाहिब। आप दोनों फिर से आइए। हम और भी बहुत कुछ बनाकर खिलाएंगे।" कुछ ऐसा बोलकर काका अंदर चले गए। शिखा को काका और काकी के हाव-भाव व बातों में बहुत आत्मीयता नज़र आई।

हम सबके खाने के बाद उन दोनों ने मिलकर हमारे बर्तन उठाए और टेबल साफ़ की। तब तक हम तीनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ गए थे। खाना खाते-खाते काफ़ी देर हो गई थी। तभी शिखा ने समीर को कहा- "समीर! आपकी दवाइयों का वक़्त हो गया है। अगर कुछ समय और सबको साथ बैठना है तो मैं घर जाकर दवाइयाँ लेकर आती हूँ।" शिखा की बात सुनकर प्रखर ने समीर से पूछा, "क्या हुआ है तुमको समीर?"

समीर ने ही बताया कि उन्हें तीन साल पहले एक बार चेस्ट-पैन हुआ था। चेक-अप करवाने पर कुछ ख़ास नहीं निकला था। बस डॉक्टर ने कुछ मल्टी-विटेमिन और एक और दवाई खाने को बोल दिया था। साथ ही अपनी दिनचर्या को नियमित करने को कहा था। बढ़ती उम्र के साथ शिखा को भी उसी डॉक्टर ने मल्टी-विटेमिन और कैल्शियम लेने को बोला था। उम्र के साथ कुछ न कुछ सप्लीमेंट हर इंसान को चाहिए ही होते हैं प्रखर! समीर की बातें सुनकर प्रखर ने कहा- "समीर तुमने कितनी प्यारी बात बोली। उम्र के साथ कुछ सप्लीमेंट्स तो चाहिए ही होते हैं। आज इस बात पर कुछ न कुछ लिख ही जाएगा। ख़ैर हमें अब अपनी बातों को यही विराम देना चाहिए। समीर तुम्हें दवाइयाँ भी लेनी हैं। कल शाम को मैं आता हूँ। हम सब साथ में चाय पिएँगे क्योंकि अब बात शुरू की तो इतनी जल्दी ख़त्म नहीं होगी। प्रीति की लंबी बीमारी और उसका जाना मेरे जीवन का सबसे टफ टाइम था। पीड़ाएँ बहुत जल्दी-जल्दी सुनाई नहीं जा सकती। प्रीति से जुड़ी अपनी इस पीड़ा को कभी किसी के साथ साझा नहीं किया पर मैं चाहता हूँ तुम दोनों को सब तसल्ली से सुनाऊँ।"
अपनी बात बोलकर प्रखर शांत हो गया।

समीर और शिखा भी उसकी बात पर सहमति में सिर हिलाकर उठ खड़े हुए और विदा लेने से पहले तीनों ने एक-दूसरे के नंबर लिए और घर आ गए। आज कई घंटे साथ में गुज़ारा हुआ वक़्त तीनों को बहुत कुछ दे गया था, जिसको तीनों ही मन ही मन महसूस कर रहे थे।

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उपन्यास की अगली कड़ी मई माह के अंक में.......... 

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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