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नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की अंतिम कड़ी

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की अंतिम कड़ी

मैंने तुम्हारा सपना... खैर, कबीर तुमने प्रॉमिस किया था न ..कि कभी भी परिस्थितियों से भागोगे नहीं, हर हाल में ...तुम्हें याद है ना !! मैंने हर करवाचौथ तुम्हारी लंबी उम्र की प्रार्थना की है ...कबीर ...पता नहीं ऊपर वाले ने कभी भी मेरी कोई प्रेयर क्यों नहीं मानी। पर तुमने मानी है मेरी हर बात... मेरा हर नखरा उठाया है तुमने... मेरे लिए तो तुम्हीं...मेरी प्रार्थना की लाज रखना प्लीज....

(कमरा नंबर 102... पाय हॉस्पिटल.. गोवा..) कबीर धीरे-धीरे अपनी आँखे खोल रहा है ...धुंधले से चेहरे... पापा ...मम्मी... निशांत अंकल... "मैं यहाँ कैसे? सहसा कुछ याद आया ... चिल्लाते हुए.. स्निग्धा... स्निग्धा. ssss... मम्मी कहाँ है वह? वह तो अबॉर्शन के लिए ओटी में गई थी न" ...और... कबीर की आँखो के आगे वह दृश्य घूम गया...

"सॉरी कबीर... स्निग्धा नहीं रही ...उसका यूट्रस बहुत वीक हो चुका था... मैंने कहा भी था ...पिछली बार कि अब रिस्क नहीं ले सकते... यूट्ररस रिमूव करते हुए उसका बीपी बहुत लो हो गया.. और हार्ट फेल हो गया ..। आई एम सॉरी कबीर ..." उसके बाद अब मम्मी पापा ...यहाँ..."मम्मी आप कब आये...? मैं स्निग्धा को देखना चाहता हूँ। बेड से उतरते हुए कबीर बोला"... मम्मी :(नम आँखो से) "स्निग्धा को गए तीन दिन हो चुके हैं बेटा! तुम उसके जाने का सुन कर बेहोश हो गए थे... और टेंपरेरी माइंड स्ट्रोक में चले गए थे ...निशांत जी ने फ़ोन किया तो...अंतिम संस्कार मजबूरी में हम लोगों ने ही करा ...तुम्हारे ही बगैर"... "शी कैंट डू डिस टू मी ...मम्मा... नो नो.. हर तरफ कबीर के चीत्कार की आवाज़ थी... डॉक्टर निशांत मम्मी-पापा सभी उसकी हालत देखकर खुद भी रो रहे थे... कबीर की माँ का तो कलेजा ही फट रहा था.. कबीर की ऐसी हालत देखकर। आज कबीर फिर अपनी मम्मी की गोद में छुप जाना चाहता था ,सबकी नजरों से दूर ...जैसे बचपन में छिपता था, अपने प्रिय खिलौने के टूट जाने पर .. पर स्निग्धा कोई खिलौना तो नहीं थी। धड़कन थी उसके दिल की... खिलौना तो दूसरा आ सकता है पर स्निग्धा.... पिछले छः सात सालों में कबीर भूल ही गया था,कि कभी वो अपनी बीवी के बगैर भी रहा था।एक दिन भी तो नही रहा था वह उसके बगैर... आठ दिन गुजर चुके थे ...कबीर को देखकर ऐसा लगता था ...जैसे कई रातों से, कई दिनों से, बस जाग रहा हो... इन कुछ दिनों में जैसे कई वर्षों का सफर तय कर लिया था कबीर के...शरीर ने, मन ने, आत्मा ने... कबीर पैकिंग कर रहा था... अलमारी के सारे कपड़े निकाल कर सूटकेस में भर रहा था ...अब गोवा में रहना मुश्किल था.. इस समुद्र को झेलना मुश्किल था..

स्निग्धा के कपड़े महक रहे थे ..उसकी अपनी गंध से ...और कबीर के आँसू थे जो सूखते नही थे ।कभी वह एक कपड़ा उठाता... कभी दूसरा... अचानक ही लाल रंग के एक लिफाफे पर उसकी नजर गई ,आगे ही रखा था..स्निग्धा की लिखावट में ऊपर नाम था.. मेरे प्यार.. मेरी जिंदगी की पहली और आखरी खुशी... अंदर लेटर था ... कबीर ...पता नहीं यह लेटर तुम्हें किन परिस्थितियों में मिले.. मैं रहूँ या नहीं। डॉक्टर ने दूसरे अबॉर्शन के बाद ही रिस्क लेने को मना किया था यूटरस कमज़ोर हो गया था मेरा। तुम्हें बताती तो हम दोनों ही जानते हैं कि क्या होता पर मैं रिस्क लेना चाहती थी कबीर! तुम्हारे लिए ....चाहे तुम मुझसे लाख छुपाओ रोज देखती थी... तुम्हारे जेब में भरी चॉकलेट्स को जो घर आने के पहले मल्टी के बच्चों को बाँटते थे। वॉचमैन को, उसके बच्चों की फीस के पैसे देते देखती थी। मम्मी ने भी बताया था, एक बार ..कि तुम्हें बच्चों से बहुत प्यार है। किसी भी कीमत पर सच करना चाहा था ...मैंने तुम्हारा सपना... खैर, कबीर तुमने प्रॉमिस किया था न ..कि कभी भी परिस्थितियों से भागोगे नहीं, हर हाल में ...तुम्हें याद है ना !! मैंने हर करवाचौथ तुम्हारी लंबी उम्र की प्रार्थना की है ...कबीर ...पता नहीं ऊपर वाले ने कभी भी मेरी कोई प्रेयर क्यों नहीं मानी। पर तुमने मानी है मेरी हर बात... मेरा हर नखरा उठाया है तुमने... मेरे लिए तो तुम्हीं...मेरी प्रार्थना की लाज रखना प्लीज.... कबीर छः महीने पहले मैंने अपना फ्लैट बेचकर और सेविंग से इंदौर में एक औऱफनेज अडॉप्ट किया है तुम्हारे लिए। जानती हूँ, अब गोवा रास नहीं आएगा तुम्हें! मम्मी के पास सब पेपर हैं, उनसे ले लेना। देखो! एक नहीं बहुत सारे बच्चों को छोड़े जा रही हूँ, तुम्हारे लिए ! एक और कोशिश करना कबीर ...मूव ऑन करने की..तुम ही ने तो कहा था कि खुशियाँ हमारे आस-पास ही होती हैं, ढूँढनी पड़ती हैं। इंदौर के घर में ...कुछ सालों बाद ...वही सुबह... वही सामने नीम का बगीचा... उड़ती पत्तियाँ... अब कबीर की आँखों में आँसू तो नहीं... पर दर्द अभी भी बाकी है। कबीर खुद ही से बात कर रहा है....आय एम मूविंग ऑन स्निग्धा.... मेरा इंतज़ार करना....

मम्मी: "कबीर लाओ यह कप, दूसरी कॉफ़ी ला देती हूँ.. ठंडी हो गई है अब ...अब इन उड़ते पत्तों को देखना बंद करो... ठंड भी बढ़ गयी है, चलो अंदर आ जाओ।

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रचनाकार परिचय

नीलम तोलानी 'नीर'

ईमेल : neelamtolani23@gmail.com

निवास : इंदौर (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 23 मई 1976
जन्मस्थान- इंदौर
लेखन विधा- गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन।
शिक्षा- बी.एस.सी.
MFA,(FINANCE),
WSP ..IIM BANGLURU
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन-
कितना मुश्किल कबीर होना(एकल)
साझा संग्रह:
1-शब्द समिधा
2-शब्द मंजरी
3-गूँज
4- शब्दों की पतवार
5- स्वच्छ भारत
6- सिंधु मशाल(पत्रिका सिंध साहित्य अकादमी)
7- हर पेड़ कुछ कहता है
* सिसृषा ,ब्रज कुमुदेश , काव्यांजलि जैसी छंद पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।
* कई समाचार पत्र तथा पत्रिका ,दैनिक भास्कर,नईदुनिया में निरंतर प्रकाशन
प्रसारण-आकाशवाणी इंदौर से कई बार कविता पाठ
सम्मान/पुरस्कार-
1- एस एन तिवारी स्मृति कृति पुरुस्कार २०२३
(कितना मुश्किल कबीर होना कृति पर)
2- उड़ान वार्षिक प्रतियोगिता २०२३ में तृतीय पुरस्कार
3- 2019 में श्रेष्ठ लघुकथा कार व छन्द लेखन में पुरुस्कृत।
4- अंतरराष्ट्रीय पत्रिका राम काव्य पीयूष में गीत का चयन ,प्रकाशन
5- women web राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में poet of year अवार्ड 2019
6- उड़ान सारस्वत सम्मान
7- उड़ान गद्य सम्राट
8-.सिंधु प्रतिभा सम्मान 2019
9- सिंध साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश द्वारा कई बार सिंधी रचनाओं के लिए पुरुस्कृत
संपर्क-114 बी,स्कीम नंबर 103
केसरबाग रोड,विनायक स्वीट के पास
इंदौर-452012 (मध्य प्रदेश)
मोबाइल-9977111665