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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की छठवीं कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की छठवीं कड़ी

उसके मैसेज पढ़कर शिखा ने लिखा- मैं भी तुम्हें कभी भूली नहीं प्रखर! मेरा पहला प्यार थे तुम। तुमने मुझे अहसास करवाया प्यार क्या होता है। हमारे प्यार में शरीर कभी आया ही नहीं। तभी रूह से रूह का रिश्ता ख़त्म हुआ ही नहीं। तुम्हारी कई कविताएँ आज भी मेरे पास महफ़ूज़ हैं। जब भी तुम्हारी बहुत याद आती थी, तुम्हारी कविताओं को निकाल कर पढ़ लेती थी और घंटों तुम्हारे ख़यालों में खोई रहती।


घर आकर समीर शिखा से बोले, "बहुत सरल और सहज व्यक्ति है प्रखर। बहुत दिल से जुड़ी बातें करता है। इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी कोई अहम नहीं। मुझे तो प्रखर बहुत स्ट्रेट और मिलनसार व्यक्ति लगा। मुझे ऐसे ही लोग अच्छे लगते हैं। प्रखर का नेचर बिल्कुल हमारे जैसा ही है। शायद इसलिए उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा। अच्छा शिखा, अब प्लीज़ मेरी दवाई निकाल कर दे दो। मैं भी दवाई लेकर सोऊँगा। न जाने क्यों आज काफ़ी थकन महसूस हो रही है।"

शिखा ने समीर को दवाइयाँ दी और वह दवाई लेकर लेटते ही सो गये पर शिखा की आँखों में नींद नहीं थी। उसने मोबाइल उठाया तो व्हाट्सप्प पर प्रखर का मैसेज था- आज अपने परिवार की बातें बताते-बताते मैंने तुम्हें कहीं चोट पहुँचाई हो तो मुझे माफ़ कर देना शिखा! मुझे नहीं पता था कि तुम दोनों इतने बड़े दु:ख से गुज़रे हो। पर आज मैं बहुत ख़ुश हूँ। इतने सालों बाद ईश्वर ने हमें मिलवाया है।
शिखा तुम खाने की टेबल पर मेरे साथ थी। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था। आज एक अरसे बाद तुम दोनों के साथ खाना खाकर बहुत अच्छा लगा। वरना पिछले दो साल से अकेले खाना खा-खाकर बहुत ख़ालीपन लगता था। प्रीति के जाने के बाद मैंने कभी मन से खाना नहीं खाया। उसके साथ बैठकर खाना खिलाने से मेरी आदतें बिगड़ गयी थीं। समीर की सप्लीमेंट वाली बात पर शिखा मैं तुमसे कुछ कहना चाहूँगा। मेरे लिए आज भी तुम वो ज़रूरी सप्लीमेंट हो, जिसका ज़िक्र समीर ने किया था।

शिखा को प्रखर की लिखी हुई बातों पर बहुत प्यार उमड़ा। साथ ही बहुत दर्द भी महसूस हुआ। एक उम्र के बाद अकेले रह जाने की पीड़ा बहुत अखरती है मगर यथार्थ को भी झुठलाया नहीं जा सकता। प्रखर ने आगे एक और मैसेज लिखकर भेजा था- अब एक अरसे बाद ईश्वर निमित्त के अधीन मिली हो तो हमेशा मेरे अकेलेपन की साथी बनी रहना। अब कहीं वापस खो न जाना शिखा! एक बार तुम्हें खो चुका हूँ, अब वापस खोने की हिम्मत नहीं है। तुम्हारी गरिमा मेरी गरिमा है। हमेशा इस बात का ध्यान रखूँगा।

उसके मैसेज पढ़कर शिखा ने लिखा- मैं भी तुम्हें कभी भूली नहीं प्रखर! मेरा पहला प्यार थे तुम। तुमने मुझे अहसास करवाया प्यार क्या होता है। हमारे प्यार में शरीर कभी आया ही नहीं। तभी रूह से रूह का रिश्ता ख़त्म हुआ ही नहीं। तुम्हारी कई कविताएँ आज भी मेरे पास महफ़ूज़ हैं। जब भी तुम्हारी बहुत याद आती थी, तुम्हारी कविताओं को निकाल कर पढ़ लेती थी और घंटों तुम्हारे ख़यालों में खोई रहती। तुम्हें याद है अपनी कविता 'स्पर्श तुम्हारा'?

क्यों नहीं याद होगी शिखा। तुम्हारे लिए ही तो लिखी थी। मेरा एक काम करोगी, कल जब समीर बाज़ार या कहीं जाए तो प्लीज़ फोन पर मुझे वह कविता सुनाना। इतने समय बाद तुम्हारे सामने अपनी ज़िद रख सकता हूँ न..!

ज़रूर सुनाऊँगी प्रखर, तुम आज भी मुझसे ज़िद कर सकते हो। तरस गई हूँ मैं भी.....कोई मुझसे ज़िद करे। एक बात पूँछु प्रखर, ऐसा करके हम कुछ ग़लत तो नहीं करेंगे....मैं समीर को धोखा तो नहीं दूँगी?

नहीं! बिल्कुल धोखा नहीं दे रही हो तुम शिखा! मैं तुमसे कभी भी ऐसा कुछ नहीं चाहूँगा, जिससे समीर को कष्ट हो। अब समीर भी मेरा मित्र है। तुम बिल्कुल निश्चिंत रहना। मेरी ख़्वाहिश तुम्हें अपने अन्त तक बस साथ महसूस करने की है। मैंने तुम्हें ख़ुद से ज़्यादा चाहा था। साथ रहना लिखा नहीं था तभी शादी नहीं कर पाए। अब ईश्वर ने अगर मिलवाया है तो कुछ सोचकर ही मिलवाया होगा।

बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें। प्यार का मायना बहुत कुछ होता है। मैं अब समीर से भी बहुत प्यार करूँगा क्योंकि वह तुमसे जुड़ा है। उसके लिए भी मेरी जान हाज़िर है। मैंने कभी ज़िंदगी में नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी कोई मेरा इतना अभिन्न मित्र बन जाएगा। समीर बहुत साफ़ दिल का प्यारा इंसान लगा मुझे। मुझे ऐसे ही लोग पसंद हैं। बिल्कुल तुम्हारी तरह।

तुम भी तो बहुत अच्छे हो प्रखर! हम हमेशा मिलते रहेंगे। समीर भी तुम्हारी तारीफ़ कर रहे थे। वह भी तुम्हारे बहुत निकट आ चुके हैं। अब सोने जाती हूँ। गुड नाइट प्रखर, दूसरी तरफ से प्रखर ने भी गुड नाइट लिखकर चैट करना बंद कर दिया।

जब दोनों स्टूडेंट लाइफ में मिले थे तब मोबाइल नहीं हुआ करते थे और आज उम्र के उस पड़ाव पर मिले हैं, जहाँ मोबाइल का ग़लत उपयोग बग़ैर चाहे नहीं हो सकता था। उस रात बहुत मुश्किल से शिखा को नींद आई। बार-बार प्रखर की बातें शिखा को उसके क़रीब लेकर जा रही थीं। दोनों ने सुबह का बेसब्री से इंतज़ार किया क्योंकि आज वे तीनों वापस मिलने वाले थे।
रात दोनों ने एक और वादा किया था कि रोज़ जब सवेरे-सवेरे दोनों अपने-अपने बगीचे में पानी लगाएंगे। एक-दूसरे को सामने से गुड मॉर्निंग कहेंगे। प्रखर अब अपनी सुबह की शुरुआत शिखा को देखकर करना चाहता था।
जब समीर घर का सामान ख़रीदने गया तब शिखा ने शीघ्र ही प्रखर को फोन लगाया। प्रखर के आग्रह पर उसको वह कविता सुनानी थी। जैसे ही प्रखर ने फोन उठाया, शिखा ने कहा-

“प्रखर! तुम चाहते थे तुम्हारी लिखी हुई कविता सुनाऊँ। प्लीज! पहले कविता सुन लो। मुझे फिर घर के बहुत से काम करने हैं। एक बात कहूँ, किसी दिन मैं तुम्हारी पसंद का भी खाना बनाकर खिलाना चाहती हूँ। तुम मुझे अक्सर कॉलेज में बताया करते थे कि तुमको पूरी-आलू की सब्जी, दही-बड़े और छोले बहुत पसंद हैं। आज भी तुम्हारी पसंद यही है न? अगर तुम्हारी पसंद बदल गई हो तो वो भी बनाकर खिलाना चाहती हूँ। मुझे तुम्हें खाना बनाकर खिलाने का सुख भी महसूस करना है। समीर को भी यही सब बेहद पसंद है। जब भी उसके लिए यह सब बनाती थी, तुम्हें याद कर लेती थी।”

शिखा की बातों को सुनकर प्रखर बोल पड़ा- "कितनी पागल हो तुम भी मेरी तरह शिखा! मैंने भी तुम्हें अपनी ज़िंदगी से कभी अलग नहीं किया। ऐसा नहीं है कि मैंने प्रीति को प्यार नहीं किया। बस तुम्हें नहीं छोड़ पाया। मेरी जान थी तुम और भला कोई अपनी जान को छोड़कर ज़िंदा रह सकता है। अब वो कविता सुनाओ न प्लीज..!"

"सुनाती हूँ प्रखर...!"

आँखों को बंद करते ही
ये जो तुम मुझको छूती हो
जाने कितने मुझसे जुड़े तुम्हारे तारों में
झंकार–सी भर देती हो
एक नमी बनकर
ठहर जाती हो
नयनों की कोरों में कहीं
एकाकी होता हूँ
जब भी कभी
उतर आती हो
पलकों की कोरों से
मेरा साथ निभाने को तभी
पलकों की कोरों में सिमटे तेरी कमी के एहसास
मेरे बहुत क़रीबी हैं
अक्सर छूकर मुझे गीले से
कुछ एहसास दे जाते है
मानो- मरूस्थल में मेरी मरीचिका बनकर ही
तेरे हमेशा मेरे साथ होने की
एक आस जगा जाते हैं

जैसे ही कविता पूरी हुई दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी ठहर गई। कुछ देर को शब्द ही गुम हो गए। ऐसा महसूस हो रहा था कि दोनों वही बीस-इक्कीस की उम्र में पहुँच गए हों। अब कुछ भी बोलने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। इस कविता के साथ-साथ शिखा के ज़हन से प्रखर की लिखी हुई वो पंक्तियाँ भी बार-बार गुजरने लगीं, जिसमें ख़ामोशियों के असल मायने क्या होते हैं, आज एक बार फिर क़रीब से महसूस हुए।

पसरी हुई ख़ामोशी
क्या कुछ नहीं कह गई
तब कहीं चुपके से तुझे
छूकर आई हवा
मुझे यूँ सहला गई
कुछ बतला गई
ख़ामोशियाँ भी ज़रूरी हैं
बहुत कुछ महसूस करने को
कुछ थोड़ा-सा जीने को
जीने को महसूस करने को

दस-पंद्रह मिनट तक दोनों बिल्कुल ख़ामोश ही बैठे रहे। न कोई आवाज़ बस एक-दूसरे की बातों और अहसासों में गुम। तब प्रखर ने कहा- "कितने ख़ूबसूरत लहजे में कविता सुनाती हो तुम। आज पहली बार तुमने मेरी कविता सुनाई है। मैं ही हमेशा तुम्हें अपनी कविताएँ सुनाता आया था। अब तुमको मुझे वचन देना होगा कविता मेरी हो या तुम्हारी, तुम ही मुझे सुनाओगी। मैं तुम्हें भेज दिया करूँगा। वादा करो शिखा!"

"ठीक है वचन देती हूँ। अब मैं जाऊँगी काफ़ी काम करने हैं मुझे। समीर भी आते होंगे। उनके साथ भी वापस चाय पीनी है। तुम भी अपने काम करो प्रखर!" बाय बोलकर शिखा ने फोन रख दिया।

प्रखर से मिलने या बात करने के बाद सारा दिन काम करते-करते शिखा के दिलो-दिमाग़ में प्रखर की बातें ही घूमती रहती थी। समीर और शिखा भी जब साथ में बैठे होते तो समीर भी अक्सर बात करते-करते प्रखर की कोई न कोई बात को दोहरा लेता।
समीर के मुँह से प्रखर का नाम व उसकी बातें सुनना शिखा को बहुत अच्छा लगता था। प्रखर से जुड़ा कोई भी टॉपिक छिड़ते ही शिखा समीर को कॉलेज से जुड़ा कोई न कोई वाक़या सुना देती। समीर शिखा कि बातें सुनकर कहता भी था- "तुम्हें अपने कॉलेज का काफ़ी याद है शिखा! सच तो यही है कि हममें से कोई भी कॉलेज लाइफ को भूलना ही नहीं चाहता। शायद वहाँ की ज़िंदगी हर इंसान को ज़िंदादिली और जीवंतता महसूस करवाती है।"

"तो फिर समीर आप भी अपने कॉलेज की बातें साझा किया करो। मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा। वैसे भी हमारे पास बात करने के टॉपिक नहीं होते। आप साझा करेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा। समीर मुझे तो बहुत आश्चर्य होता है जब आप प्रखर से इतनी बातें करते हो। सच कहूँ तो जलन भी होती है।"

आज एक अरसे बाद शिखा ने शादी के एकदम बाद की स्मृतियों को मन ही मन दोहराया। कैसे समीर उस समय बहुत कम बोला करते थे और जब शिखा उनसे बहुत सारी बातें करने की कोशिश करती थी तो वो चिढ़ कर बोलते थे- "क्या बचपना है शिखा! मुझे बहुत-सी बातें करने की आदत नहीं। प्लीज़ तुम ख़ुद को बिज़ी रखो। मुझसे उम्मीद मत करना, मैं बहुत सारी बातें नहीं कर पाऊँगा।"

शिखा ने जैसे ही पुरानी स्मृतियाँ समीर के सामने दोहराई समीर ने कहा- "क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ती हो शिखा! तब जीवन की उलझनों में व्यस्त था। अब फ्री हूँ तो कर लेता हूँ। वैसे भी तुम्हें पता ही है, मुझे बहुत सारी बातें करना नहीं आता।"

शिखा अब कुछ नहीं बोलना चाहती थी क्योंकि कहने को उसके पास भी बहुत कुछ था। समीर की कुछ भी साझा न करने की आदत ही बस उसे बहुत दु:खी करती थी। घर का बड़ा बेटा होने के कारण शायद उसने कुछ ज़्यादा ही गांभीर्य ओढ़ लिया था। शिखा को समीर से बाक़ी कोई शिकायत नहीं थी। नौकरी के साथ वह घर भी संभालती थी। आने-जाने वाले रिश्तेदारों को भी संभालना होता था। साथ ही जब सार्थक को गोद लिया तो उसे भी शिखा ही देखती थी। पर गुज़री बातें हमेशा मन को ख़ालीपन ही देती हैं। अगर समीर उसके अकेलेपन को समझ जाता तो वह आत्मीय को मन ही मन क्यों आकार लेने देती। क्यों अदृश्य आत्मीय के साथ अपनी अनकही साझा करती।

प्रखर को आत्मीय के रूप में हमेशा साथ रखना शिखा की मजबूरी थी, जिसके सहारे वैवाहिक जीवन के इतने साल बहुत आराम से कट गए। अगर इसको कोई मर्यादाओं का उल्लंघन कहना चाहे तो कह सकता है पर शिखा की दृष्टि में यह सिर्फ़ उसके लिए जीने की कला थी। जिसके सहारे वो सारे रिश्तों में संतुलन बनाकर चल पाई। अपनी परेशानियों, अपनी बातों को कहने-सुनने के लिए हर इंसान को किसी न किसी की ज़रूरत होती ही है। शिखा का लेखन भी शायद उस अनकहे की अभिव्यक्ति था क्योंकि उसको लगता था-
कुछ चाहतें कुछ ख़्वाब
वक़्त माँगा करते हैं
वक़्त गुज़रने पर
यह सब कमी बनकर दौड़ा करते हैं

अब तीनों एक-दूसरे से लगभग रोज़ ही मिलने लगे थे। समीर और प्रखर तो पार्क में रोज़ ही वॉक के लिए जाते थे। शिखा भी कभी-कभी वॉक के लिए जाती थी। लौटते समय कभी मन हो जाता तो किसी के भी घर पर बैठ लेते और शाम की चाय या कॉफी साथ में पीते।

एक रोज़ शाम को जब सभी पार्क में इकट्ठे हुए तो समीर आग्रह करके प्रखर को चाय पर घर लेकर आ गए। शिखा पार्क में बैठने नहीं गई थी क्योंकि उसको घर में कई काम थे। डोर बेल बजने पर शिखा ने जैसे ही घर का दरवाज़ा खोला तो समीर के साथ प्रखर नज़र आया। शिखा की मुस्कुराहट से बाँछे खिल गयीं।

अब तो शिखा के मन में जब भी कुछ कड़वाहट जन्म लेती वो प्रखर की बातें दोहरा-दोहराकर मन को ख़ुश कर लेती। कोई उससे आज भी बेपनाह मुहब्बत करता है, यह सोचना ही शिखा को ज़िंदा कर देता, और वह दोगनी ख़ुशी व ऊर्जा के साथ घर के सभी काम करती। शिखा का यह सच प्रखर को बहुत अच्छे से पता था क्योंकि शिखा की आँखों को पढ़ना प्रखर का शुरू से ही जूनून था।

शिखा ने प्रखर और समीर को अंदर आने के लिए हँसते हुए बोला- "अरे वाह! तुम भी समीर के साथ आ गए प्रखर, बहुत अच्छा किया। वैसे भी मैं चाय का पानी चढ़ाने जा रही थी। अब हम तीनों बैठकर गप्पे लगाते हुए चाय पीयेंगे। मेरा चाय पीने का बहुत मन था।"

प्रखर और समीर दोनों ही वॉशरूम में जाकर बारी-बारी फ्रेश हुए। फिर आकर सोफ़े पर बैठ गए। लगभग दो घंटे से पार्क में बैठे हुए वो दोनों गप्पे लगा रहे थे। पार्क में कॉमन टॉपिक्स पर गप्पे होती थीं पर प्रखर या समीर जब अकेले बैठते तो सिर्फ़ अपने परिवारों की बातें करते। समीर पार्क से लौटने के बाद प्रीति से जुड़ी अधूरी बात सुनना चाहता था। प्रखर ने जब कहा कि आज तक उसने प्रीति के साथ गुज़रे विषम समय को किसी से साझा नहीं किया है तब से समीर को न जाने क्यों लग रहा था कि प्रखर से उसकी बातों को सुनकर उसे हल्का कर दे। तभी उसने प्रखर से कहा-

"प्रखर! आज अगर तुम्हारा मन ठीक हो तो उस बात को पूरा करो, जो तुम प्रीति के बारे में बता रहे थे। तुम्हारा कानपुर से लखनऊ का वो ट्रिप, जिसमें प्रीति तुम्हारे साथ थी। फिर क्या हुआ।"

उस रोज़ प्रखर ने समीर की बात का मान रखते हुए कहा था कि एक अरसे बाद वह अपना अतीत खोल रहा है। अगर समीर या शिखा को कहीं पर भी लगे ठहरना है तो उसे रोक देना। प्रीति ने बहुत कष्ट देखे हैं। उसके हर कष्ट की पीड़ाएँ उसने भी ख़ुद महसूस की हैं। अगर वह कहीं बहुत भावुक हो जाए तो उसे माफ़ कर देना।

प्रखर के बात शुरू करने से पहले समीर ने उससे कहा- "कैसी बातें करते हो तुम प्रखर! हम दिल से चाहते हैं तुम भी अपना दर्द साझा करके हल्के हो जाओ। और फिर अपनों के आगे भावुक होना ग़लत नहीं है। हमको भी अपने मित्र के परिवार के बारे में जानकर आत्मीयता का अनुभव होगा। पर हाँ, एक बात है अगर तुम्हें बताने में कोई कष्ट महसूस हो तो हम नहीं सुनेगे।"

प्रखर ने कहा-
“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं समीर! वैसे भी आज प्रीति का बहुत ख़याल आ रहा था। आज हमारी शादी की वर्षगांठ है न! आज सवेरे से ही प्रीति की बातें मेरे आसपास घूम रही थीं। विवाह के बाद सालो-साल साथ गुज़रने से पति-पत्नी एक-दूसरे की आदतों में ढल जाते हैं। एक-दूसरे की बातें बोलने से पहले ही पता चलने लगती हैं। ऐसे में ईश्वर का उसको इतना बड़ा कष्ट देना बहुत चोटिल करता था। बीमारी भी ऐसी थी, जिसने पूरे परिवार के मुस्कुराने पर मानो रोक लगा दी हो। समीर मेरे जीवन में इससे बड़ी परीक्षा की घड़ी कभी नहीं आई।"

प्रखर की कही हुई हर पंक्ति उसकी व्यथा से सराबोर थी। उसकी कही हुई हर बात उसके अंतर्मन को छूती हुई बाहर आ रही थी। प्रखर का बात-बात पर भावुक होना शिखा को भीतर-भीतर रुला रहा था।
शिखा को हमेशा ही लगता था, कुछ लोग रूह से बँधे होते हैं। मगर उनकी बातें, यादें शरीर संग भस्म हो जाती होंगी। पर शायद ऐसा पूर्णतः नहीं होता। भावों का अनंत असीम जोड़ कहीं न कहीं फिर किसी वक़्त में रूहों को जोड़ता है। यही वज़ह है कि हर मनुष्य अपने नए जन्म के साथ कुछ लोगों से बहुत आत्मीयता तो कुछ से कम आत्मीयता की भावनाओं के साथ जुड़ता है।
शिखा को प्रखर का एक-एक शब्द अपना ही लगता था और प्रखर को शिखा अपनी ही रूह का हिस्सा। यही वज़ह थी कि जब वह शिखा की फोन पर आवाज़ सुनता तो कुछ सेकंड के बाद उसकी तरफ से आवाज़ आती और कहता- "तुम्हारी आवाज़ को महसूस करना कितना सुखद और जीए-सा है शिखा! मेरा बस चले तो किसी रोज़ सारा दिन तुमको ही सुनूँ और तुम्हारी आवाज़ में खोया रहूँ। तुम्हारी अनकही भी मुझ तक तुम्हारे मौन के साथ पहुँचती है। सच तो यही है, तुम हमेशा साथ ही रहती हो।"

शिखा के विचारों की श्रृंखला प्रखर की बातों से टूटी। वह प्रीति के बारे में बताना शुरू कर चुका था। शिखा को मन ही मन अफ़सोस भी हुआ कि उसे प्रखर की बातों के आसपास ही होना चाहिए था पर मन का क्या, अब तो उसका मन सारा वक़्त प्रखर के आसपास ही घूमता था।

2 Total Review
S

Sudhanshu Mishra

13 September 2024

बहुत अच्छा लिखा है👍🏻

नीलम व्यास स्वयंसिद्धा

17 July 2024

बहुत अच्छा कथानक व लेखन शैली

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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