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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की सातवीं कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की सातवीं कड़ी

प्रखर को रोता हुआ पाकर शिखा भी फूट-फूट कर रोने लगी। प्रखर को चोट पहुँचे और शिखा चोटिल न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। प्रखर को रोता हुआ देखकर समीर की भी आँखों में भी नमी तैर गई। दर्द जाने-अनजाने में एक-दूसरे की दुखती रगों को छू रहे थे।

प्रखर ने जैसे ही अपनी बातें बताना शुरू की, शिखा प्रखर की बातों को सुनने लगी। तुम दोनों को प्रीति के बारे में बताऊँगा तो मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा। जब हम लखनऊ से कानपुर लौट रहे थे तब प्रीति ने कराहते हुए मुझे बताया कि उसकी पीठ में बहुत तीव्र दर्द है। वह बैठ भी नहीं पा रही। एक दिन पहले भी उसके इसी पैटर्न का दर्द था। तब उसने जो पैन किलर ली थी, आराम आ गया था। जिस रोज़ हम निकलने वाले थे, उसने फिर से वही पैन किलर ली क्योंकि उसे फिर से दर्द महसूस हो रहा था। पर जब दर्द बंद नहीं हुआ तब उसने मुझे बताया।
मैंने प्रीति कहा- "मुझे बताना तो चाहिए था। लखनऊ में ही किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा लेते। कानपुर से बेहतर मेडिकल सुविधाएँ तो लखनऊ में हैं।" ख़ैर हम लोग उसी समय लखनऊ की सीमा से बाहर निकले ही थे, मैंने ड्राइवर को गाड़ी लौटाने को बोल दिया।

प्रीति ने बाद में बताया कि मेरी अर्जेंट मीटिंग्स की वजह से वह चुप रही। रात को मैं काफ़ी देर से आया तब तक वह सो चुकी थी। दर्द की वजह से वह अपने दोस्तों से भी मिलने नहीं गई थी। जब दोस्तों ने उसके पास आने का बोला तो उसने मना कर दिया क्योंकि उसे बैठने-उठने और लेटने में दिक्कत हो रही थी।
तब मैंने ही उसे बोला- "सच में बुद्धू हो तुम प्रीति! कोई ख़ुद के साथ इस तरह लापरवाही करता है क्या! मेरी कितनी भी अर्जेंट मीटिंग होती, मैं तुम्हारे लिए मैनेज करता।"

फिर प्रखर ने समीर और शिखा की ओर देखकर गंभीरता से कहा- "एक उम्र के बाद जीवन-साथी कुछ ज़्यादा ही प्रिय होने लगता है। शरीर की दिनो-दिन बढ़ती निशक्तता शायद एक-दूसरे के साथ को ज़रूरत से ज़्यादा मूल्यवान बना देती है।" उसी समय हम वापस लखनऊ पहुँच गये।

डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने प्रीति का चेकअप किया और कुछ जाँचें करवाने को कहा। हम दोनों ने वहाँ अपना स्टे आगे बढ़ा दिया। फिर शुरू हुआ तरह-तरह की जाँचों के होने का सिलसिला। न जाने कितने एक्स-रे और खून की जाँचे हुईं। सी०टी० स्कैन फिर पैट स्कैन। जब डॉक्टर डाइग्नोसिस पर पहुँचे तब उन्होंने मुझे अपने चैम्बर में बुलाया।

डॉक्टर ने बताया कि उन्हें प्रीति में बोन-कैंसर के लक्षण दिख रहे हैँ पर जब तक वो किसी फाइनल डाइग्नोसिस पर नहीं पहुँचते, वो रिपोर्ट नहीं देंगे। हम दोनों क़रीब-क़रीब सात-आठ दिन लखनऊ में रहे। इस बीच में मुझे प्रीति को मेंटली तैयार करना था। प्रणय को बाहर नौकरी पर गये हुए अभी तीन साल ही हुए थे। अभी तक तो हमने उसके साथ बहुत ज़्यादा बातें साझा नहीं की थी। डॉक्टर की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद ही प्रणय को बताने का निर्णय प्रीति का ही था पर ऐसा हुआ नहीं।

अनायास समीर ने प्रखर से पूछा- "प्रणय का फोन जब हर रोज़ ही आता था तो उसे जिज्ञासा नहीं हुई? आप दोनों वापस कानपुर क्यों नहीं लौटे? उसने नहीं पूछा?" समीर को प्रणय के मन की थाह भी महसूस करनी थी। आहत मन क़दम-क़दम पर अपनों के मन छूना चाहता है ताकि उनकी वेदना को कम कर सके। इसलिए समीर ने बीच में ही प्रखर से पूछा। तब प्रखर ने बताया कि- "प्रणय ही हम दोनों को फोन किया करता था क्योंकि हमें उसकी मीटिंग्स और उसके कमिट्मेंट्स का इंडिया में बैठकर पता नहीं चलता था। हमने उसे ही बोल रखा था कि जब भी तुम फ्री हो, हमें फोन कर लिया करो। हालाँकि वह हमसे बोला करता था- "पापा ऐसा कुछ भी नहीं है। आप दोनों कभी भी फोन करेंगे तो मैं ले लूँगा। अगर ज़्यादा बिज़ी हुआ तो बाद में समय निकालकर आपको लगा लूँगा।"

पर समीर! मुझे लगता था वह ख़ुद फोन करे। हरेक के काम की कुछ लिमिटेशंस होती हैं। शुरू के एक-दो साल जब वो गया ही था, हमें यही लगता था कि उसकी नई-नई नौकरी है, जितना समर्पित होकर काम करेगा, अच्छा गैन करेगा। प्रणय अपने काम के प्रति बहुत मेहनती व समर्पित है।
सच कहूँ तो हमें उस अंतराल में कभी भी ऐसी इमर्जेंन्सी नहीं हुई कि उसे फोन करने की ज़रूरत पड़ी हो। उसे हम दोनों से ही अलग-अलग बात करके तसल्ली मिलती थी। अपनी माँ को वह सवेरे फोन किया करता था और मुझे रात को। मेरा सारा दिन ऑफिस में जो निकलता था। प्रणय को शक तब हुआ जब उसने प्रीति को फोन लगाया और उसका फोन मैंने उठाया। उस रोज़ प्रीति टेस्टिंग के लिए गई हुई थी।

मेरे फोन उठाने पर प्रणय ने कहा- "पापा! आप तो माँ का फोन नहीं लेते हैं। आपके पास माँ का फोन कैसे है? पिछले दो-तीन बार से माँ का फोन आप ही ले रहे हैं। माँ ठीक तो हैं, कुछ भी बहुत सीरीअस है तो मुझे बताइए।" उस दिन मैं प्रणय से प्रीति की तबीयत अचानक ख़राब हो जाने की बात को छिपा नहीं पाया शिखा! मैंने प्रणय से कहा- "प्रीति को काफ़ी बैक पैन था बेटा, इसलिए हम लखनऊ में ही रुक गए थे। अभी टेस्ट चल रहे हैं। जैसे ही रिपोर्ट्स आएँगी, मैं ख़ुद तुम्हें बताऊँगा। तुम अपनी माँ से डायरेक्टली बात मत करना। अभी थोड़ा डिस्टर्ब है वो।"
"क्या सस्पेक्ट कर रहे हैं डॉक्टर्स पापा।"
"बोन कैंसर।" प्रीति के काफ़ी सेकंडरीस डिवेलप हो गई हैं। डॉक्टर्स आगे और भी जाँचें करना चाहते हैं ताकि कैंसर के प्राइमेरी सोर्स का पता चल सके। उसी के हिसाब से लाइन ऑफ ट्रीट्मन्ट डॉक्टर्स की टीम तय करेगी।"
तब प्रणय ने मुझसे कहा- "मैं आना चाहता हूँ पापा! मैं नहीं चाहता कि आप अकेले परेशान हों। मैं माँ के पास रहूँगा तो उन्हें भी ठीक लगेगा। मैं अपने टिकेट्स तीन-चार दिन बाद जब भी मिलती हैं, करवा रहा हूँ।"
उसकी बातों को सुनकर मैंने कहा, "इंतज़ार करना चाहो तो रुक जाओ अभी। समीर! जानते हो क्या बोला- "पापा, आप दोनों के बोलने से मुझे आपके हाल-चाल महसूस हो जाते हैं। आप अकेले सभी परेशानियों से कैसे जूझेंगे पापा! चैन तो मुझे यहाँ भी नहीं होगा। आप दोनों के पास रहूँगा तो मन में तसल्ली रहेगी।"

जानते हो समीर! उस रोज़ मैंने प्रणय को पहली बार फोन पर रोते सुना। उसको रोता हुआ पाकर मैं भी ख़ुद को रोने से नहीं रोक पाया। इतना बड़ा बेटा अगर माँ-बाप के आगे रोए तो किसका जी नहीं फटेगा! अपनी बात बोलते-बोलते प्रखर समीर और शिखा के सामने फिर से रोने लग गया। प्रखर ने जिस दर्द को ख़ुद में समेट कर रखा था, वह अब आँसुओं में बिखरने लगा था।

प्रखर को रोता हुआ पाकर शिखा भी फूट-फूट कर रोने लगी। प्रखर को चोट पहुँचे और शिखा चोटिल न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। प्रखर को रोता हुआ देखकर समीर की भी आँखों में भी नमी तैर गई। दर्द जाने-अनजाने में एक-दूसरे की दुखती रगों को छू रहे थे। समीर ने प्रखर के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे सांत्वना दी।

दरअसल प्रखर स्वभाव से जितना सख्त अनुशासनप्रिय अपनी नौकरी में था, वह उतना ही संवेदनशील भी था। यही वजह थी कि उसने अपने पूरे कार्यकाल में बहुत शांति से नौकरी की। उसके कार्यकाल में कुछ ऐसे काम हुए, जिनकी अख़बारों में भी ख़ूब चर्चा हुई। उसकी छवि बहुत अच्छे ईमानदार आई०ए०एस० ऑफिसर की थी। आज प्रखर पहले से ही काफ़ी भावुक हो रहा था। तभी प्रीति की बीमारी से जुड़ी बातें बताते-बताते वह बार-बार ख़ुद को सँभाल रहा था। शिखा और समीर पूरी तरह उसकी बातों में खोए हुए थे। प्रखर ने अपनी बात पुनः शुरू की- "मैंने जब प्रीति को प्रणय के आने के बारे में बताया तो प्रीति उस समय कुछ भी नहीं बोली बस उसकी आँखें आँसुओं से भर आयीं।" जब मैंने उससे पूछा- "क्या हुआ, परेशान हो प्रीति? बोली- "प्रखर! कितना समय है मेरे पास? इतना तो मैं समझ चुकी हूँ कि मुझे कैंसर है क्योंकि जो भी टेस्ट डॉक्टर ने मेरे करवाए हैं, वो सब कैंसर में ही होते हैं। बस मुझे इतना बता दो कि मेरे पास लगभग कितना समय अब शेष है?"

उसकी बातें सुनकर रोते हुए मैंने प्रीति को कसकर गले लगा लिया था। उसने बहुत धैर्यपूर्वक कहा था- "इतने कमज़ोर मत पड़ो प्रखर! हर मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति का तुमने बहुत हिम्मत से सामना किया है। कमज़ोर तो मैं पड़ती रही हूँ और तुमने मुझे संभाला है। मैं जाने से पहले तुम्हें कमज़ोर पड़ता हुआ नहीं देखना चाहती हूँ। हालाँकि अभी मैं बहुत ज़्यादा सोच नहीं पा रही हूँ। मेरे दिमाग़ में पूरी तरह शून्य बिखरा हुआ है। मगर फिर भी...। तुमने मुझे बहुत कुछ दिया है प्रखर! कुछ दिन बाद प्रणय आ जाएगा तो अच्छा रहेगा। वह हम दोनों को ही बहुत प्यार करता है। आप उसके आदर्श हैं। मेरे जाने के बाद आपको ही उसका पूरी तरह ख़याल रखना होगा।"

समीर...! उस एक ही क्षण में मुझे अपनी ज़िंदगी में प्रविष्ट होने वाला निर्वात बहुत गहरे तक महसूस हो गया था। उस दिन प्रीति जिस तरह मेरे गले लगी हुई थी, इस तरह के सारे एहसास मेरे जीवन से हमेशा-हमेशा के लिए विलुप्त होने वाले थे। तभी अस्पताल के स्टाफ़ ने मुझे डॉक्टर के चैम्बर में पहुँचने को कहा। रास्ते में उसने बताया कि पेशेंट प्रीति की बची हुई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं। मैं डॉक्टर के चैम्बर में पहुँचा। डॉक्टर ने मुझे बैठने को कहा और बताया-
"प्रीति के कैंसर का प्राइमेरी सोर्स ब्रेस्ट था। शायद मरीज़ को पहले कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई होगी तभी उन्होंने कोई कम्प्लैन्ट नहीं की। कैंसर जब बोन्स में पहुँच गया और उन्हें तेज बैक-पैन हुआ, तभी आप लोगों का अस्पताल आना हुआ। कई बार ऐसा होता है। बीमारी जब शरीर में काफ़ी फैल जाती है तब उसके लक्षण मरीज़ को महसूस होते हैं।

कैंसर के बोन्स में पहुँच जाने की वजह से प्रीति की बोन्स खोखली हो गई थीं। डॉक्टर ने मुझे कहा कि अब प्रीति को किसी भी तरह की चोट नहीं लगनी चाहिए। अगर एक बार बोन टूट गई तो वो जुड़ेगी नहीं। कैंसर का नेचर बहुत एग्ररेसीव है। बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं कर सकते। आपको भी ख़ूब ध्यान रखना होगा।" प्रीति की सभी मेडिसिंस डॉक्टर ने मुझे लिखकर दे दी थी। साथ ही भविष्य में कोई भी दिक्कत आए तो हम उनसे बेहिचक संपर्क कर सकते हैं, बोलकर उन्होंने सांत्वना दी।

समीर! उस रोज़ मैं डॉक्टर को थैंक्स बोलकर चैम्बर से निकल आया पर प्रीति के रूम तक पहुँचने में मुझे महसूस हुआ कि मेरी सारी ताक़त निचुड़ गई हो। मेरे हाथ-पाँव कमरे तक पहुँचने में मेरा साथ नहीं दे रहे थे। जितना मैं कमरे की ओर बढ़ रहा था, उतना ही कहीं अंदर-अंदर टूटकर बिखर रहा था।

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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