Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

ख़ुरशीद खैराड़ी की ग़ज़लें

ख़ुरशीद खैराड़ी की ग़ज़लें

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जाएँ तो धागे टूट जाते हैं

चमन में बेटियों के वालिदों-सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का बोझ पौधे टूट जाते हैं


ग़ज़ल- एक  

अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं
ज़रा-सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जाएँ तो धागे टूट जाते हैं

बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो
ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं

किसी दर पर झुकाना सर नहीं मंजूर हमको भी
करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं

तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यों ज़र्रे
अगर गर्दिश में हो तारे, सितारे टूट जाते हैं

चमन में बेटियों के वालिदों-सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का बोझ पौधे टूट जाते हैं

शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब-जब
समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं

न बन यूँ कोह, चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर
ग़मों के बोझ से तो अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं

सवेरा इसलिये ख़ुरशीद फिर लेकर चला आया
मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं

******************


ग़ज़ल- दो 

सताए कोई ग़म ग़ज़ल गुनगुनाओ
अगर आँख हो नम ग़ज़ल गुनगुनाओ

जिसे मीर, ग़ालिब, ज़फ़र ने उठाया
उठाकर वो परचम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

जिसे दाग़, हाली, अदम ने बिछाया
बिछाकर वो जाजम ग़ज़ल गुनगुनाओ

जिसे फैज़, साहिर, निदा ने सजाया
सजाकर वो सरगम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

किसी का तसव्वुर, सजे ख़्वाब बनकर
रहे नींद बरहम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

किसी बेवफ़ा को अगर दिल तुम्हारा
करे याद पैहम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

बहारों-सा दिलकश, सुहाना लगेगा
ख़िज़ाँ का ये मौसम ग़ज़ल गुनगुनाओ

कोई चोट दिल की, हो कितनी भी गहरी
यही एक मरहम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

अंधेरों में 'ख़ुरशीद' की शाइरी से
उजाला है हरदम, ग़ज़ल गुनगुनाओ

******************


ग़ज़ल- तीन 

तिश्नगी, तिश्नगी ही रही उम्र भर
मयकशी, मयकशी ही रही उम्र भर

हैरती सारे सिंगार फीके पड़े
सादगी, सादगी ही रही उम्र भर

नाज़ ग़ाफ़िल हुआ आगही तेरा भी
बेख़ुदी, बेख़ुदी ही रही उम्र भर

बेकली, हसरतें, रंज-ओ-ग़म, कशमकश
ज़िंदगी, ज़िंदगी ही रही उम्र भर

कैफ़-ए-उल्फ़त पिया, ज़ौक़-ए-क़ुर्बत जिया
बेदिली, बेदिली ही रही उम्र भर

इक तुम्हारे सिवा मुझको सब कुछ मिला
इक कमी, इक कमी ही रही उम्र भर

आप ख़ुरशीद जी दिल जलाते रहे
तीरगी, तीरगी ही रही उम्र भर

******************


ग़ज़ल- चार 

सियाह शब है सहर तलाशो
कोई मुनव्वर सफ़र तलाशो

ख़ुदी को छोड़ो, रखो भरोसा
ख़ुदा मिलेगा अगर तलाशो

यूँ धूप ओढ़े चलोगे कब तक
जो छाँव दे वो शजर तलाशो

बुझी नहीं है, दबी हुई है
बिखेरो तूदा शरर तलाशो

मेरे हबीबो, दिलों पे अपने
मेरे सुख़न का असर तलाशो

जो हक़परस्ती पे जां लुटा दे
कोई तो ऐसा बशर तलाशो

ज़मीं बिछौना, फ़लक है चादर
पसर के सोओ, न घर तलाशो

गुलाब-ए-उल्फ़त कहाँ उगाएँ
किसी का दिल हो, हजर तलाशो

दरख़्त सारे बबूल के हैं
यहाँ न यारो समर तलाशो

है झूठ लेकिन छुपा है सच भी
इसी ख़बर में ख़बर तलाशो

है दार ख़ाली, सलीब ख़ाली
किसी अना का तो सर तलाशो

जो ढूँढ़ती हो फ़क़त मुहब्बत
कोई तो ऐसी नज़र तलाशो

******************


ग़ज़ल- पाँच 

निगाहों में अगोचर एक तू ही है
निहां रहकर उजागर एक तू ही है

तेरा ही अक्स रौशन है हर इक शय में
हर इक साये का पैकर एक तू ही है

तेरा ही ज़िक्र है वा-चश्म सफ़्हों में
हुआ शाए जो अक्षर एक तू ही है

अज़ल से तू, अबद तक तू फ़क़त तू ही
सनम तेरे बराबर एक तू ही है

हर इक रस्ते की मंज़िल, छोर हर सफ़ का
हर इक दरिया का सागर एक तू ही है

नचाता है सभी को जो इशारों पर
वो ला-फ़ानी कलंदर एक तू ही है

सभी में नूर है ख़ुरशीद तेरा ही
अँधेरों में मुनव्वर एक तू ही है

******************

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

ख़ुरशीद खैराड़ी

ईमेल : khairadikhursheed@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

मूल नाम- महावीर सिंह
निवास- म० क्र०- 4045, नेहरू पार्क रेलवे कॉलोनी, रेजीडेंसी रोड़, जोधपुर (राजस्थान)- 342003
मोबाइल- 9001198483