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अलका मिश्रा की ग़ज़लें

अलका मिश्रा की ग़ज़लें

टूट गया जब सब्र नदी का उस लम्हा
जितने  थे  मज़बूत  किनारे  टूट  गए

ग़ज़ल- एक

एक किरन से डर कर हारे, टूट गये
बेशक गहरे थे अँधियारे टूट गये

टूट गया जब सब्र नदी का उस लम्हा
जितने थे मज़बूत किनारे टूट गये

अव्वल-अव्वल तो अच्छे थे, सब अच्छे
आख़िर-आख़िर रिश्ते प्यारे टूट गये

आख़िर हिम्मत साथ निभाती भी कब तक
ग़म के मारे थे बेचारे, टूट गये

तेरी ख़्वाहिश मेरे होठों तक आई
उस अम्बर से कितने तारे टूट गये

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ग़ज़ल- दो

ज़मीं पे आने से साँसों के रूठ जाने तक
रहे सफ़र में मुसलसल क़ज़ा के शाने तक

जो क़ायनात पे हक़ अपना मान बैठे थे
लो वो भी आ ही गये, आख़िरी ठिकाने तक

चमक रही थी मुहब्बत ज़मीन पर दिल की
वफ़ा की धूप पे बादल जफ़ा के छाने तक

रही हैं मुश्किलें सर को कहीं झुकाने तक
सफ़र की गर्द को अपना ख़ुदा बनाने तक

सुना है आप इनायत सभी पे करते हैं
कभी तो आएँ हमारे ग़रीबख़ाने तक

नहीं है उम्र कोई तय किसी भी रिश्ते की
रहेगा साथ कोई सिर्फ़ आज़माने तक

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ग़ज़ल- तीन

जिन परों में उड़ान ज़िंदा है
उनमें इक आसमान ज़िंदा है

हारी बाज़ी वो जीतना चाहे
यानी अब भी गुमान ज़िंदा है

वक़्त ने घाव भर दिया लेकिन
अब भी उसका निशान जिंदा है

आदमी हौसला रखे कब तक
रोज़ इक इम्तिहान ज़िंदा है

जाके ऊँचाइयों पे ये जाना
अब भी इक पायदान ज़िंदा है

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ग़ज़ल- चार

तोड़ देती हैं बेड़ियाँ अक्सर
क़ैद में रह के बेटियाँ अक्सर

चीर देती हैं दिल के दामन को
तंग ज़ेह्नों की बर्छियाँ अक्सर

ख़्वाब आँखों में छोड़कर आधे
जाग जाती हैं लड़कियाँ अक्सर

ज़ह्र रिश्तों में घोल देती हैं
सख़्त लहजे की तल्ख़ियाँ अक्सर

नाम पर्ची पे उसका लिख-लिख के
दिल लगाता है अर्ज़ियाँ अक्सर

जब भी सोचूँ मैं उसके बारे में
याद आती हैं ख़ूबियाँ अक्सर

ज़िंदगी औरतों को देती हैं
घर की छोटी-सी खिड़कियाँ अक्सर

दिल में चुभती हैं आज भी मेरे
टूटे रिश्तों की किर्चियाँ अक्सर

*************


ग़ज़ल- पाँच

बाहर तो सिकन्दर के ही पैकर-सी रही हूँ
अंदर से मगर रूह-ए-कलन्दर-सी रही हूँ

हालात ने मज़बूत मुझे इतना बनाया
मिट्टी से बने जिस्म में पत्थर-सी रही हूँ

इक जंग मुसलसल-सी मेरी ख़ुद से रही है
मैं ज़ात में अपनी किसी हैदर-सी रही हूँ

हालात ने मज़बूत मुझे इतना बनाया
मिट्टी से बने जिस्म में पत्थर-सी रही हूँ

जब तक न मेरी कोख़ से कोंपल कोई फ़ूटी
लोगों की नज़र में किसी बंजर-सी रही हूँ

ख़्वाहिश को किया दफ़्न उमीदों को झिंझोड़ा
बेशक़ मैं ख़ुद अपने लिए नश्तर-सी रही हूँ

थक हार के सो जाते हैं साए में मेरे सब
मानूस दीवारों में बसे घर-सी रही हूँ

तनहाई मेरी ज़ीस्त का हिस्सा रही लेकिन
लोगों के लिए भीड़ के मंज़र-सी रही हूँ

 

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रचनाकार परिचय

अलका मिश्रा

ईमेल : alkaarjit27@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि-27 जुलाई 1970 
जन्मस्थान-कानपुर (उ० प्र०)
शिक्षा- एम० ए०, एम० फिल० (मनोविज्ञान) तथा विशेष शिक्षा में डिप्लोमा।
सम्प्रति- प्रकाशक ( इरा पब्लिशर्स), काउंसलर एवं कंसलटेंट (संकल्प स्पेशल स्कूल), स्वतंत्र लेखन तथा समाज सेवा
विशेष- सचिव, ख़्वाहिश फ़ाउण्डेशन 
लेखन विधा- ग़ज़ल, नज़्म, गीत, दोहा, क्षणिका, आलेख 
प्रकाशन- बला है इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित
101 महिला ग़ज़लकार, हाइकू व्योम (समवेत संकलन), 'बिन्दु में सिन्धु' (समवेत क्षणिका संकलन), आधुनिक दोहे, कानपुर के कवि (समवेत संकलन) के अलावा देश भर की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा- अभिनव प्रयास, अनन्तिम, गीत गुंजन, अर्बाबे कलाम, इमकान आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
रेख़्ता, कविता कोष के अलावा अन्य कई प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं हस्ताक्षर, पुरवाई, अनुभूति आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्पादन- हिज्र-ओ-विसाल (साझा शेरी मजमुआ), इरा मासिक वेब पत्रिका 
प्रसारण/काव्य-पाठ- डी डी उत्तर प्रदेश, के टी वी, न्यूज 18 आदि टी वी चैनलों पर काव्य-पाठ। रेखता सहित देश के प्रतिष्ठित काव्य मंचों पर काव्य-पाठ। 
सम्मान-
साहित्य संगम (साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था तिरोड़ी, बालाघाट मध्य प्रदेश द्वारा साहित्य शशि सम्मान, 2014 
विकासिका (साहित्यिक सामजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था कानपुर द्वारा ग़ज़ल को सम्मान, 2014
संत रविदास सेवा समिति, अर्मापुर एस्टेट द्वारा संत रवि दास रत्न, 2015
अजय कपूर फैंस एसोसिएशन द्वारा कविवर सुमन दुबे 2015
काव्यायन साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित, 2015
तेजस्विनी सम्मान, आगमन साहित्य संस्था, दिल्ली, 2015
अदब की महफ़िल द्वारा महिला दिवस पर सम्मानित, इंदौर, 2018, 2019 एवं 2020
उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2018, 2019, 2021 एवं 2023 में सम्मानित
संपर्क- एच-2/39, कृष्णापुरम
कानपुर-208007 (उत्तर प्रदेश) 
 
मोबाइल- 8574722458