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डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें

डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें

डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें अपने समय के यथार्थ का पूरा ख़ाका खींचती हैं। इनकी ग़ज़लों में सत्ता और व्यवस्थाओं के खेल, माफ़ियाओं का आतंक, आम आदमी को वंचित रखने की कवायदें, नदी-पेड़-पर्वतों की चिंता, समाज के अशिक्षित तथा ग़ैरज़िम्मेदार इंसान की कारगुज़ारियाँ आदि वे सब चीज़ें मिलती हैं, जिनसे दुःख पैदा होते हैं। अच्छी बात यह भी है कि डॉ० जोशी अपनी ग़ज़लों में लगातार आम आदमी को सम्बोधित किये रहते हैं और उसे इन दुखों से, इन मुसीबतों से पार होने के तरीक़े समझाते रहते हैं। पर्यावरण, पहाड़ और पहाड़ी जीवन की झलक इनकी ग़ज़लों में जगह-जगह देखने को मिलती है।

ग़ज़ल- एक 

ज़िंदगी में ज़िंदगी की बात करना
है कठिन अब रोशनी की बात करना

सच कहें तो आज भी मुश्किल बहुत है
भूख, रोटी, बेबसी की बात करना

गाँव जाकर पेड़ से तुम पत्तियों की
और तितली से परी की बात करना

पूछना तुम हाल पहले जंगलों के
फिर पहाड़ों से नदी की बात करना

आज के इस दौर में कितना कठिन है
आदमी से आदमी की बात करना

बात करना तुम उजाले की कहीं पर
ओ अँधेरो! चाँदनी की बात करना

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ग़ज़ल- दो 

लाचारी के दौर में कोई लाचारों के साथ नहीं था
तूफ़ानों के डर से कोई मछुआरों के साथ नहीं था

जंगल, बस्ती और जहाँ भी आग लगाई थी जिस दिन भी
उस दिन कोई भी अंगारा अंगारों के साथ नहीं था

हर युग में लड़ने वाला हर सैनिक ख़ूब लड़ा था, पर वो
हथियारों के बीच में रहकर हथियारों के साथ नहीं था

सच्चाई के नाम पे जब-जब झूठ छपा था अख़बारों में
अख़बारों का अक्षर-अक्षर अख़बारों के साथ नहीं था

बिकने वाले की कीमत तो तय कर दी बाज़ारों ने, पर
बिकने वाला माल कभी भी बाज़ारों के साथ नहीं था

जंगल-जंगल, पर्वत-पर्वत, भटका लेकिन क्या जानूं मैं
क्यों बंजारा होकर भी मैं बंजारों के साथ नहीं था

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ग़ज़ल- तीन 

वे नदी के पार जंगल बेचते हैं
इस तरह धरती का आँचल बेचते हैं

बेचते हैं चीड़, सेमल और भीमल
बांज, शीशम और पीपल बेचते हैं

गर्मियों में बेचते हैं ख़ूब छाते
सर्दियों में रोज़ कंबल बेचते हैं

कुछ तो होंगी ग़लतियाँ कल की तुम्हारी
जो ये बच्चे आज काफल बेचते हैं

बेचते हैं रोज़ खेतों को जो सपने
आसमां को ख़ूब बादल बेचते हैं

छीनकर पनघट, वो गगरी और धारे
गाँव के लोगों को वो नल बेचते हैं

बेचते हैं आज जो भी आज अपना
वो तो अपने मुल्क़ का कल बेचते हैं

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ग़ज़ल- चार 

बादल गरजे तो डरते हैं नए-पुराने सारे लोग
गाँव छोड़कर चले गए हैं कहाँ न जाने सारे लोग

खेत हमारे नहीं बिकेंगे औने-पौने दामों में
मिलकर आए हैं पेड़ों को यही बताने सारे लोग

मैंने जब-जब कहा वफ़ा और प्यार है धरती पर अब भी
नाम तुम्हारा लेकर आए मुझे चिढ़ाने सारे लोग

गाँव में इक दिन एक अँधेरा डरा रहा था जब सबको
ख़ूब उजाला लेकर पहुँचे उसे भगाने सारे लोग

भूखे बच्चे, भीख माँगते कचरा बीन रहे लेकिन
नहीं निकलते इनका बचपन कभी बचाने सारे लोग

धरती पर ख़ुद आग लगाकर भाग रहे जंगल-जंगल
ढूँढ रहे हैं मंगल पर अब नए ठिकाने सारे लोग

इनको भीड़ बने रहने की आदत है, ये याद रखो
अब आंदोलन में आए हैं समय बिताने सारे लोग

चिड़ियों के पंखों पर लिखकर आज कोई चिट्ठी भेजो
ऊब गए है वही पुराने सुनकर गाने सारे लोग

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ग़ज़ल- पाँच 

अंधियारों से तो ये डर बोलेगा जाकर
दरबारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

ये बोलेगा इससे, उससे वो बोलेगा
सरकारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

तू भी है उस पार कहीं, इस पार कहीं मैं
दीवारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

चाँद, समंदर, साजिश, कश्ती, ख़ामोशी है
मछुआरों से कौन मगर बोलेगा जाकर

जंगल-जंगल आग लगी है, बुझना होगा
अंगारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

थोड़ा चूल्हा सुलगाओ, कुछ धुँआ दिखे तो
बंजारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

क्या लिखना है, क्या लिखते हो, शर्म करो कुछ
अख़बारों से कौन मगर बोलेगा जाकर

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Avinash Bharti

10 November 2024

उम्दा ग़ज़लें

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रचनाकार परिचय

राकेश जोशी

ईमेल : joshirpg@gmail.com

निवास : देहरादून (उत्तराखण्ड)

जन्मतिथि- 9 सितंबर, 1970
जन्मस्थान- ग्राम- गुगली (चंद्रापुरी), ज़िला- रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड)
शिक्षा- अंग्रेजी साहित्य में एम० ए०, एम० फ़िल०, डी० फ़िल०
संप्रति- राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड में अंग्रेज़ी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष
विशेष- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार में हिंदी अनुवादक के पद पर मुंबई में कार्यरत रहे। मुंबई में ही उन्होंने थोड़े समय के लिए आकाशवाणी विविध भारती में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी कार्य किया।
प्रकाशन- 'कुछ बातें कविताओं में' (काव्य संग्रह), 'पत्थरों के शहर में', 'वो अभी हारा नहीं है' और 'हर नदी की आँख है नम' (ग़ज़ल-संग्रह) प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान/पुरस्कार- महाकवि कालिदास जन्म भू-स्मारक समिति कविल्ठा, कालीमठ, रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड द्वारा 'कालिदास सम्मान-2023'
मोबाइल- 9411154939