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आशा देशमुख के गीत

आशा देशमुख के गीत

कच्ची पगडंडी पर
बजते निरगुन
पाखी के कलरव में
दुआ के शगुन,
 

एक- भ्रांतियाँ
 
भ्रांतियाँ कुछ भी कहे पर पूजनीया हैं दिशाएँ
 
पूर्व की आभा प्रखर
बिखरा अरुण का तेज है
सांध्य पश्चिम का महल
 दिनमान का सुख सेज है ।
 
रात दिन परिचारिका सम दौड़ती फिरती हवाएँ ।
 
उत्तराशा अंक खेले
अर्कजा मन्दाकिनी ।
तप्त मन को शम करे ,
मलयज बयारें दक्खिनी ।
 
नभ अहाते में विचरती शुभ्र सुन्दर तारिकाएँ
 
शुभ अशुभ सब सोच मन की
नियति तो निष्पक्ष है ,
टोटके व्यापार करते
भ्रम ठगी में दक्ष है ,
 
चर चराचर पर रखें परिशुद्ध कोमल भावनाएँ।

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दो अंगुल की देह
 
विचर रही छलछद्म वेष में ,
दो अंगुल की देह।  
 
धूर्त चतुर पाखंडी लोभी
पल पल रचते माया,
मिल जाये बस ठौर ठिकाना,
कैसी भी हो काया,
 
कपट बहे नस नस के अंदर ,
मुख दिखलाता नेह । 
 
चंदन तिलक लगाकर ढोंगी
फाँस रहा है मछली,
आँख बंद संतो के जैसी
नज़र रखी पर उथली,
 
पशु क्या जाने रिश्ते नाते,
क्या जंगल क्या गेह। 
 
इंद्र विष्णु देवों को देखो
कम पड़ जाती निंदा,
पाहन बनकर रही हिल्या
पात बनी है वृन्दा ,
 
बड़ी पदवियों ने भी लाँघी
नैतिकता की रेह। 
 
सृजन हेतु कुदरत रचती है
माटी से नर मादा,
खेल न समझे कोई इनको
रहे एक मर्यादा,
 
समय चक्र की सीमा में ही,
नभ बरसाता मेह। 

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सो- स्वप्न लिए हैं
 
स्वप्न लिए हैं पंख सुनहरे,
और नींद है दूर खड़ी।
 
सूप टँगा है काम बिना तो
चिड़ियों ने उपवास रखे,
थकी थकी सी चली चीटियाँ
नमक डली को कौन चखे।
 
अम्मा के हाथों में थैली,
देख काग की नज़र गड़ी।
स्वप्न लिए हैं पंख सुनहरे,
और नींद है दूर खड़ी।
 
धूल उड़े नदियों के घर में
आरी घूमें जंगल में
शुक्र मनाता शनि घर घर में
रवि रहता सुख मंगल में।
 
रोग ग्रसित सी लगें हवाएँ,
जैसे लेकर चले छड़ी।
स्वप्न लिए है पंख सुनहरे,
और नींद है दूर खड़ी।
 
प्रेम सुनो तो कौन धनी है
बिना माँग के माँग भरे।
कर्ज लदे पालनकर्ता पर
कौन विधाता कष्ट हरे।
 
चिंताओं के बंधक सपने,
मिले यातना घड़ी घड़ी।
स्वप्न लिए है पंख सुनहरे,
और नींद है दूर खड़ी।

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तीन- सुनो ज़रा 
 
सुनो ज़रा सुनो ज़रा
 
कच्ची पगडंडी पर
बजते निरगुन
पाखी के कलरव में
दुआ के शगुन,
 
हाथों में नाचती
ऋचाओं को गुनो ज़रा
 
सुनो ज़रा सुनो ज़रा
 
आँवें पर नाच रहा
भोला सा दीप
स्वेद के समुन्दर में
बालियों के सीप,
 
मिट्टी के हाटों से
माल खरा चुनो ज़रा
 
सुनो ज़रा सुनो ज़रा
 
बतख़ोरी हैं करते 
छींदों के पात 
गुच्छों में लटकी 
मीठी सी सौग़ात
 
खुरदुर से हाथों से
जीवन को बुनो ज़रा।
 
सुनो ज़रा सुनो ज़रा।

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चार- बचपन
 
बचपन के सब खेल खिलौने,क़िस्सा कथा कहानी।
यादों में भी लाड़ लगातीं, ताई, दादी, नानी।
 
छुक छुक गाड़ी छुपन छुपाई, दे ताली दे ताली।
झूला झूले सखी सहेली, लहसे अमुवा डाली।
बोल बोल कर राजा-रानी, इत्ता, इत्ता पानी।
बचपन के सब खेल खिलौने,
क़िस्सा कथा कहानी।
 
सुन्दर सजे बैलगाड़ी पर, कितना घूमे मेला।
खोवा पेड़ा माल बताशे, और चाट का ठेला।
भाई बहनों में हरदम थी, होती खींचातानी।
बचपन के सब खेल खिलौने, क़िस्सा कथा कहानी।
 
भोर साँझ पंछी का कलरव,सच्ची यही घड़ी थी।
रिश्ते नातों में भोलापन, मन से जुड़ी कड़ी थी।
बोरी के बस्ते रख रखकर, अल्हड़ हुई सयानी।
बचपन के सब खेल खिलौने, क़िस्सा कथा कहानी।
 
इमली आमा बिही करौंदे, तोड़ तोड़ कर खाते।
तैराकी करते तालों पर, छुटमुट शर्त लगाते।
गाँव मुहल्ला कुटुंब कबीला, आशीषों की बानी।
बचपन के सब खेल खिलौने,
क़िस्सा कथा कहानी।
 
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रचनाकार परिचय

आशा देशमुख

ईमेल :

निवास : कोरबा (छत्तीसगढ़)

आशा देश मुख छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठित रचनाकार है। मूलरूप से छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखती हैं। उनका छत्तीसगढ़ी व हिंदी में शिव तांडव का भावानुवाद बहुत पसंद किया है।आशा जी के  हिंदी नवगीत भी बहुत प्रभावशाली होते हैं। 
प्रकाशित पुस्तक- छंद चंदैनी
मोबाइल- 90396 95208
संपर्क- एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)