Ira
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अमरीक सिंह दीप की कहानी 'हरम'

"ये फटेहाल बदहवास मुफ़लिस लोग और हरम? अच्छा मज़ाक कर लेते हो तुम।"
"मज़ाक नहीं हुज़ूर, ये हक़ीक़त बयानी कर रहा हूँ मैं। इस वक़्त इस मुल्क पर अंग्रेजों की नहीं, इसी मुल्क में रहने वाले दौलतमंदों और सौदागरों की हुकूमत है। इन सरमायेदारों और सौदागरों का एक ही मज़हब हैं– दौलत। दौलत के लिए ये अपना दीन-ईमान ही नहीं, अपनी बीवी, बेटी, बहन यहाँ तक कि अपनी माँ को बेचने तक में गुरेज़ नहीं करते।"