Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ० अमिता दुबे की कहानी- छल

सौमित्र के आने के बाद हमारी दिनचर्या रसमय हो गयी थी। अब अपेक्षाकृत अनिंद्य और अरुशी हमें कम याद आते थे। सौमित्र ने वह स्थान ले लिया जो मेरे बच्चों के बाहर जाने से रिक्त हुआ था। मेरी ममता फल-फूल रही थी। अभिजीत ने भी कभी मुझे कुछ नहीं कहा। एक प्रकार से उसके प्रति मेरी बढ़ती ममता को उनकी भी स्वीकृति प्राप्त थी।

रंजना जायसवाल की कहानी 'लड़के की माँ'

कुछ दिनों पहले ही नाडी ने पड़ोसी के मुख्य द्वार पर बनी सूखी नाली में बच्चे दिए थे शायद नाडी अपने बच्चों को छोड़कर खाने-पीने की तलाश में निकली थी। उसके बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे और माँ की तलाश करते-करते सड़कों पर निकल आए थे। वह कुटकुट के शरीर के पास ऐसे बिखरे हुए थे, जैसे किसी बच्चे की गुल्लक अचानक से टूट गई हो और सिक्के सड़क पर बिखर गए हों। कुटकुट के लिए वह गुल्लक के सिक्के ही तो थे, जो उसे ख़ुशी दे गए थे। कुटकुट मुझे जिस तरह से देख रही थी कि मेरा मन भर आया।

उर्मिला आचार्य की कहानी "शुद्धिकर्म"

शहर, भीतर-भीतर घना हो रहा था। घास के मैदान गायब होते जा रहे थे। अब तो साहबों के बंगले पर या खेल के मैदान तक ही रह गए थे जिसके कारण शहर से तीन चार किलोमीटर दूर जाकर साइकिल पर चारा लाना ले जाना पुन्नू के लिए कठिन हो गया था।

विनीता शुक्ला की कहानी 'विश्रांति'

स्मृतियाँ अपने कपाट फटफटाने लगीं। संध्या का झुटपुटा उनको जकड़ने लग गया। जान पड़ा मानों कल की कुहरीली सांझ, पुनः जीवंत होकर; अभिशप्त परछाइयों के पंजे फैला रही हो। उस दुर्घटना को 24 घंटे भी न बीते होंगे। इसी क्लब हाउस के चौराहे से बमुश्किल सात फीट की दूरी पर वह अप्रत्याशित काण्ड हुआ था। एक लापरवाह-सा नौजवान, अपनी बेकाबू हो चुकी बाइक को लेकर रंधीर की कार से जा भिड़ा। ग़लती उस युवक थी; फिर भी अपराधी वे बने।