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प्रतिमा श्रीवास्तव की कहानी 'ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है'

प्रतिमा श्रीवास्तव की कहानी 'ज़िन्दगी  ख़ूबसूरत है'

देह और मन की याददाश्त होती है, उससे कभी भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता, अगर देवयानी उस देह-गंध के साथ जिये तो स्मृतियाँ उसे जीने नहीं देंगी, जबकि 'अब' जीना बहुत ज़रूरी था। 

सन्नाटे भरी शाम............... देवयानी के भीतर उतर रही थी, डबडबाई आँखें टप-टप मोती बिखेर रही थीं | वह गया तो जैसे देवयानी का पूरा संसार ले गया -
पहाड़-नदी, झरने, आसमान और होठों से मुस्कान भी | कोई हमारे जीवन में इतना महत्वपूर्ण कैसे हो जाता है बड़ी-बूढ़ियाँ कहती हैं अब भगवान में मन लगाओ, वही तुम्हारी नैया पार करेंगे |
क्या पचास-पचपन बरस की देवयानी सब कुछ छोड़ दे ? उन ज़िम्मेदारियों का क्या जो - वह उसके काँधों पर छोड़ गया है - किशोर वय के दो बच्चे और और साथ ही ख़ुद देवयानी भी |
देवयानी को कुछ छोडना नहीं पड़ा था - स्वतः ही सब छूट गया था |
संग-साथ, दोस्त-यार, पड़ोस, रिश्तेदारियाँ, लिखना-पढ़ना, सजना-संवरना और उसका अपना-आप भी |
देवयानी की आदत थी वह हमेशा गुनगुनाते हुए घर के काम-काज निपटाती थी, अक्सर वह किचन में देवयानी को पीछे से आकर बाहों में भर लेता था ! मुस्कुरा देती देवयानी |
उसकी मृत्यु पर देवयानी, चीखी-चिल्लाई नहीं बुत हो गयी थी, सिर्फ़ बुदबुदाई थी - हम अभागे हैं- मैं और मेरे बच्चे !!
ससुराल की बड़ी-बूढ़ियाँ -  देवयानी के भाई को समझा रही थीं-  साड़ी ले आना, मायके की लगती है, चूड़ी ले आना तो यह आगे भी पहनती रहेगी......
देवयानी को कुछ भी सुनाई पड़ना बन्द हो गया था सिर्फ़ लोगों के हिलते होंठ दिखाई पड़ रहे थे |
मृत्यु के बाद की सारी रस्मों के बाद-  देवयानी के पास रह गया था ज़िम्मेदारियों का जखीरा...... | सब कहते, सब-कुछ भूल जाओ, जो हुआ सो हुआ और कानों में ध्वनित होते शब्द -- ईश्वर में मन लगाओ वही नैया पार करेंगे......|
देवयानी को अब एक ऐसे व्यक्ति के बिना रहना था जो उसकी रगों में समाया था, उसकी गंध से दूर होना था जो उसकी देह से देवयानी की देह में समायी थी | देह और मन की याददाश्त होती है, उससे कभी भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता, अगर देवयानी उस देह-गंध के साथ जिये तो स्मृतियाँ उसे जीने नहीं देंगी, जबकि “अब” जीना बहुत  ज़रूरी था
अभी देवयानी का ईश्वर में उतना मन नहीं रमता था...... फिर ???
अचानक देवयानी के जीवन में एक तूफ़ान सा आया जिसका नाम प्रशांत था | देवयानी का सहपाठी...... उसका परिचय यह भी था कि वह देवयानी का अच्छा दोस्त भी था | प्रशांत अक्सर फोन कर देता और--- कालेज की बातें और ख़ूबसूरत कवितायें सुना देता......| इस बात से देवयानी इन्कार नहीं कर सकती थी कि उसे भी प्रशांत के फोन का इंतज़ार रहता था | अनमनी सी देवयानी अब मुस्कुराने लगी थी......| अजब था कि प्रशांत इतनी सपनीली बातें करता था कि देवयानी जीवन में उन्मुक्त होने लगी थी......| अब वह अक्सर गुनगुनाती रहती थी |
बच्चे बड़ी अजीब निगाहों से देखने लगे हैं | उन्हें माँ के इस अनोखे परिवर्तन की गंध लगाने लगी थी, बच्चे  बिना कुछ कहे ही विरोध जताने लगे थे | उन्हें शायद, पिता के ग़म में ग़मगीन माँ अच्छी लगती थी |
दरअसल, हम अपने माता-पिता को एक आदर्श रूप में पसन्द करते हैं, व्यक्ति रूप में उन्हें समझ ही कहाँ पाते हैं कि वह भी इंसान हैं, बच्चे माँ की मानसिक ज़रूरतों को नहीं समझ पा रहे थे, किसी न किसी बहाने बच्चे अपना विरोध जता ही देते थे | हालाँकि देवयानी के इस रिश्ते में अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं था कि इसे “विशेष दर्जा” दिया जाये, तो फिर देवयानी का मन क्यों करता था कि वह ख़ूब सजे-सॅंवरे ......ख़ुश रहे !!
क्या अपराध था यह ?? अनैतिक था !! जीवन को जीने का प्रयास करना......|
हर पल देवयानी के कानों में बजता रहता “ईश्वर में मन लगाओ वही नइया पार करेंगे” |
हहराते समुद्र सा प्रशांत एक रोज़ देवयानी के घर अचानक आ गया था......
थरथरा उठी थी देवयानी......|
चाय पीते-पीते प्रशांत ने अपना हाथ देवयानी के हाथ पर रख दिया था, देवयानी चलो लाँग ड्राइव पर चलते हैं, तुम्हे शौक़ है ना !!    
स्वर ऐसा कि मानो किसी नवयुवती के लिये कहा गया हो | लगभग घसीटते हुए प्रशांत ने देवयानी को कार में बिठा दिया था |
सूरज ढलने को था सरपट भागते पेड़, रक्तिम आसमान और गुलाबी ठण्डक, कार दौड़ रही थी......और प्रशांत गा रहा था - “वो शाम कुछ अजीब थी......” ||
कितना अजब-ग़ज़ब था, “शांत-शालीन” देवयानी यह क्या कर रही थी ??
शायद जीवन के बंद द्वार खुलने लगे थे | यह प्रशांत का संग-साथ था जो पचपन बरस की देवयानी को पंद्रह बरस की किशोरी में तब्दील कर रहा था |
लौटते समय देवयानी ने प्रशांत से प्रश्न किया था
--तुमने दुबारा शादी क्यों नहीं की थी ??
--तुमने क्यों नहीं की ? प्रशांत ने उत्तर के जवाब में प्रश्न किया |
जल्दी ही प्रशांत अपने शहर चला गया, इस वादे के साथ कि रोज़ बातें करेंगे......|
उदास हो गयी थी देवयानी......
एक रोज़ देवयानी ने देखा कि प्रशांत का मैसेज व्हाट्सएप पर चमका......
--घर आ गये |
--हाँ, वापस आ गये अपने मकान में !
--तुम साथ रहो तो घर बना दूँगा......|
मै......|
--तुम, हाँ तुम !!
--तुम अकेले मत रहो......
--मेरी बाहों में आ जाओ !!
--यह नहीं हो सकता ||
--मुझे गुलाब चाहिये........मै साहस से कह रहा हूँ |
--मैं गुलाब......नहीं जानती |
--देवयानी ! जियो इस सब को |
--तुम सबसे सुन्दर लड़की हो, मेरे लिये........|
--चुप देवयानी -- पचपन बरस की सबसे सुन्दर लड़की......हा-हा-हा !!!
फोन काट दिया देवयानी ने........यह क्या घट रहा है | काफ़ी दिनों तक प्रशांत का कोई फोन नहीं आया, शायद वह नाराज़ था, देवयानी ने फोन जो काट दिया था | देवयानी अब उस तिलिस्मी फोन का रोज़ इंतज़ार करती | एक बेचैनी से...... रहती कि एक दिन प्रशांत का फोन बज उठा......|
 
--डरपोक लड़की, भूल जाओ सब, जिओ ज़िन्दगी सचमुच नहीं तो शब्दों से ही !!
--मैं अचानक आ जाऊँगी तुम्हारे पास...तुम्हारा शहर रुक जायेगा मेरे आने से |
--रोमांचित हो जायेगा || देवयानी, प्रशांत ने कहा |
--जानते हो तुम !! क़ैद कर लिये जाओगे, फिर क्या होगा तुम्हारा प्रशांत ?
--करो क़ैद, कर लो, मुझे देवयानी.....
--प्रशांत की आँखों में बरसात है.....
--तुम्हारी आँखें चूमता हूँ...
--तुम सदियों से यहीं क़ैद हो, प्रशांत......
--तुम भी......देवयानी
--मैं चाय पीने जा रही हूँ, काफ़ी रात हो गयी है !!
--नो ब्रेक, आज की रात मेरी है ...देवयानी
--ज़िद्दी हो, ख़ूब.....(हँसी) देवयानी की हँसी......तैरने लगी
--देवयानी, आज मैं तुम्हें- सशरीर महसूस कर रहा हूँ, तुम्हारी नाक-मेरी नाक से लड़ रही है......|.
--प्रशांत, मुझे देह मत मानो,प्लीज़ मैं देह कहाँ हूँ अब ? मैं.. ख़ुद को यूँ नहीं जानती थी प्रशांत.....
--जान गयी हो - ज़िन्दा हो गई हो ! दूसरे भी तुम्हें ख़ुश देख रहे होंगे......
--सुनो प्रशांत, तुम मुझे अभी छोड़ जाओ तो अच्छा हो !!
--तुम ऐसा चाहती हो ?
--जानती हूँ, तुम जाओगे ज़रूर, तो अभी छोड़ जाओ.....
--आओ प्यार करूँ.......
--मैं तो तुम्हारे काँधे पर सिर रखकर पहले रोऊँगी......
--मुझे लग रहा है देवयानी, तुम ख़ुमारी में हो..
--हाँ !!
--तुम्हारी आँखें अधखुली हैं..... तुम डूब रही हो, उतरा रही हो......
और पता ही नहीं चला कि प्रशांत कब सो गया.......
पंद्रह दिन तक प्रशांत का कोई फोन नहीं.......कोई मैसेज नहीं.....
देवयानी ने कुछ नहीं पूछा ..
अचानक एक दिन व्हाट्सएप पर मैसेज चमका.....
--सुनो आज घर आओगी, मैं रास्ते में हूँ, रात के बारह बज रहे हैं
जानती है देवयानी....लखनऊ से कोलकता (प्रशांत का घर) की दूरी......जवाब दिया
--हाँ, मै पहुँच रही हूँ, आओ तुम !!
--थाली सजा के रखोगी ? दरवाज़ा खोलोगी !!
--हाँ, मै तुम्हारे घर पहुँच गयी हूँ प्रशांत, मेरे हाथों में पूवों की डलिया है, तुम्हारी स्टडी में रख दी है.....
-- देवयानी.. कमर तक के तुम्हारे बाल खुले हैं कि जूडा है ? और साड़ी का रंग ??
--बाल खुले हैं....और साड़ी गुलाबी है......
--ओह इतने घने काले बाल.. खुशबू मेरी साँसों तक आ रही है।
--तुम गन्दे हो.. एक उन्मुक्त हँसी.....
--मैं सितार बजा रहा हूँ, शहद में नहा रहा हूँ.....तुम !!
--!! (दीर्घ चुप्पी)
--गुलाब ही गुलाब !! देवयानी...
देवयानी की शब्द सामर्थ्य....गुम थी...
देवयानी नक्षत्रों के पार...... डूब रही थी.......उतरा रही थी....
गुलाब..शहद..चाँद..सितार..देवयानी.....प्रशांत.....चाँदनी रात सब-कुछ विलीन हो गया था |
देवयानी, अपने बिस्तर पर फूट-फूट कर रो रही थी....क्या है यह ??
क्या रूदन मन के सारे संशय विलीन कर देता है...
एक तूफ़ान के आने के बाद की शांति देवयानी की रूह में व्याप्त हो गयी थी.....
फोन कट गया था !!
महीनों हो गए.....बरस बीत गये ....प्रशांत गुम हो गया था.....
देवयानी ने जानने की कोशिश नहीं की --कि ऐसा क्यों हो रहा है......
बातों का सिलसिला प्रशांत ही शुरू करता था, वही करेगा......देवयानी ने कभी नहीं किया --वह इंतज़ार करेगी--सौ बरस तक !! सोचा उसने...
सालों बाद उसे पता चला कि प्रशांत ने अपना जीवन बसा लिया है ....बिना किसी सूचना के .........
बहुत से प्रश्न थे जो कि अनुत्तरित रह गए थे--अगर प्रशांत हज़ारों साल बाद मिलता तब भी देवयानी उन अनुत्तरित प्रश्नों को कभी दोनों के बीच नहीं लाती.
पता नहीं देवयानी को प्रशांत से क्या था ??
अगर यह भ्रम था...तो --बहुत ख़ूबसूरत था |
ज़िन्दगी मुस्कुरा रही थी......

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रचनाकार परिचय

प्रतिमा श्रीवास्तव

ईमेल : Sripratima15@gmail.com

निवास : ग्रेटर नोएडा(उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 15 अक्टूबर 
जन्मस्थान- कानपुर(उत्तर प्रदेश)  
शिक्षा-  स्नातक(विज्ञान)। बी.एड. 
संप्रति- केंद्र सरकार से सेवा निवृत्त, स्वतंत्र लेखन 
प्रकाशित कृति- सरहद(कहानी-संग्रह)
प्रकाशन- विभिन्न पत्र_ पत्रिकाओं में कहानियां,कविताएं, रिपोटार्ज, साक्षात्कार,               पुस्तक समीक्षाएं,लघु कथाएं प्रकाशित.
सम्मान- राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित
मोबाईल- 7084465396