Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
कभी अपने भी दाँत गिनकर देखे इंसान- राकेश अचल

मैं जिन दाँतों की बात कर रहा हूँ वे बहुउदेशीय होते है। दुनिया बनाने वाले ने दाँत बनाते समय ही उनका काम भी तय कर दिया था शायद इसीलिए आप ये जानकर हैरान होंगे कि दाँत का काम सिर्फ किसी चीज को पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना ही नहीं है। जानवर इन दाँतों से कुतरने खोदने, सँवारने और लड़ने का काम लेते हैं। दाँत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं। खुद ईश्वर ने एक अवतार में अपने दाँतों से सकल ब्रम्हांड को ऊपर उठा लिया था।

जॉन एलिया: अदब के आईने में अधीर मन का शायर- अखिलेश कुमार मौर्य

अक्सर प्रेमी जब प्रेम में होता है तो वह अपने को अमर मान लेता है। जॉन एलिया प्रेम करते हुए सच को स्वीकार करते हैं और उन्हें पता है एक दिन सबको मरना ही है। ऐसी ही शायरी जॉन एलिया को परंपरा से अलग बनाती है। एक शेर देखिए–

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या  सितम   है  कि  हम  लोग   मर  जाएँगे

'सिलसिला मुनादी का' में सामाजिक सरोकार व समन्वय की भावना- के० पी० अनमोल

सिलसिला मुनादी का आशा सिंह का पहला ग़ज़ल संग्रह है, जिसमें इनकी कुल 90 ग़ज़लें संकलित हैं। इन ग़ज़लों से गुज़रते समय इस तरह के अनेक शेर आपके सामने से गुज़रेंगे। इनकी ग़ज़लें पढ़ते हुए आपको लगेगा कि ये कोई गीतकार है, जो ग़ज़ल लिख रहा है या कोई कथाकार। आशा जी कई अन्य विधाओं में भी लिखती हैं लेकिन ग़ज़ल उनकी मुख्य विधा ही है। कुल मिलाकर यह कि आज के हिंदी ग़ज़लकारों में इनकी अपनी एक अलग शैली दिखाई पड़ती है। और ऐसा केवल एक संग्रह और 90 ग़ज़लों में होना, एक बड़ी ताक़त कहा जा सकता है।

हिंदी कथा साहित्य : पारंपरिक पीठ आधुनिक ‘गुल गपाड़ा’- डॉ॰ सुनीता

साहित्य में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एवं अस्तित्वगत नैरेशन में मोहन राकेश और कमलेश्वर सहज याद आते हैं। रचनात्मक पात्रों के द्वारा आंतरिक- वाह्य जीवन के नैतिक दुविधाएँ प्रत्यक्ष हैं। समकालीन हिंदी साहित्य में राजनीतिक, सामाजिक भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक गतिविधियों की आलोचना हुई है। हरिशंकर परसाई और मनोहर श्याम जोशी प्रमाण हैं। अगर ये दोनों वर्तमान में होते तो समाज और मशीनी राजनीति को बेखौफ़ बखूबी दर्ज करते।