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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
भारतीय जीवन दर्शन और पर्यावरण संरक्षण- डॉ० नवलता

ध्यातव्य है कि वृक्ष न केवल पुष्प फल तथा काष्ठादि प्रदान करते हैं अपितु
वर्षाचक्र, ऋतुचक्र तथा वायुमण्डलीय ताप के सन्तुलन  में इनकी विशिष्ट भूमिका है।

युग संदर्भ के चेतनागत धरातल पर तबस्सुम जहां का साहित्य सृजन- डॉ० अल्पना सुहासिनी

तबस्सुम जहां ने समाज के तक़रीबन हरेक विषय पर अपनी लेखनी चलाई है। स्त्री जीवन की विसंगतियों पर केंद्रित लघुकथा 'मुक्ति', दांपत्य जीवन पर कटाक्ष करती लघुकथा 'लक़ीर बनाम लकीर' विशेष उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा नौकरी के लिए मौजूदा साक्षत्कार प्रक्रिया की खामियों को उजागर करती इनकी छोटी कहानी 'भूसे की सुई' विदेशी पत्रिका का हिस्सा बन चुकी है।

निराला की हिंदी ग़ज़लों का तेवर और स्वर- ज़ियाउर रहमान जाफ़री

निराला ने ग़ज़लें प्रयोग के तौर पर लिखी थीं। उन्होंने ग़ज़लें लिखकर एक प्रकार से ग़ज़ल को हिंदी कविता में लाने का प्रयास किया। निराला के पूर्व के ग़ज़लकारों और निराला की ग़ज़लों में एक अंतर साफ़ है कि पंडित निराला की ग़ज़लों में हिंदी का जातीय संस्कार झलकता है।

किसानों का दर्द बयां करती समकालीन हिन्दी ग़ज़ल- अविनाश भारती

हमने चाँद तक की यात्रा पूरी कर ली है, अतंरिक्ष हमारी मुठ्ठी में है और अब तो सूरज पर भी जाने की तैयारी है। लेकिन तमाम अंतरिक्ष यात्रियों, ख़्याति प्राप्त खिलाड़ियों, आधुनिक भारत-भाग्य विधाताओं आदि तथाकथित अभिजात वर्ग का भरण-पोषण करने वाला किसान आज भी अपनी किस्मत पर आँसू बहाने को मज़बूर है।