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आराधना शुक्ला के गीत

आराधना शुक्ला के गीत

वे मुस्कानों के प्यालों में
ग़म का शर्बत पीने वाले
जीवन को ठोकर दे-देकर
जीभर जीवन जीने वाले
वे दुविधाओं के धागों से
सुविधाओं का बाना बुनते
वे जो काँटों की सुइयों से
घावों का मुख सीने वाले
वे जो सागर को उबालकर
बादल में पानी भरते हैं
उन्हीं अग्निधारी सुमनों को
मौसम का हर ढंग मुबारक
दुनिया तुझको रंग मुबारक

एक- रंग मुबारक

गर्मी, बरखा, शीत, घाम सब
सहकर रोज़ निखरने वाले
चोटों की टीसों को थामे
बूँदों-बूँद बिखरने वाले
वे जो आशा के काजल से
विधना पर कालिख़ मलते हैं
वे करुणा की थाह टोहकर
भर-भर आँख पिघलने वाले
वे जो पर्वत काट-छाँटकर
अपना पंथ स्वयं गढ़ते हैं
ऐसे पथ के हर पंथी को
हो चट्टानी संग मुबारक
दुनिया तुझको रंग मुबारक

वे मुस्कानों के प्यालों में
ग़म का शर्बत पीने वाले
जीवन को ठोकर दे-देकर
जीभर जीवन जीने वाले
वे दुविधाओं के धागों से
सुविधाओं का बाना बुनते
वे जो काँटों की सुइयों से
घावों का मुख सीने वाले
वे जो सागर को उबालकर
बादल में पानी भरते हैं
उन्हीं अग्निधारी सुमनों को
मौसम का हर ढंग मुबारक
दुनिया तुझको रंग मुबारक

वे सूरज को काट चिकोटी
कड़ी धूप में शीत उगाते
वे चंदा को फूँक मारते
अंधियारों के दीप बुझाते
वे जो तारों की टिकुली से
माथे पर धरते रंगोली
वे जो आँखों को निचोड़कर
मुस्कानों की पौध बढ़ाते
वे जो बनकर ढाल, कटारी
को भी धूल चटा देते हैं
उन सब तिनकों के पुतलों को
आँधी का हुड़दंग मुबारक
दुनिया तुझको रंग मुबारक

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दो- कंट्रोल करें

उसकी इच्छाएँ उसका मन
कैसे ट्रोल करें
'ओके गूगल', पत्नी को
कैसे कंट्रोल करें?

दाग़ों का शृंगार, चोट के
गहने लादेंगे
बंदिश की पायल पैरों में
कसकर बाँधेंगे
आँखों के सपनों को
दुख का काजल करना है
आग लगाकर खुशियों में
जीवन पेट्रोल करें।

फिर तानों का नीतिशास्त्र
झिड़की के नियम चलें
चूल्हे पर रोटी के संग
ख्वाहिश के हाथ जलें
स्वाभिमान का गणित, बिगाड़ें
भाषा का विज्ञान
दोहराएँ इतिहास, चेंज
सारा भूगोल करें।

सिसकी भरती सरस्वती
लक्ष्मी पर लांछन है
अन्नपूर्णा के हाथों
छालों का राशन है
कैसे गाड़ी चले जगत की
कैसे उन्नति हो
नारी की ख़ातिर जब नर
दानव का रोल करें।

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तीन- ध्यान रखना

भूलकर हर एक वादा
साथ देखे स्वप्न सारे
हाथ जोड़े हैं विदा में
और झूठी मुस्कुराहट धर अधर पर
कह दिया है दो पनीली सीपियों से
सूख जाना, रेत का अवसाद भरना
जा रहा हूँ, चलो अपना ध्यान रखना!

भूल जाना विगत सबकुछ
और आगत उर लगाना
डस रहे हों सर्प लेकिन
श्वास में चंदन बसाना
मुट्ठियों में भींच माथे पर लगाना कंटकों को
और सूखे फूल-सी सजना-सँवरना।
जा रहा हूँ, चलो अपना ध्यान रखना!

याद करना पूर्व की हर बात
पच्छिम का बिफरना
हर नुकीले शब्द पर
मासूमियत का कुछ बिखरना
बेसबब ही आस के झूठे हिंडोले झूलना मत
आँधियों में झूलना फिर-फिर बिखरना।
जा रहा हूँ, चलो अपना ध्यान रखना!

कह गया है व्यर्थ मत‌-
करना प्रतीक्षा, बढ़ो आगे
किंतु आगे बढ़ नहीं पाते
करूँ क्या पग अभागे
कह गया है मुस्कुराकर ढाँपना बदली व्यथा की
और आगे बढ़ दुखों का साथ वरना।
जा रहा हूँ, चलो अपना ध्यान रखना!

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रचनाकार परिचय

आराधना शुक्ला

ईमेल : aradhana80shukla@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 17 जुलाई 1995
जन्मस्थान- कानपुर
लेखन विधा- गीत, अतुकांत, ग़ज़ल,दोहे
शिक्षा- परास्नातक
सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन
प्राकाशन- विभिन्न समवेत संकलन एवं पत्र-पत्रिकाएँ
सम्पादन- तपती जाये भोर(गीत-संग्रह)
सम्मान/ पुरस्कार- अतुल माहेश्वरी साहित्यकार सम्मान, प्रमोद कुमार मिश्र स्मृति सम्मान एवं अन्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा गीत प्रतियोगिता में पुरस्कृत
पता- 125/84 एल ब्लॉक गोविन्द नगर कानपुर
मोबाइल- 7398261421