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अल्का 'शरर' पाँच की ग़ज़लें

अल्का 'शरर' पाँच की ग़ज़लें

हिसार-ए-ज़ात से बाहर कभी गर मैं निकल पाती
तो अपने जिस्म से कुछ रूह का हिस्सा बदलती मैं

ख़ुदा के काम से होने लगी परेशानी
सहर को शाम से होने लगी परेशानी

किसी को नाम-ए-मुहम्मद से होती है तकलीफ़
किसी को राम से होने लगी परेशानी

ज़रा जो ख़स्ता हुए सायबाँ मकानों के
दरों को बाम से होने लगी परेशानी

कहानी में कहीं कॉमा रखा है उलझा हुआ
कहीं विराम से होने लगी परेशानी

चबा के लफ़्ज़ों को सरगोशियाॅं कीं कानों में
उसी कलाम से होने लगी परेशानी

नहीं था इश्क़ तो ख़त में गुलाब भेजा क्यूँ
तेरे पयाम से होने लगी परेशानी

रवां-दवां है विरासत सुख़नवरी की मेरी
ख़याल-ए-ख़ाम से होने लगी परेशानी

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न ये दुश्वारियाँ होतीं अगर रस्ता बदलती मैं
तने सर झुक गए होते ज़रा लहजा बदलती मैं

मेरी बारी नहीं आयी मुक़द्दर की बिसातों पर
अगर मौक़ा मिला होता तो इक मोहरा बदलती मैं

हिसार-ए-ज़ात से बाहर कभी गर मैं निकल पाती
तो अपने जिस्म से कुछ रूह का हिस्सा बदलती मैं

गिला हर रोज़ ही करती रही दुनिया की फ़ितरत का
जहां सारा बदल जाता मिज़ाज अपना बदलती मैं

शिकस्ता दिल को अपने पत्थरों में रख दिया मैंने
पशेमां संग हो जाते जो दिल टूटा बदलती मैं

न तो तारे तड़पते और न जुगनू हौसले रखते
बुलंदी चाँद की छूने का गर दावा बदलती मैं

इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के वास्ते दर-दर भटकना था
था हर घर में मेरा क़ातिल दवाएँ क्या बदलती मैं

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हमने ख़ुद को जब भी देखा आईना ख़ामोश रहा
अक्स में ऐब बताता क्या, वो बेचारा ख़ामोश रहा

कुछ तस्वीरें देख पुरानी, याद की आँखें भर आयीं
हर तस्वीर में माज़ी वाला था क़िस्सा ख़ामोश रहा

जिसकी आँखों में खुलता है, रस्ता मेरे ख़्वाबों का
अपनी आँख झुकाकर फिर क्यूँ वो लड़का ख़ामोश रहा

क़िस्मत से मिलने वालों को, कौन जुदा कर पाया है
रोज़ जो मुझको समझाता था, कल बैठा ख़ामोश रहा

मेरे रुख़ पर रंग था उसका, बात थी ये बदनामी की
लब पर ज़िक्र जो उसका आया तब चेहरा ख़ामोश रहा

घर के बीच फ़सील खिंची है, दिल से दिल की दूरी तक
तोहमत आई दीवारों पर, दरवाज़ा ख़ामोश रहा

निकला वो बेगाना बादल जो उलफ़त का अम्बर था
मेरी रूह से दिल तक सूखा, इक सहरा ख़ामोश रहा

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फिर कोई आधा-अधूरा वाक़िया ले आये हम
जानकर अपने लिए ये मसअला ले आये हम

कोई लाचारी तो होगी सारे मंज़र मौन हैं
होठों पे ख़ामोशियों की बद्दुआ ले आये हम

थी कहाँ हिम्मत के उससे जा के हम लेते जवाब
उसके घर से पहले वापिस काफ़िला ले आये हम

रात फैला दी है छत पर धूप रख दी बाँध कर
अपने ख़ालीपन की ख़ातिर मशग़ला ले आये हम

दे के आवाज़ें ख़ुदी को ख़ाली घर में ढूँढना
बे-सदा घर के लिए हू की सदा ले आये हम

अपने ही दिल की अदालत में मुक़दमा पेश था
अपने क़ातिल होने का ख़ुद फ़ैसला ले आये हम

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ज़रा-सी ठहरी है रात मुझमें ज़रा-सा सूरज निकल रहा है
कहीं तो मुझमें दबी है उल्फ़त तभी मेरा दिल बदल रहा है

चराग़-बाती के जैसे थे हम लगे है मीलों की दूरियाॅं अब
मिली न मुझको भी कोई तस्कीं उधर वो पहलू बदल रहा है

मेरी थकी पलकें कह रही हैं न रो सकेंगी वो इससे ज़्यादा
नमी जो आँखों से बह रही है तुम्हारा ग़म ही पिघल रहा है

उठा के क्या देखते हो इनको हुरूफ़ तक मैं जला चुकी हूँ
उसी वरक़ पर है राख़ फैली तेरा फ़साना जो जल रहा है

मेरे यकीं के गिरे मकाँ की हवा उड़ाती है ख़ाक मुझ पर
किसी ने तोड़े सुतून होंगे या आँधियों का ख़लल रहा है

किया हैं ज़ख़्मों ने शोर इतना तमाम शब करवटों में बीती
मिली सवेरे जो हादसों से ज़रा ये दिल फिर संभल रहा है

उसे बनाने थे चाँद-तारे तो आसमाँ का किया तसव्वुर
मेरा ही आँचल मेरा ही चेहरा क्यूँ उसके रंगों में ढल रहा है

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रचनाकार परिचय

अल्का 'शरर'

ईमेल : alkajain234@gmail.com

निवास : मुम्बई (महाराष्ट्र )

नाम- अल्का अजय अग्रवाल
लेखकीय नाम- अल्का 'शरर'
जन्मतिथ- 1 सितंबर 1968
जन्मस्थान- ग्वालियर
शिक्षा- स्नातक, एल. एल. बी
संप्रति- स्व व्यवसाय
लेखकीय अनुभव- 35 वर्ष (17 वर्ष समाचार लेखन) लेख, कहानी, कविता, व्यंग, ग़ज़ल
प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 15 से अधिक साझा संकलन, स्वयं का ग़ज़ल संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में है।
प्रस्तुति- मध्यप्रदेश दूरदर्शन, IN24, अभी तक, जी न्यूज़, तहज़ीब मुंबई, सिटी मीडिया इंडिया 1 चैनल पर इंटरव्यू ओर प्रस्तुति, स्थानीय और देश के विभिन्न मंचों से कव्यपाठ, छोटे मंचों का संचालन, स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन व सयोजन, सामाजिक, संस्कृति और साहित्यिक संस्था 'सदाक़त' के अंतर्गत ग्वालियर, मुंबई और बैंगलोर में विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन ओर संयोजन में सहभागिता।
अव्यावसायिक कार्य- K.C.J. मेमोरियल ट्रस्ट (रजिस्ट्रेशन नंबर- गवा.सं. 5618) के अंतर्गत 22 वर्ष से समाज सेवा कार्य, नेशनल ह्यूमन राइट्स एंड एन्टी करप्शन फोर्स की अँधेरी की प्रेसिडेंट ओर मुंबई कल्चरल विंग की प्रेसिडेंट
सम्मान- विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्य और सामाजिक कार्यों के लिए, अनेकों बार सम्मानित।
पता- चार बंगला, वर्सोवा, अँधेरी पश्चिम, मुम्बई(महराष्ट्र)
मोबाइल- 9320876729