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अंजना बाजपेई की बाल कहानियाँ

अंजना बाजपेई की बाल कहानियाँ

एक दिन गर्मी की दोपहर में माँ से नजर बचाकर स्वाति भाई को लेकर खेलने निकल गई। माँ को पता चला तो वहीं पहुँच कर उन्होंने सबके सामने ही दोनों को खूब डाँट लगाई और हाथ पकड़ कर घर ले आई। दूसरे दिन जब स्वाति बच्चों के साथ खेलने गई तो कुछ बच्चे कल की बात पर उसका मजाक उड़ाने लगे, तब स्वाति को बहुत बुरा लगा। उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ हर बात पर डाँटती रहती है।

एक- समर कैंप

बोर्ड परीक्षा का आखिरी दिन होने से बच्चे बहुत खुश थे।अमन और विनय अपने मम्मी पापा को देखकर उछल पड़े। उनके पापा ने उन्हें गले लगाते हुए कहा "तुम्हारे लिए सरप्राइज़ है।" दोनों की मम्मी ने एक पेपर दिखाते हुए बताया- "तुम लोगों का एक बहुत बड़े म्यूजिक टीचर की वर्कशॉप में रजिस्ट्रेशन कराया है। उसके लिए तीन दिन बाद हम तुम्हें हिल स्टेशन छोड़ आएँगे। तुम्हारी घूमने की और सीखने की दोनों इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी।"
"अरे नहीं, अभी नहीं..., यह सब बाद में करेंगे" दोनों के मुँह से एक साथ निकला। "पर क्यों तुम्हारी बहुत इच्छा थी इसलिए हमने यह व्यवस्था की है।" अमन के पापा ने उसके चेहरे पर नज़र डालते हुए पूछा। विनय के पापा भी बोल पड़े- "हाँ हम लोगों ने मिलकर प्लान बनाया था।"
"सॉरी पापा.." कहकर दोनों शांत स्वर में बताने लगे- " हमारे टीचर ने 15 दिन का एक समर कैंप लगाया है। क्लास के सब बच्चे ज्वाइन करेंगे प्लीज..।" कहते हुए दोनों कुछ भावुक होने लगे तो बाकी बच्चों ने भी समर्थन किया- "जी अंकल, हम सब आएँगे ..।" यह सब देख उनकी मम्मियों ने उनके हाथ पकड़ते हुए पापा की तरफ देखा तो उन्होंने कुछ निराश होते हुए हाँ कर दी। तो खुशी से उछल कर पापा के गले लगते हुए बच्चे बोले-"थैंक्यू..।"

पास ही स्कूल होने से बच्चों ने खुद ही पैदल और साइकिल से आना शुरू कर दिया। कैंप की फीस के साथ बच्चों ने घर से ज्यादा से ज्यादा खाने पीने का सामान लाना शुरू कर दिया। अभिवावकों को तसल्ली थी कि बच्चे व्यस्त हैं और खुश भी हैं।

समर कैंप का आखरी दिन संडे था। सबके घरों में सूचना दे दी गई कि निश्चित समय पर सब लोगों को स्कूल पहुंचना जरूरी है। अतः सभी स्कूल पहुँचने लगे। परंतु गेट पर ताला लगा देखकर सन्न रह गए।परेशान होकर आपस में चर्चा कर ही रहे थे कि नोटिस बोर्ड पर उनकी नजर पड़ी। उसमें लिखा था - ' आप सब स्कूल के पीछे वाले भवन में पधारें।' यह पढ़कर घबराते हुए सब उधर चल दिए।

वहाँ पहुँचकर देखा कि यह तो अनाथालय है और किसी फंक्शन की तैयारी चल रही है। नज़र उठा कर अपने बच्चों को तलाशते अभिभावक अंदर पहुँचे तो चपरासी ने मंच के सामने सबको कुर्सियों पर बैठाया। इससे पहले कि वह कुछ समझते मंच का पर्दा खुला और प्रिंसिपल जी ने हाथ जोड़कर बोलना शुरू किया-"क्षमा प्रार्थना के बाद गर्व से बताना चाहूँगा कि अमन और विनय ने पूरी कक्षा के साथ समर कैंप का प्लान बनाया और यहां मेहनत करके सफाई रंग-रोगन में मदद की और अपनी टैलेंट को इन बच्चों को सिखा कर कार्यक्रम तैयार कराया। जिसका फल आज आपके सामने आएगा।

उनके इशारा करते ही क्लास के सारे बच्चे एक सी ड्रेस में मंच पर हाथ जोड़कर खड़े हो गए ।यह सब देख कर अभिभावकों का गुस्सा व डर खुशी व गर्व के आँसुओं के रूप में बह निकला। इस पर बच्चों ने माफी की मुद्रा में कान पकड़े तो सब मुस्कुरा उठे।तभी टीचर ने घोषणा की-"इस समर कैंप में बच्चों की मेहनत का रिजल्ट आपके सामने प्रस्तुत है।"
मंच पर रंग बिरंगी ड्रेस में अनाथालय के कई बच्चे नृत्य करते हुए एक साथ आए तो सब खड़े होकर ताली बजाने लगे और गाना बज उठा- "बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं....।"

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दो- प्यारी माँ

स्वाति पढ़ाई लिखाई के साथ अन्य कामों में भी काफी होशियार थी। उसका छोटा भाई सुलभ तीसरी कक्षा का विद्यार्थी था। वैसे तो स्वाति काफी अच्छी थी पर थोड़ी सी लापरवाह थी। जब मन होता पढ़ती, जब चाहे खेलती। उसके पिताजी नौकरी के कारण अधिकतर शहर से बाहर ही रहा करते थे, अतः माँ ही घर पर उन दोनों की देखभाल करती। स्वाति और सुलभ को माँ बहुत प्यार करती, लेकिन गलती करने पर डाँट भी खूब पढ़ती थी।

एक दिन गर्मी की दोपहर में माँ से नजर बचाकर स्वाति भाई को लेकर खेलने निकल गई। माँ को पता चला तो वहीं पहुँच कर उन्होंने सबके सामने ही दोनों को खूब डाँट लगाई और हाथ पकड़ कर घर ले आई। दूसरे दिन जब स्वाति बच्चों के साथ खेलने गई तो कुछ बच्चे कल की बात पर उसका मजाक उड़ाने लगे, तब स्वाति को बहुत बुरा लगा। उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ हर बात पर डाँटती रहती है। दिन भर पढ़ाई के लिए कहती है, खेलने जाओ तो डाँट पड़ती है, चाट खाने और घूमने के लिए पैसे भी नहीं देती, सचमुच माँ बहुत खराब है।

अब वह बिना बात माँ से बहस कर बैठती। रोज पैसे माँगती, जब मन होता खेलती, जब चाहे पढ़ती। फिर भी माँ उसे किसी तरह डाँट कर पढ़ने ज़रूर बैठाती। पूरा काम कर लेने और पाठ सुना देने के बाद ही उठने देती । वह अच्छी चीजें भी बनाकर खिलाती, पर स्वाति को इससे तसल्ली नहीं होती।

कुछ दिन बाद अर्धवार्षिक परीक्षाएं शुरू हो गई। अब तो माँ स्वाति को घर से बहुत कम निकलने देती थी। जरा देर खेलने के बाद फिर से पढ़ने बैठा देती। परीक्षाएँ समाप्त होने के तीन-चार दिन बाद तक तो उसने खूब मौज मस्ती की। उस दिन रिजल्ट आना था। स्वाति तैयार हो रही थी। तब उसने माँ से कहा - "माँ आज कुछ पैसे दे दो, मैं अपने दोस्तों को चाट खिलाऊँगी।" इस पर माँ ने कहा- "देखो आज मैंने घर पर ही कितनी सारी चीजें बनाई हैं, रिजल्ट लेकर तुम यहीं अपने दोस्तों को ले आना हम सब मिलकर खाएँगे।"

स्वाति को बहुत गुस्सा आया उसे लगा कि उसकी माँ को उसकी खुशी से कोई मतलब नहीं है, कभी भी पैसे नहीं देती। जब देखो तब डाँटती रहती है। तभी माँ ने अंदर से कहा,- "स्वाति बेटा जरा सुलभ को तैयार कर दो, मैं नाश्ता लेकर अभी आ रही हूँ।" उसे बहुत बुरा लगा। वह चुपचाप खड़ी रही। माँ ने देखा कि स्वाति ने सुलभ को नहीं तैयार किया। उन्होंने स्वाति से कहा, "क्या बात है.., हमारी रानी बिटिया क्यों नाराज है?" इतना सुनते ही स्वाति को और भी गुस्सा आ गया, उसने कहा, "आप मुझसे प्यार नहीं करती है, कभी पैसे नहीं देती है बस डाँटना जानती हैं.., आप बहुत खराब है।" कहकर स्वाति पैर पटकती बाहर चली गई माँ उसे आवाज देती रही पर वह नहीं रुकी सुलभ तैयार नहीं था, वह रोज की तरह उसे साथ भी नहीं ले गई।

घर से निकल कर स्वाति अपनी सहेली रश्मि के घर पहुँची। रश्मि और उसका भाई उदय उसी विद्यालय में पढ़ते थे। वह सब साथ ही जाया करते थे। रश्मि और उदय रोज ही चाट पकौड़े खाया करते थे। उनको ज्यादा डाँट भी नहीं पड़ती थी। यह देखकर स्वाति को लगता था कि उनकी माँ सचमुच कितनी प्यारी है।

जब वह उनके घर में घुसी तो दोनों अपनी माँ से पैसों के लिए झगड़ रहे थे। माँ ने पैसे देते हुए कहा,- "ले जाओ पैसे .., पर उल्टी सीधी चीज खाकर जब बीमार पड़ो तो मुझे दवाई के लिए मत कहना ..। " पैसे लेकर उन दोनों ने कहा, - "हाँ ठीक है माँ, तुम कितनी अच्छी हो।" यह सब देखकर स्वाति को बहुत अच्छा लगा।

रास्ते भर वह सोचती रही कि एक उसकी माँ है जो डाँटती रहती है कभी पैसे नहीं देती एक इनकी माँ है, सचमुच कितना प्यार करती है कितनी अच्छी है।
विद्यालय के बाहर रश्मि और उदय ने खूब चाट बतासे खाए। स्वाति को खिलाना चाहा, पर मन होते हुए उसने मना कर दिया माँ ने मना किया था,अगर उन्हें पता चलेगा तो बहुत डाँट पड़ती। इसलिए वह बाहर कभी कुछ नहीं खाती।

कक्षा में जाने के बाद अध्यापक ने रिजल्ट बाँटना शुरू किया। पहले रश्मि और उदय को रिजल्ट मिला, वे दोनों एक-एक विषय में फेल थे। बाकी विषय में भी बहुत कम नंबर मिले थे। जब स्वाति को रिजल्ट मिला तो वह खुशी से उछल पड़ी उसे कक्षा में फर्स्ट रैंक मिली थी।

घर लौटते समय रश्मि और उदय के पेट में अचानक दर्द हुआ और उल्टी होने लगी । सब डर गए । किसी तरह भी घर पहुँचे । घर में घुसते ही माँ को पता चला तो उन्होंने एक-एक चपत लगा दी और डाँटना शुरू किया, "मैंने कितनी बार बाहर की चीज खाने को मना किया था,अब भुगतो, हर समय खेलोगे तो यही रिजल्ट मिलेगा। आज तुम्हारे पापा से शिकायत करके तुम्हारी पिटाई करवाऊँगी।"

यह सुनकर स्वाति को बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह जिन्हें अच्छा मान रही थी वह उतनी अच्छी नहीं है। बीमार पड़ने पर भी डाँट रही है। उसकी माँ तो केवल पढ़ने के लिए डाँटती है। घर में सारी चीज खिला देती है तो फिर पैसे देने की क्या जरूरत है।

वह दौड़ कर घर पहुँची। उसने देखा कि सुबह का नाश्ता वैसे ही रखा हुआ है। इसका मतलब कि माँ ने भी कुछ नहीं खाया। स्वाती ने माफी माँगते हुए रिजल्ट दिखाया तो माँ ने खुश होकर कहा- "इसीलिए मैं पढ़ाई के लिए तुम्हें डाँटती हूँ, मुझे पता है कि तुम्हारे लिए कब क्या जरूरी है, तुम जैसा करोगी वैसा ही तुम्हारा भाई भी करेगा।"
स्वाति ने हाँ में सिर हिलाया तो माँ ने कहा, - "देखो कुछ ना खाने के कारण तुम्हारा चेहरा कैसा हो गया है .., मुझे भी भूख लगी है ,पहले हम नाश्ता कर लें, फिर तुम अपने दोस्तों को बुलाना हम सब मिलकर रिजल्ट की खुशी मनाएँगे। "यह सुनकर स्वाति मुस्कुरा दी। उसे लगा कि वह कितना गलत सोचती थी उसकी हर बात का ध्यान रखने वाली उसकी माँ सबसे प्यारी माँ है। 

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1 Total Review

वसंत जमशेदपुरी

11 August 2024

प्यारी माँ बहुत ही प्रेरणादायी कहानी है

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रचनाकार परिचय

अंजना बाजपेई 

ईमेल : anjanabajpai@29gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 29 जून, 1975
जन्मस्थान- कन्नौज (उत्तर प्रदेश))
लेखन विधा- लघुकथा, कहानी, बाल साहित्य, गीत, कविता, लेख आदि।
शिक्षा- एम.ए.  ( शिक्षा शास्त्र, समाज शास्त्र )
       बी. एड, संगीत प्रभाकर।
संप्रति- लेखन में निरंतर अभ्यासरत, शक्ति साहित्य गंगा संस्था , (कानपुर ) की पदाधिकारी सदस्य।
प्रकाशन- दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिदुस्तान, सरिता, ग्रहशोभा, बालहंस, लोटपोट, बालसाहित्य समीक्षा, तथा अनन्तिम आदि में निरंतर प्रकाशन, कई साझा संकलनों में रचनाएं संकलित।
सम्मान- लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी कानपुर, शक्ति साहित्य गंगा कानपुर, साहित्य त्रिवेणी लखनऊ, विकसिका कानपुर, साहित्य समज्या कानपुर, अंतराष्ट्रीय महिला शक्ति नेपाल आदि अन्य विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं अनेक पुरस्कार प्राप्त।
संपर्क- म.न. 82, सूर्य बिहार, (ख्योरा )
             नवाबगंज, कानपुर (208002)
 मोबाइल- 8957197808