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अरुण सिंह रुहेला के हाइकु

अरुण सिंह रुहेला के हाइकु

सड़कें चौड़ी 
मन द्वार सँकरे 
कैसा जीवन।

अक्षर ही था
जीता रहा हूँ रोज़ 
अक्षर हूँ मैं।


प्यासी ज़िन्दगी 
फीकी चाय का प्याला 
हँसी बिखरी।


शान्त पर्वत 
श्वेत वस्त्र है बर्फ़ 
हवा भागती।


बंजर रेत 
रोज़ सुनती लोरी 
बसंत हुई।


प्रेम पुजारी  
रचते नया नभ 
धरा से आगे।


फूल का पेट 
भोरें गुदगुदाएँ 
हँसे प्रकृति। 


पर्वत शान्त 
मानव का उत्पात 
जग हैरान।


साक्षर मेघ
फिर भी हैं आवारा 
सच्चे साधक।


हँसता मन 
खेले मौत के संग 
यही जीवन।


निराशा जीती 
आस की साँस में ही 
यही जीवन।


शब्द परिन्दे 
हर मन में रोपें 
प्रेम के बीज।


क़ीमती माटी 
लालच की नदी में 
बहती जाती।


सड़कें चौड़ी 
मन द्वार सँकरे 
कैसा जीवन।


यादों का मेला
मौन अकेला हँसे
स्वप्न हैं रोते।


जीवन मेला
खेल घड़ी ही खेले
लाती है यादें

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रचनाकार परिचय

अरुण सिंह रुहेला 

ईमेल : arun.ruhela@gmail.com

निवास : ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 7 सितम्बर, 1980
जन्मस्थान- मेरठ
शिक्षा- फिज़िक्स में एम.एससी. , मार्केटिंग में एम.बी.ए., राजनीति शास्त्र, शिक्षा, पत्रकारिता और जनसंचार में परास्नातक। सात विषयों में यू.जी.सी.  नेट।
लेखन विधा- हाइकु, लघुकथा, कविता, बाल कविता, बाल कहानी आदि को लिखना।
सम्प्रति- एक शिक्षक, सीखने-सिखाने के मार्ग पर निरन्तर अग्रसर।
सम्पर्क- निकट बाल विद्या केंद्र स्कूल, गली नंबर 4, तिबडा रोड़, मोदीनगर, जिला- गाजियाबाद
पिन कोड- 201204
मोबाइल- 9457896564