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असलम राशिद की पाँच ग़ज़लें

असलम राशिद की पाँच ग़ज़लें

बिछड़े थे जिसकी वजह से सीता से राम जी
मैं उस हिरन को राम कहानी से खींच लूँ

ग़ज़ल- एक 

ख़ुश्क आँखों पे नहीं, नूर नज़ारे पे नहीं

दर्द मौक़ूफ़ किसी ग़म के सहारे पे नहीं

वो मुहब्बत को फ़क़त खेल समझता होगा
जिसने फूलों पे रखा हाथ, शरारे पे नहीं

इतनी जल्दी न बना राय मेरे बारे में
दरिया मँझधार में खुलता है, किनारे पे नहीं

ख़्वाब देखेंगे, दिखायेंगे सितारों के मगर
घर ज़मीं पर ही बनायेंगे सितारे पे नहीं

इश्क़ में होश गँवाने के नहीं हामी हम
जान तो देंगे मगर तेरे इशारे पे नहीं

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ग़ज़ल- दो 

रफ़्तार आँसुओं की रवानी से खींच लूँ
मैं चाहता हूँ दर्द कहानी से खींच लूँ

अच्छा अमल समझ के जो दरिया में डाल दीं
दिल करता है वो नेकियाँ पानी से खींच लूँ

क्यों देखे कोई आके मेरे दिल की ख़स्तगी
इक दायरा मैं तल्ख़ बयानी से खींच लूँ

सूरज से खींच लूँ मैं उजालों के अर्क़ को
ख़ुशबू का लम्स रात की रानी से खींच लूँ

मैं चाहता हूँ ज़ख़्म ये ताज़ा रहे सदा
सो तेरा ज़िक्र अहद-ए-जवानी से खींच लूँ

बिछड़े थे जिसकी वजह से सीता से राम जी
मैं उस हिरन को राम कहानी से खींच लूँ

दिल का दिमाग़ से ये तक़ाज़ा है रोज़ का
इक चेहरा ही मैं उम्र-ए-दहानी से खींच लूँ

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ग़ज़ल- तीन 

काँटों पे चल रहा हूँ बज़ाहिर सुकून से

नक़्शा बना रही है ज़मीं मेरे ख़ून से

जो ख़ाक भी उड़ाई तो ज़ुल्फ़ों के साये में
वहशत का काम भी लिया मैंने जुनून से

मुमकिन है उसके ज़ेह्न में चहरा हो फूल-सा
तलवार पर जो शख़्स खड़ा है सुकून से

बुनियाद हिल रही है ज़मीं-आसमान की
शहज़ादी रो रही है लिपट कर सुतून से

हर साँस एहतियात से लेता हूँ इसलिये
दुनिया सँवर रही है अभी मेरे ख़ून से

वहशत पसंद हम हैं सहूलत पसंद आप
कैसा मुवाज़ना है दिसम्बर का जून से

चेहरे पे दर्द देख के हैरत न कीजिये
तितली निकल रही है अभी तो ककून से

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ग़ज़ल- चार 

सूख जाता है हर शजर मुझ में
धूप है तेज़ इस कदर मुझ में

रेत गिरने लगी है आँखों से
क़हत आने लगा नज़र मुझमे

जानता ही नहीं हूँ मैं उसको
वो जो आने लगा नज़र मुझ में

पाँव अब पूछने लगे मुझ से
मैं सफ़र में हूँ या सफ़र मुझ में

धूप में देख कर परिंदों को
उगने लगता है इक शजर मुझ में

इक मुसाफ़िर है तेरी गलियों का
ढूँढता है जो रहगुज़र मुझ में

दर्द में डूब ही गयी आवाज़
हिज्र ने अब किया असर मुझ में

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ग़ज़ल- पाँच 

किसने कहा कि फूल-सा चेहरा है ध्यान में

मुद्दत से इक मलूल-सा चेहरा है ध्यान में

मुझको नहीं पता कि मेरा अक्स है कहाँ
बस आईने पे धूल-सा चेहरा है ध्यान में

वैसे तो याद कुछ भी नहीं गुज़रे वक़्त का
इक आरज़ी उसूल-सा चेहरा है ध्यान में

ऐसे झटक रहा है वो मेरे ख़याल को
जैसे कोई फ़िज़ूल-सा चेहरा है ध्यान में

चेहरे पे रोशनी का सबब जानता हूँ मैं
इक दायमी नुज़ूल-सा चेहरा है ध्यान में

अल्फ़ाज़ सख़्त आएँगे मेरी ज़बान पर
नाक़ाबिल-ए-क़ुबूल-सा चेहरा है ध्यान में

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रचनाकार परिचय

असलम राशिद

ईमेल : aslem.khan@gmail.com

निवास : गुना (मध्य प्रदेश)

नाम- मोहम्मद असलम ख़ान
साहित्यिक नाम- असलम राशिद  
जन्मतिथि- 30सितंबर 1976
जन्मस्थान- गुना (मध्यप्रदेश)
लेखन विधा- शायरी ( ग़ज़ल/नज़्म)
शिक्षा- एम. ए. (अँग्रेज़ी साहित्य एवं हिंदी साहित्य)
सम्प्रति- शासकीय सेवा
प्राकाशन- विभिन्न सोशल मीडिया एवं पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित 
ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन 
सम्मान-
* महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुम्बई 2019
* नज़ीर अकबराबादी अवार्ड, कानपुर 2019
* अंतरध्वनि सम्मान (ख़्वाहिश फाउंडेशन) कानपुर 2016
* तहज़ीब फाउंडेशन, लुधियाना, 2019
* हिंदुस्तानी ग़ज़ल फाउंडेशन, मुम्बई 2015
प्रसारण-
ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली एवं विभिन्न प्रादेशिक आकाशवाणी, दूरदर्शन उर्दू, तहज़ीब टीवी, ई टीवी उर्दू, न्यूज़ 18 टीवी आदि।
पता- 3/391, हयात मंज़िल, कर्नल गंज, गुना (म.प्र.) 473001
मोबाइल- 8989671786