ऑटिज़्म या स्वलीनता क्या है?
 
ऑटिज़्म एक ऐसा शब्द है जो आजकल में लगभग हर किसी ने कभी ना कभी सुना होगा और शायद अपने आस-पास किसी ना किसी को इस स्थिति में देखा होगा। इसका कारण यह है कि हाल-फिलहाल में इसकी व्यापकता काफी बढ़ गई है। तो आइए, आज हम ऑटिज़्म के बारे में कुछ बातें जानते हैं।
ऑटिज़्म, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है, एक जटिल आजीवन स्थिति है जिसमें सामाजिक संपर्क, संचार और व्यवहार संबंधी समस्याएँ शामिल हैं। यह एक स्पेक्ट्रम विकार है जिसका अर्थ है कि यह लोगों को अलग अलग तरीकों से और अलग अलग तीव्रता में प्रभावित करता है। आमतौर पर इसकी पहचान 2 से 3 साल उम्र में ही होती है।
 
ऑटिज़्म के लक्षण-
 
ऑटिज़्म का हर व्यक्ति पर अलग-अलग तरह से प्रभाव दिखता है। कुछ लोगों में इसका असर ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है और उन्हें रोज़मर्रा के कामों में मदद की जरूरत पड़ सकती है जिसकी वजह से वे स्वावलंबी जीवन जीने में सक्षम नहीं हो पाते। इसके विपरीत, कुछ लोगों में ऑटिज्म के लक्षण कम स्पष्ट होते हैं और वे आम बच्चों की तरह स्कूल जा सकते हैं और स्वावलंबी बन सकते हैं। ये सामान्य लक्षण निम्न हैं-
 
* खेल खेलना न चाहना
* आँखों से संपर्क का अभाव।
* सीमित चीज़ों में रुचि होना या कुछ विषयों में गहन रूचि होना।
* किसी चीज़ को बार बार दोहराना जैसे किसी क्रिया को बार बार करना था। किसी शब्द या वाक्य को बार बार दोहराना। 
* दूसरों की बात  न सुनना उनकी तरफ ना देखना और
ध्वनियों, स्पर्शो, गंधों, दृश्यों या स्वादों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता
* अपनी बात को ना समझा पाना व दूसरे की बात व हावभाव को ना समझ पाना।
* अन्य बच्चों के सांध मिल कर ना खेल पाना।
* परिवर्तन से परेशान हो जाना।
 
यदि किसी बच्चे में निम्न व्यवहार दिख रखा रहा है तो व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए-
 
* 9 महीने की उम्र तक अपने नाम पर प्रति क्रिया ना देना
* 9  महीने के उम्र तक चेहरे पर भाव न दिखाना 
* 12 महीने की उम्र तक दूसरे को देख कर सरल खेल खेलने न चाहना।
* 12 महीने की उम्र तक इशारों का प्रयोग न करना जैसे बाय करना, नमस्ते करना इत्यादि।  
* 24  महीने की उम्र तक दूसरों के दुख  व नाराज़गी को न समझ पाना। 
* 36 महीने की उम्र तक अन्य बच्चों जे साथ खेलना न चाहना न करना। 
* खिलौनों से अजीब तरीके से खेलना व उन्हें एक विशिष्ट क्रम में रखना और यदि क्रम बदल जाए तो परेशान हो जाना।
* अजीब नींद या खाने की आदतें।
* जुनूनी रुचियाँ दिखाना।
* अपना शरीर हिलाना, हाथ फड़फड़ाना या गोल-गोल घूमना।
 * भाषा, गति, सीखने या संज्ञानात्मक कौशल का विलंबित होना।
* चीजों के प्रति सामान्य से कम या अधिक भय होना।
 
इस तरह के लक्षण होने पर स्पेशलिस्ट डॉक्टर जैसे पीडियाट्रिक न्यूरोलोजिस्ट, डेवलेपमेंटल पीडियाट्रीशियन अथवा चाइल्ड साइकोलोजिस्ट से बच्चे का परीक्षण करवाना आवश्यक है। यदि आपका डाक्टर बताता है कि बच्चे को ऑटिज़म है तो बच्चे को उचित थेरेपी दिलवाएँ और स्वयं भी इसके बारे में ज्ञान अर्जित कर के अपने बच्चे का संबल बनें।
 
 
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