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भारत का स्विट्ज़रलैंड - कुमाऊँ का गहना "कौसानी"- धर्मेन्द्र कुमार सिंह

भारत का स्विट्ज़रलैंड - कुमाऊँ का गहना "कौसानी"- धर्मेन्द्र कुमार सिंह

कौसानी की स्थापना हेनरी रैमजे ने की थी, इसका पुराना नाम 'बलना' है. समुद्र तल से लगभग 6075 फ़ीट ऊँचे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पिंगनाथ पर्वत चोटी पर कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा हुआ यह एक छोटा सा गाँव था जो अब एक हिल स्टेशन का रूप ले चुका है। 

अल्मोड़ा से सुबह के निकले हम लोगों को घूमते घामते शाम के तीन बज चुके थे. हमारी कार कौसानी के अनाशक्ति आश्रम में प्रवेश कर रही थी। याद आया, जब नवीं कक्षा का छात्र था मैं तब,अपनी हिंदी की गद्य की पुस्तक डॉ० धर्मवीर भारती जी के निबंध 'ठेले पर हिमालय’ में पहली बार कौसानी के प्राकृतिक सौंदर्य के विषय मे पढा था। सेवा निवृत्त आई.ए.एस मित्र कैप्टन आर. विक्रम सिंह जी जब कानपुर में नगर आयुक्त थे तो एक बार व्यक्तिगत चर्चा के दौरान एक तस्वीर साझा करते समय कौसानी की चर्चा की थी. तब से मन में था कि कभी अवसर मिला तो हम भी कौसानी अवश्य जायेंगे।

अल्मोड़ा से लगभग पचास-पचपन किलोमीटर दूर उत्तर दिशा की ओर कुमायूँ मंडल में बागेश्वर जिले के गरुण तहसील का एक छोटा सा बहुचर्चित गाँव हैं- 'कौसानी'। जो कि 1997 के पूर्व अल्मोड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था। उस समय उत्तरखण्ड उत्तर प्रदेश से अलग नहीं हुआ था. सन 1997 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने बागेश्वर को अल्मोड़ा जिले से अलग कर नए जिले की स्थापना कर दी थी जिसके बाद से 'कौसानी' बागेश्वर जिले के प्रमुख हिल स्टेशन के रूप में जाना जाने लगा।

बताता चलूँ कौसानी की स्थापना हेनरी रैमजे ने की थी, इसका पुराना नाम 'बलना' है. समुद्र तल से लगभग 6075 फ़ीट ऊँचे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पिंगनाथ पर्वत चोटी पर कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा हुआ यह एक छोटा सा गाँव था जो अब एक हिल स्टेशन का रूप ले चुका है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पिंगनाथ की पहाड़ी पर कौशिक नाम के मुनि ने लंबे समय तक तपस्या की थी इसलिए इस स्थान का नाम कौसानी पड़ा. हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराते 'कौसानी' से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं. यदि मौसम साफ़ रहे तो यहां से 300 किलोमीटर में फैले हिमालय स्थित त्रिशूल, नन्दा देवी और पंचाचूली चोटियों की लंबी श्रृंखला के दर्शन आसानी से किये जा सकते हैं।

अनाशक्ति आश्रम:-
1929 में महात्मा गाँधी जी का कौसानी आना हुआ. उन्होंने यहाँ बारह दिन बिताए और गीता पर अपनी पुस्तक 'अनाशक्ति योग" की पृष्ठभूमि लिखी। जिस अतिथि गृह में गाँधी जी रुके थे, अब उसे 'अनाशक्ति आश्रम' कहा जाता है। प्रकृति के विलय और हरियाली के अनूठे संगम के इस स्थान ने गाँधी जी को इतना आकर्षित किया कि उन्होंने कौसानी को "भारत का स्विजरलैंड" की उपाधि दी और अपनी 'यंग इंडिया' नामक पुस्तक में इस जगह की सुंदरता का वर्णन किया. तब से इसे एक अच्छे पर्यटक स्थल के रूप में विश्व भर में जाना जाने लगा।

पंत संग्रहालय:-

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित सुप्रशिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म भी कौसानी में ही हुआ था. उनका जन्मस्थान अब छोटे से संग्रहालय का रूप ले चुका है। जिसे पंत संग्रहालय कहा जाता है। इसमे पंत जी की कविताएं, पुस्तकें, हस्तलेख, तस्वीरें और उनसे संबंधित सामग्री को सरंक्षित करके रखा गया हैं।

चाय के बागान:-

चीड़ के घने पेड़ों के बीच मन को हरती ठंडी ठंडी हवा के साथ लगभग सैकड़ों हेक्टेयर में फैले चाय के बागान के सुंदर दृश्य और सेब-किवी के छोटे छोटे बाग भी यहाँ देखने लायक हैं।

कौसानी एक प्रकार से उन सभी लोगों के लिए अद्भुद प्राकृतिक आनन्द का एक ऐसा हिल स्टेशन है जो शहरों की भागदौड़ और शोरगुल से दूर प्रकृति के गोद में एक शांत छुट्टी बिताना चाहते हैं। अनाशक्ति आश्रम में प्रवेश करते समय मुझे भीतर ही भीतर बहुत अच्छी अनुभूति हो रही थी. ऐसा लग रहा था मानो ये आश्रम कब से मुझे बुला रहा था लेकिन मैं आज यहां आ पाया. तीस चालीस पर्यटक आश्रम में चहल कदमी कर रहे थे. कोई गाँधी जी की प्रतिमा को ध्यान से देख रहा था तो कोई प्रतिमा के पास अकेले या समूह में खड़े होकर फ़ोटो खिंचवा रहा था। लोग धीरे धीरे आपस में बातचीत भी कर रहे थे लेकिन फिर भी अदभुद शांतिपूर्ण वातावरण था। कौसानी में रुकने के लिए होटल लॉज वगैरह थे लेकिन हमने पता कर लिया था कि अनाशक्ति आश्रम में रुकने ठहरने की व्यवस्था है इसलिए फोन द्वारा एक दिन पहले ही रूम बुक कर दिया था।

सत्यम और रेनू ने ऑफिस जाकर वहाँ का स्टे चार्ज जमा करने के साथ साथ अन्य औपचारिकताएँ पूर्ण कर दी थी। संध्या के साथ हम भी रूम पर अपना सामान लेकर आ चुके थे. पुराने पहाड़ी कमरों की बनावट की तरह कमरे बहुत सुंदर तो नहीं लेकिन अच्छे थे। जैसा कि पहले हमे जानकारी मिली थी कि अनाशक्ति आश्रम में रुकने ठहरने का कोई चार्ज नहीं देना पड़ता है। लेकिन बुकिंग के समय पता चला पिछले कुछ वर्षों से वहां के ट्रस्ट ने एक सामान्य नाम मात्र चार्ज चार सौ पच्चीस रुपये प्रति रूम तय कर दिया है जो कि किसी भी होटल या लॉज की तुलना में बहुत ही कम है। तीन चार केयर टेकर और स्वयं सेवी थे सभी की भाषा शैली बड़ी प्यारी और मिलनसारिता से भरी थी। एक केयर टेकर ने आश्रम का सारा कायदा कानून समझाया। बात बात में मालूम हुआ 'पंत संग्रहालय' पास में ही है। हमने तय किया, शाम ढलने से पहले पंत संग्रहालय और यदि समय रहा तो पास स्थित चाय का एक बागान भी हम देख लेंगे. केयर टेकर ने पहले ही बता दिया था. यहां शाम को सात बजे प्रार्थना कक्ष में जाना होता है जहाँ सभी लोग नियमित भजन संध्या में शामिल होते हैं. इसलिए समय से लौटना होगा।आश्रम की ढलान से उतरकर हम लोग पंत संग्रहालय की चल पड़े।

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रचनाकार परिचय

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

ईमेल : sahwes@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)

सम्प्रति- लेखक, विचारक, शिक्षक, समाजसेवी एवं मोटिवेशनल स्पीकर
विशेष- सचिव साहवेस, प्रबन्धक सम्राट अशोक विद्या उद्यान स्कूल
सम्मान- माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश द्वारा सम्मानित, एच बी टी यू द्वारा मानपत्र
प्रकाशन- लोहे का संदूक (कहानी संग्रह) प्रकाशित
मोबाइल- 7860501111