Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

भावनाओं की अभिव्यक्ति- डॉ० दीप्ति तिवारी

भावनाओं की अभिव्यक्ति- डॉ० दीप्ति तिवारी

वो अपने घर वालों की बातें लगातार सुनती जा रही थीl ऐसी बे-सर-पैर की बातें और अपने ऊपर लगने वाले बेवजह के आरोपों से उसका मन आहत तो था मगर उससे ज़्यादा वो अचंभित थीl ऐसी स्थिति में उसका दिमाग जैसे सुन्न हो गया थाl मगर आँखों से आँसू लगातार बह रहे थेl वो चाह कर भी उन आँसुओं को रोक नहीं पा रही थीl काफी समय के बाद, जब वह स्वयं को थोड़ा सा व्यवस्थित कर पायी और शांत हो कर पूरी घटना के बारे में सोचने लगी तो उसको बहुत उलझन होने लगीl उसको लग रहा था की उसको अपनी बात सबके सामने कहनी चाहिए थीl

भावनाओं की अभिव्यक्ति 

वो अपने घर वालों की बातें लगातार सुनती जा रही थीl ऐसी बे-सर-पैर की बातें और अपने ऊपर लगने वाले बेवजह के आरोपों से उसका मन आहत तो था मगर उससे ज़्यादा वो अचंभित थीl ऐसी स्थिति में उसका दिमाग जैसे सुन्न हो गया थाl मगर आँखों से आँसू लगातार बह रहे थेl वो चाह कर भी उन आँसुओं को रोक नहीं पा रही थीl काफी समय के बाद, जब वह स्वयं को थोड़ा सा व्यवस्थित कर पायी और शांत हो कर पूरी घटना के बारे में सोचने लगी तो उसको बहुत उलझन होने लगीl उसको लग रहा था की उसको अपनी बात सबके सामने कहनी चाहिए थीl उसको लग रहा था की वह कितनी मूर्ख है जो अपनी सफाई में कुछ न कह सकी और केवल सबकी सुनती रहीl

दोस्तों, क्या आपको भी कभी इस से मिलता जुलता कोई अनुभव हुआ है? क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे साथ ऐसा क्यों और कब होता है? आइये, आज हम इसी विषय पर चर्चा करते हैंl

रोना क्यों आता है?

वैसे तो यह एक अविरत शोध का विषय है मगर आमतौर पर यह देखा गया है कि कोई भी व्यक्ति तब रोता है जब उसके अंदर भावनात्मक उद्वेग उत्पन्न होता है और वह इसको संभाल नहीं पाताl प्रायः यह स्थिति दो तरह के लोगों में अक्सर देखने को मिलती ह l एक वो जो अत्यधिक भावुक होते हैं अर्थात जिनके अंदर हर छोटी बड़ी बात की प्रतिक्रिया में भावनाओं का सागर उमड़ पड़ता हैl दूसरे वो लोग होते हैं जिनके अंदर पहले से ही बहुत सारी भावनाएँ भरी हुई रहती हैं (अमूमन ये भावनाएँ बीते समय के दर्द भरे अनुभवों से उत्पन्न हुई होती हैं) और किसी भी छोटे से भावपूर्ण पल में उनका भावनात्मक अधिभार उनकी क्षमता से अधिक हो जाता है और वो रोने लगते हैंl

क्या करना चाहिए?

हमारे समाज में रोने को ले कर कई बेवजह की मान्यताएँ हैं जैसे कि "जो रोते हैं वो कमज़ोर होते हैं" , या फिर "लड़के कभी रोते नहीं" इत्यादिl कई बार ऐसा भी देखा गया है की बातचीत के दौरान रोने वाला व्यक्ति मज़ाक का पत्र बनताहै l या फिर किसी बहस के वक़्त यदि एक व्यक्ति रोने लगता है तो दूसरा व्यक्ति उस से और नाराज़ हो जाता है और कहता / सोचता है की इनसे बात करने का कोई फ़ायदा ही नहीं क्योंकि ये तो हमेशा रोने ही लगते हैंl लेकिन हमको यह समझना होगा की रोना एक स्वाभाविक शरीरिक प्रक्रिया है और इसमें कुछ भी गलत नहीं हैl साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि रोने वाला व्यक्ति भावनात्मक अतिरेक की स्थिति में है और शायद उसके पास अपनी स्थिति को अभिव्यक्त करने के लिए उचित शब्द नहीं हैंl

यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ हैं जो रो रहा है तो आप क्या करें?-

१. उसको यह ज़ाहिर करना है कि आप उसकी भावनाओं की तीव्रता को चाहे ना समझ सकें मगर उसकी स्थिति को अवश्य समझ पा रहे हैं।

२. उसको कुछ देर के लिए शांत रहने दें जिस से उसको अपनी भावनाओं को काबू कर लेने का मौका मिल जायेl

३. यदि वह चाहता है तो स्वयं को अभिव्यक्त करने में उसकी सहायता करेंl

४. यदि वह चाहता है तो उस संवेदनशील विषय को छोड़ कर किसी और विषय पर बात करेंl

५. यदि आप किसी ज़रूरी विषय पर बात कर रहे हैं तो उस से कहें कि आप कुछ देर बाद अपनी बातचीत पुनः आरम्भ करेंगेl

यदि आप वह व्यक्ति हैं जो अक्सर रो देता हैं तो आपको क्या करना है?-

१. अपनी भावनाओं को समझना और उचित तरीके से उन्हें अभिव्यक्त करना सीखना होगाl

२. अपनी अंदर की दबी हुई भावनाओं से स्वयं को निजात दिलानी होगी (कम से कम उनके अधिभार को संतोषजनक मात्रा में कम करना होगा) और अगर इसके लिए आपको किसी काउंसलर की सहायता लेनी पड़ती हैं तो उसको भी बेहिचक लेंl

हमारे समाज में अपनी भावनाओं के बारे में बातचीत करने का प्रचलन बिलकुल नहीं हैंl वास्तव में, हमें अक्सर भावनाओं को दबाना ही सिखाया जाता हैl विडम्बना यह है कि हमारा समाज ऐसा है कि इसमें आदमी गुस्से की अभिव्यक्ति तो कर लेता है लेकिन प्रेम की अभिव्यक्ति पर रोक टोक हैl यहाँ तक कि कुछ समय पूर्व तक पिता कभी अपने पुत्र से अपने प्रेम के इज़हार नहीं करता थाl इस सब के नतीजा यह है की कई बार हम अपने सीने में भावनाओं के बोझ को महसूस तो कर पाते हैं लेकिन यह नहीं समझ पाते हैं कि क्या महसूस हो रहा है और क्यों महसूस हो रहा हैl यही समय है कि हम अपनी भावनाओं की रंगीन दुनिया को समझें और अपने प्रिय जनों के साथ उसको साझा करना शुरू करें और मानसिक रूप से स्वयं को और अधिक व्यवस्थित महसूस करें।

******************

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

दीप्ति तिवारी

ईमेल : deptitew@gmail.com

निवास : कानपुर(उत्तर प्रदेश)

नाम- डॉ० दीप्ति तिवारी 
जन्मतिथि- 30 सितंबर 1972 
जन्मस्थान- कानपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- एम बी बी एस, एम ए (मनोविज्ञान),डिप्लोमा ( मेंटल हेल्थ), पी जी  डिप्लोमा(काउंसलिंग एंड बिहैवियर मैनेजमेंट), पी जी डिप्लोमा(चाइल्ड साइकोलजी), पी जी डिप्लोमा(लर्निंग डिसबिलिटी मैनेजमेंट)
संप्रति- फैमिली फिजीशियन एंड काउन्सलर, डायरेक्टर, संकल्प स्पेशल स्कूल, मेडिकल सुपरिन्टेंडेंट, जी टी बी हॉस्पिटल प्रा. लि. 
प्रकाशन- learning Disability: An Overview 
संपर्क- फ्लैट न. 101 , कीर्ति समृद्धि अपार्टमेंट, 120/806, लाजपत नगर, कानपुर(उत्तर प्रदेश)
मोबाईल- 9956079347