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चंद्रेश कुमार छतलानी की लघुकथाएँ

चंद्रेश कुमार छतलानी की लघुकथाएँ

उस समय उस धरती पर द्वापर युग चल रहा था। युधिष्ठिर को युवराज बनाने के राजसूय यज्ञ समारोह का आरम्भ श्रीकृष्ण की पूजा से करने पर, शिशुपाल क्रोध में भर गया और श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने लगा। कृष्ण मुस्कुराते हुए उसकी गालियाँ गिन रहे थे।

एक- जाने कब होगी

“राम जी की जय।“
वह जयकारे लगाते हुए नाच रहा था।
सामने से एक और समूह आया, जिसमें भावबद्ध आवाज़ में ‘जय श्री राम’ कहा जा रहा था।
दोनों दल एक दूसरे के सामने पहुँचे। वह अपने समूह की अगुवाई कर रहा था तो ‘राम जी की जय‘ कहते हुए उस दल की तरफ बढ़ा, उस दल का अगुवा भी उसकी तरफ बढ़ा।
एक ही जैसे भाव पा दोनों एक-दूसरे के चेहरे देखे बिना ही गले मिल गए।
वहीं खडा कोई तेज़ आवाज़ में बोला, “भरत मिलाप।“ जिसे सुन प्रेमवश दोनों की आँखों से आँसू भी आ गए।
कुछ क्षणों बाद दोनों ने एक दूसरे को छोड़ा और एक-दूसरे के चेहरे देखे।
और देखते ही दोनों की आँखों में खून उतर आया।
वे दोनों सगे भाई थे और अपने पैतृक मकान पर अपना-अपना दावा किए हुए थे।


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दो- द्विवंशी

हमारे ब्रह्माण्ड के समानांतर एक दूसरे ब्रह्माण्ड में वह धरती, थी तो बिलकुल हमारी ही धरती की तरह, लेकिन उस का समय हमारे समय से हज़ारों वर्ष पीछे था।
उस समय उस धरती पर द्वापर युग चल रहा था। युधिष्ठिर को युवराज बनाने के राजसूय यज्ञ समारोह का आरम्भ श्रीकृष्ण की पूजा से करने पर, शिशुपाल क्रोध में भर गया और श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने लगा। कृष्ण मुस्कुराते हुए उसकी गालियाँ गिन रहे थे।
सौ गालियाँ होते ही कृष्ण ने शिशुपाल को सावधान किया, लेकिन शिशुपाल ने अनसुना कर एक और गाली कृष्ण को दे ही दी। वह चीखते हुए बोला, "कृष्ण, तुम्हारे कुछ वशंज ऐसे भी होंगे, जो नाम के तुम्हारे, लेकिन होंगे मेरे।"
यह सुनते ही कृष्ण ने सुदर्शन चक्र चला कर शिशुपाल की गर्दन काट दी। पलभर में ही गर्दन बहुत दूर जा गिरी और रक्त के छींटे तो उस धरती को भी पार कर गए।
रक्त के वे छींटे तैरते हुए उस ब्रह्माण्ड से बाहर आकर, हमारे ब्रह्माण्ड में पहुँच, हमारी धरती तक आए और यहाँ की नई हवा पाकर उत्प्रेरक विषाणु बन कई लोगों के रक्त में मिल गए। रक्त में घुलकर उन्होंने अपने ही प्रकार का रक्त भी बना लिया।
और तब से मिले-जुले रक्त वाले वे सभी लोग श्रीकृष्ण की जय तो कहते हैं, साथ में शिशुपाल की तरह गालियाँ भी देते हैं।
जिनकी गिनती कोई नहीं कर रहा।

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तीन- बुरा मत सूँघो

एक बहुमंजिला इमारत की किसी ऊपर की मंज़िल से वह धड़ाम से ज़मीन पर गिरी। गिरते ही वह बेहोश हो गई। उसके मुँह से अविरल खून निकलने लगा। उस खून से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी।
शोर मचा, तो कुछ लोग उस इमारत में बने अपने घरों से झाँकने लगे तो कुछ बाहर निकलकर उसके चारों तरफ इकट्ठे हो गए। उन लोगों में से किसी के दाँत तीखे थे, किसी की जुबान लम्बी थी, तो किसी के हाथ बड़े और शक्तिशाली थे। कुछ ही देर में कुछ लोग कैमरा लेकर भी आ गए जो अलग-अलग कोणों से तस्वीरें लेने लगे और वीडियो बनाने लगे।
वहाँ खड़े हुए लोगों में से एक, दाँत पीसते हुए बोला, “हो न हो इसकी हत्या की साजिश रची गई है, जो कि इस इमारत के मालिक ने ही रची है। वह इसे संभाल नहीं पा रहा था।“
यह सुनकर दूसरे व्यक्ति ने अपनी भुजा रगड़ते हुए उसकी बात को काटा, “नहीं! नया मालिक तो अभी आया है। सच तो यह है कि पिछले कई सालों से इस इमारत का पुराना मालिक ही इसका शोषण कर रहा था।“
वहीं खड़े तीसरे व्यक्ति ने अपनी लार पोंछ कर यह तर्क दिया कि, “इसके अभिभावक ही सक्षम नहीं हैं इसे बड़ा करने में। इसका हश्र इसके अलावा और क्या हो सकता था!“
चौथा व्यक्ति, जो खुद ही एक कुर्सी लाकर उस पर बैठा हुआ था, वह बोला, “पास वाली इमारत के लोग इसे बुरी नज़र से देखते थे। हो सकता है उन लोगों ने...“
एक अन्य व्यक्ति इमारत में बने अपने घर की खिड़की से झाँक रहा था, वह वहीं से चिल्लाया, “छूत की बीमारी फैली हुई है। सब घरों में बंद हैं। उसी का असर हुआ है।“
वे लोग अपनी चर्चा में मशगूल थे कि उस इमारत से एक आदमी बाहर आया। उसे ज़मीन पर गिरे हुए देख वह उसके पास गया और उसे उठाने की असफल कोशिश की। जब वह उसका भार नहीं उठा पाया तो उसे घसीट कर इमारत में खड़ी एम्बुलेंस की तरफ ले जाने लगा। घसीटने से ज़मीन पर बनी खून की लकीरों को चर्चा कर रहे लोगों ने हिकारत भरी नज़रों से देखा, लेकिन कोई कुछ बोला नहीं, कैमरा जो चल रहा था।
वो बात और थी कि कैमरे के लिए उनकी वे नज़रें मायने नहीं रखती थीं ना ही उसके लिए यह गौरतलब था कि गिरी हुई बेहोश ‘अर्थव्यवस्था’ के रक्त से आ रही दुर्गन्ध के कारण चर्चा कर रहे लोगों ने शुरू से ही अपने-अपने नाक रुमालों से ढके हुए थे।


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रचनाकार परिचय

चंदरेश कुमार छतलानी

ईमेल : chandresh.chhatlani@gmail.com

निवास : उदयपुर (राजस्थान)

नाम- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 
शिक्षा- विद्या वाचस्पति (Ph.D.)
सम्प्रति- सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान)
साहित्यिक लेखन विधा- कविता, लघुकथा, बाल कथा, कहानी
12 पुस्तकें प्रकाशित, 8 संपादित पुस्तकें
32 शोध पत्र प्रकाशित
21 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त
पता- 3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) पिन-313 002
मोबाइल- 9928544749