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डॉ० अमिता दुबे की कविताएँ

डॉ० अमिता दुबे की कविताएँ

कभी ऐसा होता है
जो आँखें देखती हैं
जो कान सुनते हैं
वह सच नहीं होता
सच होता है वह
जो हमारे आस-पास नहीं होता

हमारी माँ
 
माँ,
झुकी कमर के बाद भी
सीधी रीढ़ के साथ
खड़ी रहती है क्योंकि
माँ घर की रीढ़ होती है
संसार का नियम है
जो आया है, उसे जाना भी है
माँ अनंत आकाश में चली जाती है
दे जाती है कालजयी आशीर्वाद
जिसकी छाया में हमारा जीवन
हर्ष-उल्लास से व्यतीत होता है।
हम क्षण-प्रतिक्षण याद करते हैं
उस माँ को जो हमारे बीच
न रहते हुए भी सदा रहती है
क्योंकि माँ, माँ होती है
हाड़ मास का पुतला नहीं
हमारी समस्त आकांक्षाओं का
ईश्वरीय प्रतिरूप माँ, हमारी माँ
माँ से सीखा है
हँसते-हँसते सब सह जाना
रोती आँखों को हँसी से भर लेना
सबकी चिंता करना, सबके लिए करना
और किसी से भी कोई अपेक्षा न करना
माँ कहती थीं सब ठीक है, सब ठीक है
जबकि सबकुछ ठीक नहीं होता था
वे कहती थीं सब ठीक है
तो हम भी मान लेते थे सब ठीक है
क्योंकि माँ कह रही हैं
इसलिए सब ठीक है और देखते-देखते
सब ठीक हो भी जाता था।
अब भी सब ठीक है माँ!
सबकुछ ठीक है
लेकिन अब कोई कहने वाला नहीं है
सब ठीक है, सब ठीक है
और वह जो ठीक नहीं भी है
वह भी ठीक हो जाए।
ईश्वर पर विश्वास की डोर माँ ने मुझे थमायी है
यह डोर बहुत मज़बूती से
पकड़े रह सकूँ बस यही कामना है
माँ कहीं नहीं गयी है
वह मेरे अंदर समा गयी है
दो बच्चों की माँ बनकर भी
लगता है जैसे आज माँ बनी हूँ
माँ के स्पर्श को अपने अंदर
समाते देखने की सुखद अनुभूति के साथ।
सच ही है
मातृहीन होने के बाद
माँ होने का अनुभव हुआ है।
 
 

काश! ऐसा हो पाये
 
काश!
वह सब स्पष्ट-सुस्पष्ट हो जाए
सबकुछ साफ़-साफ़ दिखायी देने लगे
कहीं कोई विभेद न रह जाए
आँखों देखे और कानों सुने में
कभी ऐसा होता है
जो आँखें देखती हैं
जो कान सुनते हैं
वह सच नहीं होता
सच होता है वह
जो हमारे आस-पास नहीं होता
कहीं दूर
निस्तब्धता में छिपा होता है
जिसे खोजी आँखें
देख नहीं पातीं
सजग कान सुन नहीं पाते
तभी हम न्याय-अन्याय में
विभेद नहीं कर पाते
अनजाने अन्याय कर जाते हैं
और बड़े अधिकार से उसे
न्याय का जामा पहनाते हैं
काश! न्याय-अन्याय के बीच का
झीना आवरण मिट जाये
हम अन्याय का साथ छोड़कर
न्याय को अपने आस-पास बुनें
काश! ऐसा हो पाए।

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रचनाकार परिचय

अमिता दुबे

ईमेल : amita.dubey09@gmail.co

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 15 मार्च, 1967
जन्मस्थान- लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम० ए०(हिन्दी, अर्थशास्त्र), एल० एल० बी०, पी० एच०डी०
संप्रति- प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
प्रकाशन- पाषाणी, नयन दीप, सिलवटें, पुनर्वास, सुखमनी, सीढ़ी धनुक के रंग, सम्भावना के जुगनू (कहानी संग्रह), समझौते की दुनिया, राह मिल गयी (बाल कहानी संग्रह), कलम से क्रान्ति (बाल साहित्य), उलझन, एकांतवासी शत्रुघ्न, अमृतायन (उपन्यास), ये ‘काश‘ ही है, ऐसा मन करता है, कुछ तो बचा है, माँ हो जाना, यादें पिता की (काव्य संग्रह), कविता की आहटें, कविता की पदचाप, कविता की अनुगूँज, कविता की प्रतिध्वनि, कहानी की करवटें (समीक्षा संग्रह), छायावादी काव्य पथिक: महादेवी, निराला, आक्रोश के कवि मुक्तिबोध, अनुभूति के विविध रंग, दीपक-सा मन, कहानीकार मुक्तिबोध, अनूठे सर्जक मुक्तिबोध, अभिव्यक्ति के इन्द्रधनुष, सृजन के सोपान: डाॅ० योगेश प्रवीन, संवेदनशील रचनाकार: डाॅ० शंभु नाथ, शब्द झरने लगे (डाॅ० सरोजिनी कुलश्रेष्ठ की सृजनात्मकता), शब्द-शब्द संवेग, निराला का निराला सृजन, अर्थ अर्थ संवेद, व्यंजना सृजन की सहित 46 कृतियाँ प्रकाशित
सम्पादन- नीरव लोक
अनुवाद- सुखमनी (कहानी संग्रह) का श्रीमती सुनीता पाटिल द्वारा मराठी में अनुवाद। ‘माँ हो जाना‘ (कविता संग्रह) का श्री यशपाल निर्मल द्वारा डोगरी में अनुवाद। यादें पिता की (कविता संग्रह) का श्री यशपाल निर्मल द्वारा डोगरी में ‘चेते पिता दे‘ शीर्षक से अनुवाद।
सम्मान- डाॅ० सरोजिनी कुलश्रेष्ठ कथाकृति सम्मान-2014
राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान-2016
गजानन माधव मुक्तिबोध सम्मान-2016
नीरज सम्मान, 2018
शिक्षाविद् पृथ्वीनाथ भान साहित्य सम्मान-2021

विशेष- 'डाॅ० अमिता दुबे व्यक्तित्व एवं कृतित्व‘ पर लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा प्रियंका मिश्र को एम फिल की उपाधि।
संपर्क- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 6 महात्मा गांधी मार्ग, हज़रतगंज, लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
मोबाइल- 9415551878