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डॉ० ज्योत्सना मिश्रा की कहानी - हिन्दी का मास्टर

डॉ० ज्योत्सना मिश्रा की कहानी - हिन्दी का मास्टर

"आप मुझे क़सम खिलायेंगे जल संरक्षण की? मैडम जी, आप अपने टॉयलेट में एक बार में जितना पानी बहा देतीं हैं हम लोग उतने में हफ्ता बिताते थे। आप के हाथ में जो यह प्लास्टिक की पानी की बोतल है न, इसी की वजह से हमारे डंगर प्यासे मर जाते हैं।"

आठ बजने में दस मिनट ही रह गये थे और अभी कार्यक्रम समापन की तरफ़  नहीं बढा था।

मन ही मन कैलकुलेट किया कम से कम एक घंटा और है नौ बजेंगे।
नौ भी क्या बजेंगे बच्चों को बसों में चढ़ाते, सामान संभलवाते दस बजेंगे और घर पहुँचते ग्यारह। चलो गनीमत है इस बार मुख्य अतिथि के डिनर में मुझे नहीं रुकना, प्रिंसिपल साहब के बचपन के दोस्त हैं तो उनके घर जायेंगे, नहीं तो पिछली बार डेढ़ बजे घर पहुँचा था।

भूख सी लगने लगी थी। पास में ही अतिथियों के लिये परोसने वाली चाय की केतली और बिस्किट सजे रखे थे 

सुनीति मैम को कहा कि एक फेरा चाय और घुमवा दीजिये पर उन्होंने घूर कर देखा और अंग्रेजी में कहा, "अभी तो पी है उन लोगों ने।" 

मैं हिन्दी का मास्टर, सहम कर चुप हो गया। सोचा हिम्मत जुटा कर चाय ले लूँ आखिर इतना सीनियर हूँ; पर बहुत सोचने के बाद क्रेट से एक प्लास्टिक की छोटी सी पानी की  बोतल उठा ली।  

 आज मेरी एक विद्यार्थी को हिंदी में शत प्रतिशत नम्बर लाने पर उसके साथ मुझे भी सम्मानित किया गया था। हालाँकि आश्चर्यचकित मैं भी था कि हिंदी में शतप्रतिशत नम्बर कैसे आ गये, मेरे तो कभी नहीं आये।

किसी नतीजे पर पहुँचता उसके पहले ही शोर- सा मच गया। गीता  मैम मेरा नाम लेकर बोलीं, "अनिल सर! देखिये क्या बात है?"

खैर, मेरे देखने के पहले ही मामला ठंडा हो गया था। पता चला एक बच्चे के पिता मोबाइल लेकर अपने बच्चे की तस्वीर उतारने के लिये किसी दूसरे बच्चे के पिता के मोबाइल के सामने खड़े हो गये थे। दूसरे ने उसे हटने को कहा तो पहले ने हटने से इनकार कर दिया इसी बात पर और भी कई  पैरेंट्स शोर करने लगे। पर वो बंदा अपने बच्चे की पूरी परफॉर्मेंस का वीडियो बनाये बिना वहाँ से नहीं हटा।  उसके बच्चे का कार्यक्रम ख़त्म हो गया था तो वो किनारे की सीट पर बैठ गया।मैं वहीं उसकी सीट के बराबर में खड़ा था। 

वो नवयुवक पिता अपने बच्चे के स्टेज से जाने के बाद ही  मोबाइल मे व्यस्त हो गया। शायद उसने किसी और शो की ओर तवज्जो भी नहीं दी। पीछे की सीट्स से फुसफुसाहट आ रही थी, "शकल से ही चूड़ा लग रहा है, लगता है बी पी एल कोटे वाला है।"

आवाज़ें मुझे साफ़ सुनाई पड़ रही थीं। उसे भी ज़रूर सुनाई दे रहीं होंगी पर एक बार भी चेहरे से ज़ाहिर नहीं हुआ।

आज के कार्यक्रम की थीम थी 'जल संरक्षण'। बच्चे मंच पर काल्पनिक स्विमिंग पूल और होली के दृश्यों से समझाने की कोशिश कर रहे थे कि इन सब से पानी की बरबादी होती है पर पैरेंट्स की आपस में खुसफुसाहट से लग रहा था कि वे कुछ और ही मतलब निकाल रहे हैं। शायद यह कि जिस स्कूल में स्विमिंग पूल न हो उसे स्कूल कहलाने का अधिकार नहीं।

वो छोकरे सा दिखने वाला पिता इन सब बातों से बेखबर मोबाइल मे लगा रहा। इसी बीच एक बार उसकी बेटी कुछ सेकेण्ड के लिये मंच पर फिर आई। वो फुर्ती से उठ कर फिर अपनी बेटी की तस्वीर खींचने लगा। इस बार लोगों ने उसे सीधे तो कुछ नहीं कहा बस आपस में झुंझलाते रहे।
कैसे कैसे लोगों के बच्चों को एडमिशन दे दिया है इस स्कूल वालों ने। ये रिज़र्वेशन वालों के बच्चों के साथ पढ़ने खेलने से हमारे बच्चों पर भी बुरा असर पड़ेगा। इतनी इतनी फीस भरें और इन जैसों के बच्चों के साथ हमारे बच्चों को बिठाया जाये।

मंच पर कार्यक्रम का अंतिम सत्र शुरू हो गया। पीछे एल ईडी वॉल पर सूखती नदियाँ, पपड़ाती धरती और सिर पर हाथ धरे बैठे किसान दिख रहे थे। आगे बच्चे गीत नृत्य के माध्यम से जल संरक्षण का महत्व बता रहे थे।
अनु मैम ने वाक़ई बहुत मेहनत की थी, पूरा विद्यालय प्रांगण जल और वृक्ष बचाओ के बड़े बड़े पोस्टर्स से पट गया था। बच्चे मंच पर जल संरक्षण की क़सम खा रहे थे और हॉल तालियों की गड़गडाहट से भर गया था।

समापन से पहले एक महिला उठ कर बोली, "मैं कुछ कहना चाहती हूँ।" उन्हें सादर के साथ आमंत्रित किया गया।

आखिर वो शहर के एक जाने माने बिजनेस हाउस की मालकिन थीं।
बेहद ग़ुस्से में थीं वे लेकिन ये बस उनका  तमतमाया हुआ चेहरा बता रहा था  वरना उन्होंने मुस्कुराहट में आधे मिलीमीटर की भी कसर नहीं छोड़ी थी।
उन्होंने बच्चों को आशीर्वाद दिया टीचर्स की मेहनत पर तालियाँ बजवाईं, और फिर मुद्दे पर आईं।

दरअसल वह नवयुवक पिता जिस जगह पर अपना मोबाइल लेकर खड़ा हुआ था वो उनके व मंच की सीध में आता था फिर टोकने पर ढीठ की तरह वहीं डटा रहा हालाँकि उन्होने बड़े प्यार से ऐ भइया, हैलो, एक्सक्यूज़ मी कर के बात की थी।

लेकिन वो इस बात को भूलने को तैयार थीं पर उस नवयुवक ने एक बार भी कार्यक्रम पर ध्यान नहीं दिया और तो और जब धरती माँ के दुखी होने पर हॉल में सबकी आँखों में आँसू थे तब भी वो मोबाइल से खेल रहा था। ऊपर से जब बच्चे प्लेनेट बचाने की प्लेज ले रहे थे तब भी वो खड़ा तक नहीं हुआ। बताइये!

वो महिला ये सारी बातें सीधे उसे इंगित करके नहीं कह रहीं थीं। 'एक पैरेंट' ने ऐसा किया 'एक पैरेंट' ने वैसा किया, इसी शैली में बात कर रही थीं पर मेरे व उस नवयुवक समेत सभी यह समझ रहे थे कि उसी की तरफ उँगली उठाई जा रही है। 

मैंने धीरे से बुदबदाया, ये आपकी बात कर रही हैं शायद! वो मुस्कुराता रहा, और फिर एक अप्रत्याशित बात हुई। वो युवक बड़ी फुर्ती से एक छलांग में मंच पर पहुँच गया। सब अवाक थे। वो महिला तो जल्दी में वहाँ से हटने के चक्कर में अपनी सिल्क की साड़ी में अपनी सैंडल फँसा कर गिरने से बचीं।
उसने बिना किसी भूमिका के कहना शुरू कर दिया, "मैं राजस्थान से आया हूँ। आप लोग ये जो वीडियोज़ में देखकर च्च् च् कर रहे हैं मैंने वो झेला है। साल में गिनती के दिन मैं स्कूल जा पाता था बाकी दिन पूरे परिवार संग पानी के इंतज़ाम में निकलता था। 

आप मुझे क़सम खिलायेंगे जल संरक्षण की? मैडम जी, आप अपने टॉयलेट में एक बार में जितना पानी बहा देतीं हैं हम लोग उतने में हफ्ता बिताते थे।
आप के हाथ में जो यह प्लास्टिक की पानी की बोतल है न, इसी की वजह से हमारे डंगर प्यासे मर जाते हैं।"
मैडम जी भौंचक्की- सी कभी अपनी बोतल को देखतीं कभी उसे।
वो आगे कहता गया  "आर ओ शायद हर घर में लगा होगा।
किसी को अंदाज़ा है, किस क़दर पानी बरबाद होता है इस तरह से अपने परिवार के लिये पानी शोधित करने में?"

लोग धीरे-धीरे खिसकने लगे थे पर वो परवाह किये बिना बोलता रहा, "आप लोग शावर से न नहायें तो आपका मैल ही न छूटे शायद पर मैंने अपनी बच्ची को बाल्टी मग से नहाना सिखाया है। ब्रश एक गिलास पानी से किया जा सकता है आप लोगों में से कितनों ने अपने बच्चों को वॉश बेसिन का नल पूरे समय खुला रखने से टोका है? इस स्कूल में जब मैं अपनी बच्ची का एडमीशन कराने आया था तब मैदान का तीन चौथाई हिस्सा कच्चा था। मिट्टी उड़ रही थी। बच्चे उसी मिट्टी में खेल रहे थे, मुझे इस स्कूल की यही बात सबसे अच्छी लगी थी पर आज देख रहा हूँ आधे से ज़्यादा जगह टाइलों और सीमेंट से ढक दी गयी है। बची हुई जगह में आधी  तारों से घेरी हूई है, वहाँ वाटर कन्ज़रवेशन प्लांट बन रहा है, हा हा हा ! पहले पूरी ज़मीन इमारतों और सड़कों से पाट दो फिर मशीनें लाकर गढ्ढे खोद कर जल सरंक्षण संयत्र लगाओ वाह!"
 
अब तक माइक्स ऑफ कर दिये गये थे। तक़रीबन सभी लोग हॉल के बाहर चले गये थे। बस मैं और कुछ अन्य मौन मुग्ध हो उसकी बात की सच्चाई महसूस कर रहे थे। 
 
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शशि श्रीवास्तव

11 July 2024

वर्तमान परिदृष्य पर दृष्टिपात करती प्रेरणास्पद कहानी

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रचनाकार परिचय

ज्योत्सना मिश्रा

ईमेल : docjyotsna1@gmail.com

निवास : नई दिल्ली

नाम- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा 
जन्मस्थान- कानपुर

शिक्षा- एम बी बी एस, डी जी ओ
सम्प्रति- स्त्री रोग विशेषज्ञ
विधा- कविता, कहानी, लेख एवं यात्रा-वृतांत
प्रकाशन- औरतें अजीब होती हैं (काव्य संग्रह)
देश के प्रतिष्ठित पत्र , पत्रिकाओं में लेख, कहानी एवं कविताओं आदि का प्राकाशन।
सम्पादन- साझा-स्वप्न 1 (साझा-काव्य संग्रह)
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित  
संपर्क- नई दिल्ली 
मोबाईल- 9312939295