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फेसबुक की बतकही- डॉ० मीनू अग्रवाल

फेसबुक की बतकही- डॉ० मीनू अग्रवाल

पुरुष निगाहें सबको समान (सम्मान मत पढ़ लीजिएगा) दृष्टि से देखती हैं। उनके शरीर में उठा प्राकृतिक उबाल कोई भी भेद भाव नहीं बरतता ।
एक लिंग, एक दृष्टि !
और प्रबल इतने कि शारीरिक तो क्या, नज़रों से भी रेप कर लेते हैं।

हम झबरी, मंगली, महर, मरियम, मारग्रेट या मीनू हो सकते हैं।
हम झोपड़, मकान, फ्लैट या हवेली वाले हो सकते हैं।
हम अनपढ़, गँवार, पाँचवीं फेल, दसवीं पास, कॉलेज जाने वाले या कामकाजी, इंजीनियर या डॉक्टर हो सकते हैं ।
हम बहू, बेटी, बहन, भाभी, माँ, मौसी, मामी, बुआ, नानी या नवजात भी हो सकते हैं ।
हम निरोगी या फिर असाध्य रोग पीड़िता भी हो सकते हैं।
खेत खलिहानों, शॉपिंग मॉल्स या अस्पताल के बेड पर हो सकते हैं ।
इतने वैभिन्य के बीच एक या फिर एकमात्र अनिवार्यता, हमारा स्त्री होना,
नहीं नहीं ,
एक मादा होना चाहिए ।
जो हो, जैसी हो, सब चलेगा !
बस, मादा हो !

पुरुष निगाहें सबको समान (सम्मान मत पढ़ लीजिएगा) दृष्टि से देखती हैं। उनके शरीर में उठा प्राकृतिक उबाल कोई भी भेद भाव नहीं बरतता ।
एक लिंग, एक दृष्टि!
और प्रबल इतने कि शारीरिक तो क्या, नज़रों से भी रेप कर लेते हैं।
आपके ब्लाउज की cleavage की तस्वीरें घुमा घुमाकर उघाड़ देंगे, कपड़ों में नज़रें घुसा घुसाकर चिथड़े कर देंगे, और रेप को आप ही की ग़लती या सहमति बता, एक आँकड़ा बना कर कानून व्यवस्था की किताबों में दर्ज़ करा देंगे ।

या फिर, वे मनोरंजन चाहेंगे तो राजनैतिक रंग, कभी जातीय कभी धार्मिक रंग का छिड़काव कर, कविताएँ लिखेंगे, पोस्टर बनाएँगे या प्रदर्शन करेंगे ।
कभी कृत्रिम / चयनात्मक मौन भी रखेंगे।

गनीमत समझिए अभी तक प्रदर्शनी नहीं लगायी, कि “इन मादाओं को सज़ा दो, सज़ा दो,
ये हमें उकसाती हैं”, बस ।

आख़िर तो आधुनिक समाज है, जहाँ सामाजिक संभ्रांत वर्ग और सरकार के लिए आर्थिक अपराध, स्त्री शोषण से अधिक मान्यता रखते हैं।
नैतिकता से नहीं, पैसे से चलता है ये समाज!

युवती के एवज़ में पच्चीस लाख का मुआविज़ा कोई घाटे का सौदा नहीं!
ख़ैर, समाज के रक्षकों के हाथों में-
देशभक्ति मशाल,
दलित मशाल,
दमित मशाल,
अल्पसंख्यक मशाल,
दरिद्र मशाल,
खेतिहर मशालों की शक्तिशाली लौ में
टिमटिमाती स्त्री शोषण मशाल की क्या मजाल!
एक स्वप्न देखा करती हूँ ।

अनैतिक इरादों से किसी स्त्री की ओर बढ़ने वाले हाथ अचानक पक्षाघात हो जाते हैं क्योंकि स्त्री शरीर से कुछ विषैले पदार्थ की धार फूटती है ।

शायद प्रकृति ये सच कर दिखाये!
और क्यों न आशा रखूँ ?बिन शीर्षक.
हम झबरी, मंगली, महर, मरियम,मारग्रेट या मीनू हो सकते हैं।
हम झोपड़, मकान, फ्लैट या हवेली वाले हो सकते हैं।
हम अनपढ़ ,गंवार ,पाँचवीं फेल, दसवीं पास,कॉलेज जाने वाले या कामकाजी, इंजीनियर या डॉक्टर हो सकते हैं ।
हम बहू, बेटी ,बहन, भाभी, माँ, मौसी, मामी, बुआ, नानी या नवजात भी हो सकते हैं ।
हम निरोगी या फिर असाध्य रोग पीड़िता भी हो सकते हैं।
खेत खलिहानों, शॉपिंग मॉल्स या अस्पताल के बेड पर हो सकते हैं ।
इतने वैभिन्य के बीच एक ,या फिर एकमात्र अनिवार्यता, हमारा स्त्री होना ,
नहीं नहीं ,
एक मादा होना चाहिए ।
जो हो, जैसी हो, सब चलेगा !
बस, मादा हो !
पुरुष निगाहें सबको समान (सम्मान मत पढ़ लीजिएगा) दृष्टि से देखती हैं । उनके शरीर में उठा प्राकृतिक उबाल कोई भी भेद भाव नहीं बरतता ।
एक लिंग, एक दृष्टि !
और प्रबल इतने कि शारीरिक तो क्या, नज़रों से भी रेप कर लेते हैं ।
आपके ब्लाउज की cleavage की तस्वीरें घुमा घुमाकर उघाड़ देंगे, कपड़ों में नज़रें घुसा घुसाकर चिथड़े कर देंगे, और रेप को आप ही की गलती या सहमति बता, एक आंकड़ा बना कर कानून व्यवस्था की किताबों में दर्ज करा देंगे ।
या फिर, वे मनोरंजन चाहेंगे तो राजनैतिक रंग ,कभी जातीय कभी धार्मिक रंग का छिड़काव कर ,कविताएं लिखेंगे, पोस्टर बनाएंगे या प्रदर्शन करेंगे ।
कभी कृतिम / चयनात्मक मौन भी रखेंगे ।
गनीमत समझिए अभी तक प्रदर्शनी नहीं लगायी , कि “इन मादाओं को सज़ा दो, सज़ा दो,
ये हमें उकसाती हैं”, बस ।
आख़िर तो आधुनिक समाज है , जहां सामाजिक संभ्रांत वर्ग और सरकार के लिए आर्थिक अपराध ,स्त्री शोषण से अधिक मान्यता रखते हैं।
नैतिकता से नहीं, पैसे से चलता है ये समाज !
युवती के एवज में पच्चीस लाख का मुआविज़ा कोई घाटे का सौदा नहीं !
ख़ैर, समाज के रक्षकों के हाथों में
देशभक्ति मशाल,
दलित मशाल,
दमित मशाल,
अल्पसंख्यक मशाल,
दरिद्र मशाल,
खेतिहर मशालों की शक्तिशाली लौ में
टिमटिमाती स्त्री शोषण मशाल की क्या मजाल !
एक स्वप्न देखा करती हूँ ।

अनैतिक इरादों से किसी स्त्री की ओर बढ़ने वाले हाथों में अचानक पक्षाघात हो जाते हैं क्योंकि स्त्री शरीर से कुछ विषैले पदार्थ की धार फूटती है। शायद प्रकृति ये सच कर दिखाये !

और क्यों न आशा रखूँ ? आख़िर तो कई पौधों को उसने ये कवच दिया है !
फ़िलहाल,
हम भी दो चार लेखों में आक्रोश दर्शा कर गुमा देंगे ये मशाल !
ऐय ज़िन्दगी, तेरे जलवे हैं अनेक !! तो कई पौधों को उसने ये कवच दिया है !
फ़िलहाल,
हम भी दो चार लेखों में आक्रोश दर्शा गुमा देंगे ये मशाल !
ऐय ज़िन्दगी, तेरे जलवे हैं अनेक !!


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रचनाकार परिचय

मीनू अग्रवाल

ईमेल : meenu_ag1000@yahoo.co.in

निवास : दुबई (यू. ए. ई.)

नाम- डॉ० मीनू अग्रवाल 
जन्मतिथि- 1961 
जन्मस्थान- मुंबई(महाराष्ट्र)
शिक्षा- एम. बी. बी. एस., एम. डी.(बाल रोग विक्षेसाहगी)
लेखन विधा- आलेख, बाल साहित्य, कविता 
संप्रति- चिकित्सक (बाल रोग विशेषज्ञ)
प्रकाशन- विभिन्न साझा संकलनों एवं पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित 
पता- दुबई (यू.ए.ई.)
मोबाईल- +97 1508549410