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दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती ‘फ़िबोनाची वितान’ कहानियाँ- शैल अग्रवाल

दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती ‘फ़िबोनाची वितान’ कहानियाँ- शैल अग्रवाल

कहा जाता है कहानियाँ कल्पना लोक में ले जाने के साथ-साथ तत्कालीन समय और समाज को दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती हैं और यह बात आरती लोकेश गोयल के इस नए कहानी-संग्रह पर पूरी तरह से सही प्रतीत होती है। यदि यहाँ भारतीय समाज और मूल्य व मान्यताएँ है, तो दुबई भी है। पश्चिम का वैभव-विलास और एकाकी जीवन भी। कोरोना-काल का एक बोनजाई उल्लेख भी मिलता है हमें इन कहानियों में...

भावों और रिश्तों की जटिलता, विषय और पात्रानुकूल भाषा, गहरी समझ और संवेदना के साथ पात्रों के चित्रण, रोचकता और पठनीय सुगमता के कारण निश्चय ही ‘फ़िबोनाची वितान’ कहानी संग्रह एक संग्रहणीय समकालीन कहानियों का उत्तम संकलन है।

कहा जाता है कहानियाँ कल्पना लोक में ले जाने के साथ-साथ तत्कालीन समय और समाज को दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती हैं और यह बात आरती लोकेश गोयल के इस नए कहानी-संग्रह पर पूरी तरह से सही प्रतीत होती है। यदि यहाँ भारतीय समाज और मूल्य व मान्यताएँ है, तो दुबई भी है। पश्चिम का वैभव-विलास और एकाकी जीवन भी। कोरोना-काल का एक बोनजाई उल्लेख भी मिलता है हमें इन कहानियों में... कोरोना, जिसने इक्कीसवीं सदी के मानव की जीवन-शैली ही बदल दी। कहीं है संपन्न और सफल बेटे की माँ अरुंधति, कोरोना में उसके लेखन से ‘प्रवासी’ शब्द हटने के बाद उस पर क्या-क्या न गुजरती है। दूसरी ओर है दूर देश में फँसा नवनीत, जिसे होटल से खाना न मिलने पर दूध-डबल रोटी को सहारा बनाना पड़ा। एक ओर कोविड के मरीज़ों का इलाज करते हुए डॉ. कुणाल खुद उसका शिकार हैं तो दूसरी ओर मजदूर बेकार बैठे हैं।

मानवीय संवेदना और त्रासदी... रिश्तों की उथल-पुथल से भरी ये कहानियाँ सारी जटिलता के बावजूद अंततः मानव मन के सकारात्मक और उदात्त पहलू पर ही जोर देती हैं। अच्छाई को ही उजागर करती हैं। और यह सकारात्मक सोच ही मेरी नजर में इन कहानियों को अच्छी कहानी बनाती है।

पहली कहानी ‘गजदंत’ ही समाज के दिखावटी मुखौटे को हटाना चाहती है- एक कड़वा सच, जैसे हाथी के खाने के दाँत कुछ और, दिखाने के कुछ और। यही दोहरा चरित्र तो है आज के इस भौतिकवादी समाज का भी, जिसमें वस्तुएँ खास हो जाती हैं। इंसान उनमें ही गौरव महसूस करने लगता है। रिश्तों और भावनाओं की कोई कद्र नहीं।

कहानियों के शीर्षक आकर्षित करते हैं और कहानी पढ़ने के बाद तो मानो जी उठते हैं। बेहद सार्थक और सटीक हैं सभी शीर्षक। कुछ तो नई-नई जानकारियाँ भी देते हैं- फ़िबोनाची शब्द मेरे जैसे कई पाठकों को न सिर्फ ऐस्ट्रो फिजिक्स से परिचित कराता है अपितु प्रेम के उस सूक्ष्म ताने-बाने से भी, जो मकड़ी के जाले की तरह चुपचाप जकड़ता है। इन नवीन शब्दों और उनके कुशल प्रयोग के लिए लेखिका निश्चय ही बधाई की पात्र है।  

संग्रह में कोई कहानी अपनी विषय वस्तु के लिए तो कोई भाषा के लिए मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।  पूरा संग्रह ही रोचक और पठनीय है, विषयवस्तु शुरु से अंत तक बाँधे रखती है, परन्तु दो कहानियों की विशेष चर्चा करना चाहूँगी। इस संदर्भ में पहली ‘फ़िबोनाची प्रेम’ जो  कि संग्रह के शीर्षक की प्रणेता कहानी भी है। कहानी का शीर्षक ही नहीं, कहानी खुद भी एक कौतुहल-सी ही खुलती है और धीरे-धीरे पाठक को अपने इंद्रधनुषी वितान के सबसे मोहक रंग- प्रेम के टीस भरे अतीत में ले जाती है। एक बानगी देखिए-

“कितनी ही जानकारियाँ हमारे ऋषि-मुनि हमें दे गए थे सदियों पहले ही, जिन्हें हम न उपयोग कर पाए, न सुरक्षित ही रख पाए और अपनी उदासीनता वश उन पर अपना वंशाधिकार भी खो बैठे। फिर पश्चिम वाले उन्हीं नियमों को सिद्धान्त और प्रमेय बना-बनाकर हमें ही लौटा रहे हैं।”

“अश्विन, तुम इस बात पर शोध कर रहे थे न कि अरबों-खरबों वर्षों में फ़िबोनाची गति सिद्धांत के आधार पर धरती सूर्य से बहुत दूर निकल जाएगी और एक समय ऐसा आएगा जब वह सौरमंडल से बाहर निकल जाएगी।”

अंत तक पहुँचकर यह कहानी भी तो पृथ्वी-सी ही घूमने लग जाती है मन-मस्तिष्क में, मान्यताओं को तोड़ती -सी। भावों की यह सूक्ष्म यात्रा कब बुझने से पहले खुद-ब-खुद जीवन्त हो उठेगी, पाठक को पता ही नहीं चलता।

 दूसरी कहानी जिसका उल्लेख करना चाहूँगी- ‘आधी माँ और अधूरा कर्ज’, जटिल रिश्तों की कहानी है, जो अपना एक अलग ही स्वाद छोड़ती है और कुछ-कुछ शरत चंद्र व बंकिम बाबू जैसे बंगाली लेखकों की कहानियों की याद आने लगती है। वही सामंती परिवार और वही उनके परिवार की औरतों का दोहरा और घुटन भरा जीवन। इस कहानी में लेखिका का भाषा और शिल्प कौशल भी खुलकर सामने आया है और कहानी यादगार बन पड़ी है। पढ़ते-पढ़ते होठों पर कई बार तो गंभीर परिस्थितियों में भी एक भीनी स्मिति आ ही जाती है। जैसे कि-

‘फिर भी उन्हें डायपर पहनाना तो एक युद्ध लड़ने जैसा ही था। वे पैरों की सेना को इतना अकड़ा लेती कि उन्हें डायपर के बीच से निकाल ले जाना किले में सेंध लगाने के बराबर ही होता।’

खूबसूरत स्थानीय बोली और मुहावरों का प्रयोग भाषा को कई जगह तीखी धार देता है और शब्दों का कुशल प्रयोग वर्णन को अनूठी चित्रात्मकता।

“यह बहुत कीमती है और मजबूत भी। इसकी मजबूती तभी तक है जब तक यह ज़मीन पर न गिरे। गिरकर जो यह टूट जाए तो इसका भ्रम भी टूट जाता है। सारी खूबियाँ भी खत्म हो जाती हैं। इसकी सँभाल अब तुम्हारे हाथ में है।” 

उसने वह गजदंत अपने हाथ में ले लिया। यह बहुत ही सुंदर चाँदी में मढ़ा हुआ हाथी दाँत था। उस पर मोहित होने के बाद भी उसके मस्तिष्क में बीसियों जिज्ञासाएँ दौड़ पड़ीं। क्या इस दाँत के लिए हाथी को मारा गया होगा। अगर ऐसा है तो एक वन संरक्षण अधिकारी के पास यह दाँत क्या संकेत दे रहा है? क्या पशु-चर्म व अन्य पशु-उत्पाद की तस्करी में मिली भगत होती है? या ये अधिकारीगण भी दो-दो तरह के दाँत रखते हैं; खाने के और, दिखाने के और! नई दुल्हन के लिए इन सवालों पर घूँघट डाल देना ही इनका एकमात्र उत्तर था।’

(कहानी ‘गजदंत’)

अंततः प्रिय आरती को इस पठनीय और विचारोत्तेजक कहानी संग्रह के लिए बहुत-बहुत बधाइयों के साथ अशेष शुभकामनाएँ कि उसके इरादों और विचारों की प्रतिध्वनि हर मन गूँजे और थमने और सोचने के लिए प्रेरित करे।

साहित्य जगत को अभी उससे कई अपेक्षाएँ हैं। 

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पुस्तक का नाम- फ़िबोनाची वितान
लेखिका- आरती लोकेश गोयल 
पृष्ठ- 141 
प्रकाशन- नोशनप्रेस 
मूल्य- रु. 240/ 

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रचनाकार परिचय

शैल अग्रवाल 

ईमेल : shailagrawal@hotmail.com

निवास : बर्मिंघम (यू के)

वाराणसी, भारत में जन्म  और शिक्षा। बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, संस्कृत व चित्रकला में स्नातक और तदुपरान्त अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.  । सितार और भरतनाट्यम में प्रशिक्षण। रुचिः कलात्मक व रुझानः दार्शनिक। 1968 से सपरिवार ब्रिटेन में निवास । 50 से अधिक देशों का भ्रमण।
कर्मक्षेत्रः साहित्य व समाज। बचपन के छिटपुट लेखन के बाद गंभीर लेखन जीवन के उत्तरार्ध में ।
विधाः निबंध, कहानी,  संस्मरण,यात्रा वृतान्त, कविताएं, लघुकथा, हाइकू और बाल साहित्य व उपन्यास। आठ निजी पुस्तकें अभी तक। जिनमें से चार कहानी संग्रह।  रचनाएं देश विदेश की सभी प्रमुख पत्रिका व 40 से अधिक साझा संकलनों में। पिछले दो दशक से अधिक हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में निरंतर ई.पत्रिका लेखनी का संपादन व संचालन। 155 अंक प्रकाशित। लेखन व हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए कुछ प्रमुख सम्मान व चार विश्व हिन्दी सम्मेलनों में सक्रिय सहभागिता।
मोबाइल- +447701348154