Ira
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ऋत्विक रंग की दो ग़ज़लें

ऋत्विक रंग की दो ग़ज़लें

हर कोई पूछता है सबब इस उदासी का
किससे कहें कि तेरे लिए हम उदास हैं

ग़ज़ल- एक 

देखो तमाम शहर के मौसम उदास हैं
या फिर अकेले बैठे हुए हम उदास हैं

हर कोई पूछता है सबब इस उदासी का
किससे कहें कि तेरे लिए हम उदास हैं

हम तो जुदाई में भी कभी ख़ुश हो जाते थे
ये वक़्त कैसा आ पड़ा हर दम उदास हैं

अपना बिछड़ना ऐसी भी उफ़्ताद तो नहीं
फिर क्या हुआ कि आप भी पैहम उदास हैं

गाहे लगे कि सारा ही आलम उदास है
गाहे ये लगता है कि फ़क़त हम उदास हैं

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ग़ज़ल- दो 

हमको तसल्ली मत दो, रोटी चाहिए
पढ़-लिख सकें जिसपे वो तख्ती चाहिए

सच बोलना इतना कहाँ आसान है
मुँह में ज़ुबां के साथ तल्खी चाहिए

जिसको समुंदर भी निगलने से डरें
दरिया में कुछ ऐसी रवानी चाहिए

ए,बी,सी,डी के साथ अपने बच्चों को
कुछ-कुछ मुहब्बत भी सिखानी चाहिए

कोई भड़कती आग हो रग-रग में रंग
दिल में मगर सबकुछ गुलाबी चाहिए

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रचनाकार परिचय

ऋत्विक् 'रंग'

ईमेल : ritvikpandya2004@gmail.com

निवास : साँचोर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 15 मार्च, 2004
जन्मस्थान- पालनपुर (गुजरात)
शिक्षा- स्नातक के दूसरे वर्ष में अध्ययनरत
निवास- 173, शास्त्री नगर, साँचोर (राजस्थान)- 343041
मोबाइल- 9358632108