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घनाक्षरी छन्द एवं उसके प्रकार

घनाक्षरी छन्द एवं उसके प्रकार

मनोज शुक्ल 'मनुज' पुरस्कृत गीतकार हैं। गीतों एवं छंदों पर आपकी पकड़ अत्यंत गहरी है। आप उड़ान नामक संस्था से जुड़कर गुरुकुल चलाते हैं जिसमें छन्द विधा सिखाई जाती है। गुरुकुल द्वारा आप एक मृतप्राय होती विधा को पुनर्जीवित करने का महान कार्य कर रहे हैं। 

घनाक्षरी 

यह एक वार्णिक छंद है, इसमें मात्राओं की नहीं बल्कि वर्णों की गणना होती होती है।
उदाहरण:- जीवन- 3 वर्ण, अम्ब- 2 वर्ण, गूँजता- 3 वर्ण ,राम- 2 वर्ण

घनाक्षरी छंद में केवल चार चरण (युग्म)होते हैं।
घनाक्षरी के अनेक भेद हैं, उनमें से इस अंक में हम केवल चार भेदों का उल्लेख करेंगे शेष क्रमश: आगामी अंकों में प्रकाशित होंगे।

1- मनहरण घनाक्षरी
इसमें 31वर्ण होते हैं। 8, 8, 8, 7 या 16,15 पर यति होती है।चरणान्त में गुरु वर्ण होता है।

उदाहरण:-

ज्ञान, धन,रूप, यश, प्रेम के समक्ष गौण,
ईश भक्ति में भी प्रेम ही अमूल्य तत्व है।

प्रेम से विहीन व्यक्ति अनुरक्ति से विमुक्त,
प्रेम सत्य सुंदर है जीवन का सत्व है।

दंभ से बचाता, द्वंद्व- फंद से हटाता मित्र,
प्रेम भक्ति ,प्रेम नेह प्रेम ही ममत्व है।

प्रेम का अमिय नहीं मिलता है देव को भी,
जिसे मिलता है वर लेता अमरत्व है।

मनोज शुक्ल "मनुज"

2. रूप घनाक्षरी (32 वर्ण)- 8, 8, 8, 8 पर यति होती है। चरणान्त में गुरु-लघु होता है।

उदाहरण:-

चलीं गोपी संग संग जैसे करनी हो जंग,
डोल रहा अंग अंग चढ़ी ऊपर से भंग ।

लिये हाथों में हैं रंग हुआ फागुन है दंग,
सोच मन में रही हैं करुँगी पिया को तंग।

बह रही रंग गंग खुश झूमते अनंग,
जगी नूतन उमंग कर दूँगी अधनंग।

बज रहे हैं मृदंग वस्त्र तक अंगबंग,
लाज हो गयी अपंग हुयीं राधिका दबंग।

.मनोज शुक्ल "मनुज"


3. जनहरण घनाक्षरी (31 वर्ण)- 8, 8, 8, 7 पर यति होती है। पहले 30 वर्ण लघु और चरणान्त में गुरु होता है।

उदाहरण:-

चलत किशन जब लपकत घुटुअन,
हँस हँस कर मुख कमल खिलत है।

लचकत ठुमकत उमगत नच-नच,
लखत कहत सुख परम मिलत है।

मगन रहत अस भगतन निरखत,
हँसत लसत तन मन किलकत है।

सजत भजत पग पटकत मटकत,
निरखि निरखि प्रभु जननि जिअत है।

मनोज शुक्ल "मनुज


4. डमरू घनाक्षरी (32 वर्ण)- 8, 8, 8, 8 पर यति होती है।सभी 32 वर्ण बिना मात्रा के लघु वर्ण होते है।

उदाहरण:-

कमल महक मन भर जब तब- तब,
तन मत,हँस-हँस कह झन-झन-झन।

उर बस गर तब मदमत रह मत,
सह मत कह मत पल पल ठन-ठन।

तन-मन-धन-सब उस पर धर कर,
मत डर गर वह कह बज टन टन।

छमछम-छमछम नच बचपन जस,
कह तपकर जब वह घन-घन-घन।

मनोज शुक्ल"मनुज"

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251