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ग़ज़ल में महिला ग़ज़लकारों का दख़ल- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

ग़ज़ल में महिला ग़ज़लकारों का दख़ल- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

हिंदी में महिला ग़ज़लकारों की संख्या हमेशा से कम रही है। सिर्फ़ हिंदी क्या, उर्दू की छह सौ साल पुरानी शायरी की परंपरा में भी स्त्री ग़ज़लकारों में हमारा ध्यान सिर्फ़ परवीन शाकिर और किश्वर नाहीद जैसे कुछ लोगों पर जाता है। एक समय में महिलाओं का ग़ज़ल लिखना ख़राब समझा जाता था। कहते हैं कि उर्दू के अजीम शायर मीर तकी मीर की पुत्री का दीवान तक शायरी करने पर जला दिया गया था। इन हिंदी-उर्दू के चंद महिला ग़ज़लकारों में भी बिहार की ज़मीन से महिला ग़ज़लकारों को तलाशना एक संपूर्ण शोध का विषय है, जिसे अविनाश भारती जैसे उद्यमी लोग ही पूरा कर सकते हैं।

अविनाश भारती ने थोड़े-से समय में ही ग़ज़ल और समीक्षा के क्षेत्र में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ की है। उनके पास ग़ज़ल को लेकर एक आइडिया है। हमेशा कुछ नया करने की तत्परता है। उनके पास एक एक्सपेरिमेंट और एक्साइटमेंट है। उसी का प्रतिफल है कि उनके संपादन के ज़िम्मे एक और नई किताब दहलीज़ से आगे बिहार की महिला गज़लकार के रूप में हमारे सामने आई है। यह कम संतोष का विषय नहीं है कि हिंदी साहित्य में हाशिये पर रखी जानी वाली ग़ज़ल विधा अब एक-एक शख़्स, एक-एक क्षेत्र और एक-एक विमर्श को लेकर हमारे सामने आ रही है। ग़ज़ल अपनी इब्तिदा से ही औरतों के क़रीब रही है पर यह स्त्री सिर्फ़ शायरी की ज़ीनत बनती रही है। तब उनका बोलना मना था। बस उनके हुस्न के नखरे दिखते थे, वो उड़नलोक की परी थी, उनकी अपनी तक़लीफें, दुःख, दर्द और एहसास कहीं नज़र नहीं आते थे। आज स्त्रियाँ खुद ग़ज़ल लिख रही हैं और इस बहाने अपनी फिक्र, अपने तख़य्युल और अपने परवाज़ को क़रीने से रख रही हैं। यह स्त्रियाँ अब दबी-कुचली नहीं हैं बल्कि समाज में एक ताक़त बनकर मज़बूती के साथ अपना असर और रौब रखती हैं।
 
हिंदी में महिला ग़ज़लकारों की संख्या हमेशा से कम रही है। सिर्फ़ हिंदी क्या उर्दू की छह सौ साल पुरानी शायरी की परंपरा में भी स्त्री ग़ज़लकारों में हमारा ध्यान सिर्फ़ परवीन शाकिर और किश्वर नाहीद जैसे कुछ लोगों पर जाता है। एक समय में महिलाओं का ग़ज़ल लिखना ख़राब समझा जाता था। कहते हैं कि उर्दू के अजीम शायर मीर तकी मीर की पुत्री का दीवान तक शायरी करने पर जला दिया गया था। इन हिंदी-उर्दू के चंद महिला ग़ज़लकारों में भी बिहार की ज़मीन से महिला ग़ज़लकारों को तलाशना एक संपूर्ण शोध का विषय है, जिसे अविनाश भारती जैसे उद्यमी लोग ही पूरा कर सकते हैं। मैं जहाँ बिहार की माटी से जुड़े चार-पाँच महिला ग़ज़लकारों से अधिक को नहीं जानता था, वहाँ अविनाश ने साठ ग़ज़लकारों को इकट्ठा कर लिया है, जिससे उनकी खोजी प्रवृत्ति और अनुसंधान का पता चलता है। ज़ाहिर है कि इसमें ऐसी भी शायरा शामिल हैं, जिनकी ग़ज़लें उतनी परिपक्व नहीं हैं। कथ्य और शिल्प के स्तर पर भी खामियाँ हैं। बावजूद उसके वह ग़ज़ल लिख रही हैं और निरंतर बेहतर कहने की कोशिश कर रही हैं, जो बड़ी बात है। उन्होंने इस विधा में अपने आपको अभिव्यक्त और स्थापित किया है, उन्हें एक स्पेस मिल रहा है, यह भी ख़ुद में कम महत्वपूर्ण नहीं है। वह अपनी बात को बार-बार रखती हैं, जैसे इओनेस्को का पात्र बाल्ड सोप्रानो तब तक बात करते हैं जब तक बात स्पष्ट ना हो जाए। इसमें ऐसी भी रियासते-बिहार की शायरा हैं, जिनकी शायरी की दुनिया में बड़ा मर्तबा है, वो शोध और विमर्श का हिस्सा हैं। आशा प्रभात से लेकर डॉ० भावना तक इसकी मिसाल हैं। इस शुमारे की शायरा शांति जैन जहाँ चाँद को ज़मीन पर लाने की बात करती हैं, तो डॉ० भावना नदी में उठने वाले तूफ़ान का रहस्य उद्घाटित करती हैं।
 
ग़ज़ल एक पेचीदा सिन्फ़ है, जिसकी बनावट, उसका शरीर और कथ्य उसकी आत्मा है। एक कमज़ोर कथ्य शिल्प की मौजूदगी के बावजूद शरीर को बेजान बना देता है। आप बिना कथ्य शिल्प को लेकर प्रभावपूर्ण शायरी नहीं कर सकते। अविनाश की इस सम्पादित किताब की ग़ज़लों से रूबरू होकर आप महसूस करेंगे कि ये शायरात अपने विचार तख़य्युल और कोग्निशन को पूरी साफ़गोई के साथ रखती हैं। इन शेरों में शेरीयत भी है और ज़ेहनियत भी। हम स्त्री होने के नाते उनकी ग़ज़लों को हाशिये पर नहीं रख सकते। इन ग़ज़लों से गुज़रते हुए आप महसूस करेंगे कि यह ग़ज़ल अपने शिल्प और कथ्य के स्तर पर कई पुरुष ग़ज़लकारों से भी बेहतर रची गई हैं पर ये रश्क नहीं राग का विषय होना चाहिए।
 
हिंदी ग़ज़ल को ज़रूरत है कि वह अपनी सिर्फ़ एक खिड़की से ग़ज़ल की पूरी दुनिया को देखने की ज़िद न करे बल्कि वे खिड़कियाँ खुलें, जिससे चारों जानिब पूरी कायनात नज़र आए। ग़ज़ल-लेखन में महिला ग़ज़लकारों को देखना असल में सदियों से बंद मकान में एक और दरीचे को खोलना है। आने वाले समय में हिंदी-उर्दू ग़ज़ल की समृद्ध और चहुँमुखी परम्परा को दिखाने के लिए इस किताब को सबूत के तौर पर पेश किया जा सकेगा।
 
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पुस्तक- दहलीज़ से आगे बिहार की महिला गज़लकार
प्रकाशन वर्ष-2024
मूल्य- रु. 299/-
पृष्ठ-160
प्रकाशक- श्वेतवर्णा प्रकाशन, नोएडा

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अविनाश भारती

09 August 2024

समीक्षक एवं संपादक महोदय के प्रति आभार...।

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रचनाकार परिचय

ज़ियाउर रहमान जाफ़री

ईमेल :

निवास : नवादा (बिहार )

नाम- डॉ.ज़ियाउर रहमान जाफरी
जन्मतिथि-10 जनवरी 1978
जन्मस्थान- भवानन्दपुर,बेगूसराय, बिहार
शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा शास्त्र)बीएड,पत्रकारिता, पीएचडी हिन्दी, यू जी सी नेट (हिन्दी )
संप्रति- सरकारी सेवा

प्रकाशित कृतियाँ-
1. खुले दरीचे की खुशबू- हिंदी गजल
2. खुशबू छू कर आई है- हिंदी गजल
3.परवीन शाकिर की शायरी- हिंदी आलोचना
4.ग़ज़ल लेखन परंपरा और हिंदी ग़ज़ल का विकास-हिन्दी आलोचना
5. हिंदी गजल :स्वभाव और समीक्षा - हिंदी आलोचना
6. चांद हमारी मुट्ठी में है- हिंदी बाल कविता
7. आखिर चांद चमकता क्यों है- हिंदी बाल कविता
8. मैं आपी से नहीं बोलती -उर्दू बाल कविता
9. चलें चांद पर पिकनिक करने- उर्दू बाल कविता
10. लड़की तब हंसती है- संपादन

पुरस्कार एव सम्मान-
आपदा प्रबंधन पुरस्कार,बिहार शताब्दी सम्मान,यशपाल सम्मान तथा शाद अजीबाबादी साहित्य एवं समाज सेवा सम्मान समेत पचास से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार

संपादन एवं पत्रकारिता-
संवादिया( बाल पत्रिका)जागृति, निगाह, चल पढ़ कुछ बन, साहित्य प्रभा आदि में सहयोगी संपादक एवं दैनिक हिंदुस्तान समेत कई पत्र -पत्रिकाओं में पत्रकारिता। 

विशेष-
. आकाशवाणी पटना दरभंगा भागलपुर, डीडी बिहार,ई टीवी बिहार आदि से नियमित प्रसारण
. बाल कविता नासिक के पाठ्यक्रम में शामिल
. पीएचडी उपाधि हेतु कई शोधार्थियों द्वारा ग़ज़ल साहित्य पर शोध
. देश भर के कई सेमिनारों और मुशायरों में शिरकत

पता-
C/O-एस. एम इफ़्तेख़ार काबरी
(पेशकार )
शरीफ कॉलोनी,बड़ी दरगाह, नियर बीएसएनएल टॉवर,पार नवादा
ज़िला -नवादा(बिहार) 805112
मोबाइल-6205254255
मोबाइल -9934847941