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हंसा दीप की कहानी- बैटरी

हंसा दीप की कहानी- बैटरी

प्रकृति के इस रूप का सामना करने के लिए इंसान को बहुत तैयारी करनी पड़ती। कभी-कभी जब इंसानी मस्तिष्क से चूक हो जाए तो लोग “आ बर्फ, मुझे जमा कर देख” की तर्ज पर सोफी की तरह जानबूझ कर बर्फीले मौसम को चुनौती देने की गलती कर बैठेते। सोफी का हठ कहें या फिर मजबूरी, वह इस जानलेवा मौसम में हाईवे पर है, गाड़ी में। कल उसे ज्वाइन करना है। जाना जरूरी है। 

कड़कड़ाती ठंड। पारा शून्य से बीस डिग्री नीचे। नाक की नमी बर्फीला कंकड़ बनकर नाक में चुभने लगी है। बर्फ के सफेद, नन्हें कण एकजुट होकर हर जगह अपना आधिपत्य जमा रहे हैं। न डामर की सड़क की कालिमा बची है, न किसी घर की छत के कवेलू का कोई रंग;  बर्फ के इन कणों ने मिलकर हर रंग को अपनी सफेदी में बदल दिया है। पेड़-पौधों की डालियाँ इनसे लदकर स्वागत में झुक गयी हैं। इक्का-दुक्का पैदल चलने वाले ऐसे लगते जैसे बर्फ का कोई बंडल चला जा रहा हो। उनके गरम कपड़ों और भारी-भरकम जूतों पर सफेदी के कण मुस्कराते नजर आते। बर्फीले झुरमुट में भी गिलहरियाँ वैसे ही दौड़ती नजर आतीं जैसे हरी घास पर उछल-कूद करती थीं। सुनसान सड़कों पर कभी-कभी जंगली जानवर निकल आते।  

प्रकृति के इस रूप का सामना करने के लिए इंसान को बहुत तैयारी करनी पड़ती। कभी-कभी जब इंसानी मस्तिष्क से चूक हो जाए तो लोग “आ बर्फ, मुझे जमा कर देख” की तर्ज पर सोफी की तरह जानबूझ कर बर्फीले मौसम को चुनौती देने की गलती कर बैठेते। सोफी का हठ कहें या फिर मजबूरी, वह इस जानलेवा मौसम में हाईवे पर है, गाड़ी में। कल उसे ज्वाइन करना है। जाना जरूरी है। सारी उड़ानें रद्द होने से ताबड़तोड़ यह फैसला लेना पड़ा था। हिम्मत तो करनी पड़ेगी। कैनेडा और अमेरिका दोनों देशों में रात की ड्राइव बहुत स्मूथ और सुरक्षित होती है। रहा सवाल मौसम का तो स्नो टायर हैं उसकी गाड़ी में। बिगड़ता मौसम हैंडल कर सकती है। लंबी ड्राइव की क्षमता भी है उसमें। रोमांचक होगा ऐसे खतरे उठाना। युवा है वह, अब हिम्मत नहीं करेगी तो क्या पचास की उम्र के बाद करेगी! वैसे भी वह पेइंग गेस्ट की तरह रह रही थी। सामान के नाम पर दो सूटकेस हैं, जिनमें उसके कपड़े हैं। इस बर्फबारी के कहर के चलते भी जीवन रुकता नहीं। टोरंटो से न्यूयॉर्क शहर तक का सफर कार से तय करने का उत्साह उसे खूब ऊर्जा दे रहा था। एकाध बार बीच में रुकेगी, बस। होटल में चेक इन करेगी और सीधे ऑफिस जाएगी। मौसम चाहे जितना खराब हो, सब-वे रेलें हो या आम जीवन, सब कुछ उसी गति से चलता है।

अमेरिकन बॉर्डर क्रॉस करने के बाद एकाएक तेज हवा और हिमपात का हमला तेज होने लगा। बर्फीला अंधड़ काँच को बार-बार थपेड़े मारता। साँय-साँय की आवाज अंधेरे को चीर कर गूँजती। रोड पर जमा होती बर्फ की फिसलन भारी-भरकम पहियों के लिए भी खतरे का सबब बनती। पता तो था कि मौसम और ज्यादा बिगड़ सकता है पर इस कदर तूफ़ानी हो जाएगा, यह पता नहीं था। बिगड़ते मौसमी तेवर देखकर उसे लगने लगा कि यह निर्णय गलत था। इस तरह खतरा उठाने की कोई जरूरत नहीं थी। अब वह बीच में थी, न इधर, न उधर। वापस लौटती तो भी उतनी ही परेशानी होती। गाने सुनते हुए उसे ध्यान आया कि फोन को चार्ज के लिए लगा दिया जाए। फोन बंद नहीं होना चाहिए, वरना वह कहीं की न रहेगी।

गाड़ी की गति निरंतर धीमी होती जा रही थी। घनघोर अंधेरा और सामने उड़ती बर्फ से पैदा धुंधलापन दृश्यता को प्रभावित कर रहा था। गाड़ी की हेडलाइट की रौशनी भी कम लग रही थी। रोड पर जमा होती बर्फ को इस समय साफ करने कोई नहीं आएगा। गाड़ी में हीटिंग है इसलिए ठंड का कहर सोफी को परेशान नहीं कर सकता। सामने वाले शीशे पर लगी स्नो, आइस बन कर जमने लगी थी। विंडशील्ड स्वतः साफ करने के लिए गाड़ी के वाइपर तरल रसायन फेंक रहे थे, पर सामने रोड दिखाई नहीं दे रहा था। सोचा गाड़ी रोक कर आगे-पीछे के काँच, हेडलाइट व साइड ग्लास और गाड़ी के चारों ओर जमा बर्फ साफ कर ले। गाड़ी बंद करके ब्रश निकाला और सारी बर्फ हटायी। ताजी बर्फ फिर से जम रही थी पर उसे हटाने के लिए वाइपर पर्याप्त थे।

गाड़ी के हर हिस्से से बर्फ हटा कर फिर से गाड़ी में आ गयी वह। गाड़ी चालू करने के पहले हाथों को गरम करना जरूरी था। उँगलियाँ अकड़ गयी थीं। कुछ पल दास्ताने हटाकर हाथों को मलना शुरू किया। शरीर में भी ठंड घुस गयी थी। कँपकँपी जारी थी। गाड़ी स्टार्ट कर राहत की साँस लेने ही वाली थी कि उसे महसूस हुआ गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई- “ये क्या हुआ!” दोबारा स्टार्ट करने की कोशिश की। फिर वही हल्की-सी क्लिक। इंजिन से चालू होने की कोई आवाज नहीं। बार-बार स्टार्ट बटन दबाती रही पर गाड़ी उस जिद्दी बच्चे की तरह मौन खड़ी रही जिसका मन हो तो चले, न हो तो कह दे कि मुझे उठा कर चलो। सोफी एकटक गाड़ी के उस बटन को घूर रही थी जो खामोश हो गया था।

कई संभावनाओं का एक साथ आक्रमण होने लगा। इस तरह गाड़ी स्टार्ट न होने का मतलब है, बैटरी बैठ गयी! इस समय कार की बैटरी का डेड होना, एक तरह से सोफी का डेड होना है। फोन को देखा ताकि हेल्पलाइन को फोन कर सके। नंबर तलाश ही रही थी कि फोन की स्क्रीन चली गयी। यह भी डेड हो गया! बैटरी चार्ज ही नहीं हुई। किसी को मदद के लिए बुला नहीं सकती। अब क्या करे! आशंकाओं के पुलिंदे सामने थे जो एक के बाद एक, नयी तह के साथ खुलते जा रहे थे। सबसे बड़ी खतरे की घंटी दिमाग में बज रही थी- “अब कोई शक नहीं कि आज इस सर्द रात में यह कार उसकी कब्रगाह बन जाएगी!”

पीछे की सीट पर रखे कंबल में पूरी तरह खुद को ढँक कर सिमट गयी। इसके अलावा कोई और मौत होती तो फिर भी आसान होती लेकिन इस सर्दी में शरीर का बर्फ की सिल्ली बनने की त्रासदी झेलना किसी नर्क से कम नहीं था। लगा जैसे उसने खुद को मौत के हवाले कर दिया। शरीर के हर अंग को कंबल में लपेटने के बावजूद ठंड का तीखापन बढ़ गया था। कुछ ही मिनटों में बाहर की सर्द, तीखी, चीरती हुई ठंड ने गाड़ी की हीटिंग को अपने काबू में कर लिया। ठिठुरन चालू हो गयी थी। दाँत बजने लगे थे। धीरे-धीरे हाथ की उँगलियाँ फ्रिज़ होने लगी थीं। पैर में बूट थे इसलिए पैरों में अपेक्षाकृत सिहरन कम थी। इस बियाबान में दूर-दूर तक किसी और कार के इस समय आने की उम्मीद नहीं थी।

मौत का आगमन पल-पल करीब होते हुए शरीर को शिथिल करता जा रहा था। अब बचने की उम्मीद छोड़ते हुए, वह अपने प्रियजनों को याद कर रही थी- “मेरी मौत की खबर न जाने कब मिलेगी उन्हें। कैसे लाश को यहाँ से ले जाएँगे। या फिर बर्फ के भीतर दबा शरीर सिकुड़ कर रह जाएगा।” एक खामोश मौत की आहट कानों को सुनायी दे रही थी। कान सचमुच कुछ सुन रहे थे। आहट स्पष्ट थी। ऐसी तो मौत की आवाज नहीं होती! पहला अनुभव है, क्या पता ऐसी ही होती हो! कान सतर्क हुए। दिमाग को संदेश मिला- “यह तो किसी गाड़ी की आवाज है।” शिराओं में जीवन झाँकने लगा। पीछे से आती किसी गाड़ी की हेडलाइट दिखाई दी। मन किया कि रोककर मदद माँगे लेकिन फिर लगा कि न जाने कौन हो। अभी तो ठंड में मरना है, इसके बाद और न जाने किस तकलीफ से गुजर कर मरना होगा। मौत का भय तो था ही, एक और मुसीबत का भय सवार हो गया। कंबल में और सिमट गयी ताकि गुजरने वाली कार यह सोचकर निकल जाए कि अंदर कोई नहीं है। वह साँस रोके उस कार के जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। तभी गाड़ी पर जोर से ब्रेक लगे व चरर-चर करके रुक गयी।

किसी ने कार के दरवाजे पर थप-थप किया। कोई न कोई खतरा है; यह कार वाला रुका क्यों? यह जो भी है, आधी रात का एक और बवंडर ही है! वह साँस रोके पड़ी रही। बगैर हिले-डुले। 

“हलो, मैं मदद कर सकता हूँ, दरवाजा खोलो।”

वह चुप रही।

“मैंने तुम्हें देखा है। तुम यहाँ फ्रिज़ हो जाओगे। डरो मत।”

अब कोई विकल्प नहीं था। वह जैसे-तैसे दरवाजा खोल कर बोली – “मेरी बैटरी डेड है, फोन भी डेड है और मैं डेड होने वाली हूँ। तुम जाओ।”

“मैं तुम्हारी गाड़ी को जंप स्टार्ट दे सकता हूँ।”

सोफी के बगैर कुछ कहे वह आगंतुक उसकी गाड़ी का बोनट खोलने लगा। वह ठंड से ठिठुर रहा था और वही हालत सोफी की भी थी। सिर्फ बोलने के लिए मुँह खुला था, बाकी सब कुछ ढँका था। बोलने के साथ ही मुँह से ढेर सारी भाप निकल जाती। दोनों काँप रहे थे। सोफी की कंपकंपी उससे कई गुना अधिक थी। ठंड और डर का मिला-जुला हमला था। उसने जम्प स्टार्ट दिया। कहा- “अब गाड़ी बंद न करना, इंजिन चालू रखना। मैं तुम्हारे पीछे चलता हूँ।

“तुम जाओ। मैं ठीक हूँ। फोन भी लगा देती हूँ चार्ज पर।”    

“मौसम बहुत खराब है। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। तुम्हारी गाड़ी फिर रुक सकती है अगर आधा घंटा लगातार न चली तो।”

वह सोफी के पीछे चल रहा था। दोनों की गाड़ियाँ धीमी गति से रेंग रही थीं। जरा भी तेज करते तो फिसलने का डर था। सौ की स्पीड वाले रोड पर वे बीस की स्पीड से गाड़ी चला रहे थे। ऐसा सफर जिसका अंत पता नहीं था। इसी तरह चलना था। सोफी का डर बढ़ता रहा- जरूर किसी भी क्षण आगे गाड़ी लाकर वह मुझे रोकेगा। और फिर...!

इतने मोटे हैट-मफलर के बीच पता नहीं चल रहा था कि यह आगंतुक कौन है, कैसा है, बस मुँह से आवाज आती थी। अभी दस मिनट भी नहीं चले थे कि फिर से उसने साइड में आकर हार्न दिया और गाड़ी रोकने के लिए इशारा किया। अकेली लड़की का डर फिर से फुँफकारने लगा। हाथ-पैर फूलने लगे। ब्रेक बहुत मुश्किल से लगा। डर अब कई गुना बढ़कर मौत से ज्यादा विकराल नजर आ रहा था। गाड़ी न रोकने की हिम्मत नहीं कर पायी वह। 

वह गाड़ी से बाहर नहीं आया, साइड में लाकर खिड़की खोलने का इशारा किया। खिड़की खोल कर चिल्लाते हुए कहा- “दस मिनट में एक सर्विस एरिया आ रहा है। मैं वहाँ से गर्म काफी लेता हूँ। तुम गाड़ी बंद मत करना, पार्किंग लॉट में मेरी प्रतीक्षा करना।”

सोफी ने गर्दन हिलायी। सचमुच गला शुष्क था। कॉफी मिलना जितना सुखद था उससे कहीं बड़ा संदेह था, उसके किसी षडयंत्र का। न जाने इसके मन में क्या है! शक था कि अभी यह कॉफी के लिए दरवाजा खुलवाएगा और घुस आएगा अंदर, कुछ मिला न दे कॉफी में! आसपास बर्फ के अलावा कुछ था ही नहीं। किसे बुलाएगी मदद के लिए। उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। वह बहुत जल्दी दो कॉफी लेकर आ गया। शायद मशीन थी कॉफी के लिए। इस सर्द रात में कॉफी हाउस में कोई कैसे मिलता! वह कॉफी का कप पकड़ा कर चला गया। 

डर के मारे कॉफी, कॉफी नहीं कुछ और पेय लग रही थी। बेस्वाद। एकबारगी लगा कि इसमें कुछ मिला दिया हो उसे बेहोश करने के लिए। ठीक भी है, बेहोश हो जाएगी तो किसी यातना को महसूस नहीं करेगी। वह पीती रही। कॉफी की गर्माहट रत्ती भर मदद कर रही थी। चलने का इशारा मिला तो फिर से दोनों एक दूसरे के पीछे थे। वह अपनी गाड़ी सोफी से ज्यादा धीमी गति से ड्राइव कर रहा था। पीछे जो चलना था।

अन्यमनस्क-सी सोफी की ठंड से सिहरन अब थम गयी थी। गाड़ी की हीटिंग ने ठंड का प्रकोप कुछ हद तक कम किया था। डर का प्रकोप तेज गति से बढ़ता जा रहा था। दो गाड़ियाँ चल रही थीं। खामोश सड़क पर, घुप्प अंधेरे के साए में। फिस्स-फिस्स आवाज करते वाइपर, काँच पर जमते बर्फ के कणों को लगातार हटा रहे थे। पुन: दस मिनट चले होंगे कि एक बार फिर से उसने रुकने का इशारा किया। 

इस बार थरथरा गयी सोफी। प्राण गले में थे और घिग्घी बंध रही थी। इस आगंतुक ने पक्का कर लिया है कि शिकार अब शिकंजे में है। लड़की का बेहोश होना तय है। सोफी ने सोचा- “मैं तो पूरे होशो हवास में हूँ। कॉफी पीने से एनर्जी मिली है, न कि कोई नशा।” असमंजस में देखा, उसने अपनी गाड़ी को ठीक वैसे ही रोका साइड में, और चिल्ला कर कहा- “तुम्हारी गाड़ी की पीछे की एक लाइट काम नहीं कर रही है। धीरे चलो।”

और वापस सोफी की गाड़ी के पीछे चलने लगा। इस बार दस मिनट की अवधि लंबी हो गयी थी। सोफी ने मिरर से देखा, वह अभी भी पीछे वैसे ही चल रहा था। मिनट-दर-मिनट आगे बढ़ती गाड़ी जैसे बरसों का सफर तय कर रही थी। किसी नए ड्रायवर की तरह डगमग करते हाथ किसी तरह गाड़ी को नियंत्रित किए हुए थे।

एक बार फिर से उसकी गाड़ी साइड में आ गयी। उसी अंदाज में गाड़ी रोक कर कहा- “अब तुम्हारी बैटरी ठीक रहेगी। अब मैं निकलता हूँ।” और वह अपनी गाड़ी सोफी से आगे लेकर, हाथ हिलाकर चला गया।

हतप्रभ-सी सोफी ने हाथ हिलाकर उसे विदा दी, जिसका नोटिस शायद ही उसने लिया हो। धन्यवाद भी कहा, जो वहीं जम गया था। जाते हुए उसकी गाड़ी किसी देवदूत के विमान की तरह लग रही थी, जो आकाश से उतरा था और एक लड़की के जीवन की बुझती आग में ईंधन डाल कर वापस चला गया था। शरीर की सिहरन थम गयी थी।

घात की एक लंबी रात अपने इतिश्री को पहुँची। इधर पौ फटने का संकेत भी मिलने लगा। हिमपात अब थका-थका-सा घर लौटता प्रतीत होता था। आगे के रास्तों पर दूर, नमक डालने वाले ट्रकों की बत्तियाँ चमकती दिखाई दे रही थीं। शहर के करीब होने के आसार नजर आ रहे थे। मौत के खौफ से मुक्ति मिलने की देर थी कि सोफी को भूख-प्यास सबका भान होने लगा। घंटों से कुछ खाया नहीं था। धीमी गति से चलती गाड़ी को एक हाथ से नियंत्रित करते हुए उसका दूसरा हाथ, साथ की सीट पर रखी खाने की चीजें टटोलने लगा ताकि उसके शरीर की बैटरी भी चलती रहे।

उसकी आँखों के सामने एक के बाद एक, बैटरी के कई रूप अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे- कार की बैटरी, फोन की बैटरी, उसकी खुद की भी; और खास तौर से उस अनजान फरिश्ते की, जो अपनी मदद की बैटरी से उम्र भर के लिए एक सुखद, ऊर्जामयी अहसास छोड़ गया था। एक बार फिर उससे मिलने के लिए सोफी का मन उतावला होने लगा ताकि नजर भर उसे देख सके; पैरों ने तुरंत गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।  

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4 Total Review

डॉ. शबनम आलम

26 July 2024

वाकई! बहुत सुंदर कहानी! अक्सर विषम परिस्थितियों में खुदा किसी न किसी को फरिश्ता बना कर भेज देता है। यह कहानी एक और सीख देती है कि, अभी भी अच्छे लोग इस दुनिया में हैं।

R

Rakesh C Narayan

17 July 2024

सोफी का अनुभव हर उस व्यक्ति का अनुभव है जिसने इस तरह की विषम प्रस्थिति का सामना किया है पर लेखिका ने इस को शब्द से अभिव्यक्त किया।सजीव वर्णन के लिए लेखिका को साधुवाद।

M

Mamta tyagi

15 July 2024

बहुत सुंदर कहानी ! पढ़ते पढ़ते लगा जैसे हम ख़ुद जम रहे हों । एक बार कनाडा जाते समय हमारे साथ कुछ ऐसा ही होने लगा था परंतु बैट्री डेड होने से पहले ही क़िस्मत से पीट्सबर्ग में होटल मिल गया था । अत्यंत सजीव वर्णन ! हार्दिक बधाई ।

M

Mamta tyagi

15 July 2024

बहुत सुंदर कहानी ! पढ़ते पढ़ते लगा जैसे हम ख़ुद जम रहे हों । एक बार कनाडा जाते समय हमारे साथ कुछ ऐसा ही होने लगा था परंतु बैट्री डेड होने से पहले ही क़िस्मत से पीट्सबर्ग में होटल मिल गया था । अत्यंत सजीव वर्णन ! हार्दिक बधाई ।

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रचनाकार परिचय

हंसा दीप

ईमेल : hansadeep8@gmail.com

निवास : टोरोन्टो (कनाडा)

नाम- डॉ० हंसा दीप
जन्मतिथि- 17 जुलाई, 1958
जन्मस्थान- मेघनगर, जिला झाबुआ, मध्यप्रदेश
लेखन विधा- कथा-उपन्यास
शिक्षा- एम.ए., पीएच.डी.
सम्प्रति- यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत।
प्रकाशन- लोक साहित्य पर पुस्तक: “सौंधवाड़ी लोक धरोहर”
उपन्यास: “बंद मुट्ठी”, “कुबेर”, “केसरिया बालम” एवं “काँच के घर”।
उपन्यास “बंद मुट्ठी” गुजराती भाषा में अनूदित। केसरिया बालम मराठी भाषा में अनूदित।
कहानी संग्रह: “चश्मे अपने-अपने”, “प्रवास में आसपास”, “शत प्रतिशत”, “उम्र के शिखर पर खड़े लोग”, “छोड़ आए वो गलियाँ”, “चेहरों पर टँगी तख्तियाँ”, “मेरी पसंदीदा कहानियाँ”, “टूटी पेंसिल।”
“अधजले ठुड्डे” कहानी संग्रह वाणी प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य।
कई साझा कहानी संग्रह। हिन्दी की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं के प्रकाशन के साथ, मराठी, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी, तमिल एवं उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में अनुवादित रचनाएँ निरंतर प्रकाशित।
पंजाबी में अनूदित कहानी संग्रह: पूरन विराम तों पहिलां
मराठी में अनूदित दो कहानी संग्रह: आणि शेवटी तात्पर्य एवं मन गाभऱ्यातील शिल्पे
“हंसा दीप का उपन्यास साहित्य”: डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय
“डॉ. हंसा दीप के कृतित्व पर विमर्श” – विजय कुमार तिवारी
“हंसा दीप का कहानी साहित्य”: डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय
सम्मान-
• विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ताज लेखन प्रतियोगिता 2023 में रिपोर्ताज पुरस्कृत
• जयपुर साहित्य सम्मान, 2023 (कहानी)
• पुरवाई कथा सम्मान, 2022
• जयपुर साहित्य सम्मान, 2022 (उपन्यास)
• शत प्रतिशत कहानी संग्रह-शांति-गया सम्मान 2021
• सर्वश्रेष्ठ कहानी-कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार 2020
• किस्सागंज पुस्तक श्रृंखला भाग1 - विजेता 2019
• धनपति देवी स्मृति-कथा साहित्य सम्मान 2019
• विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस की अंतरराष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता 2019 में कहानी
पुरस्कृत
• कमलेश्वर उत्तम कथा पुरस्कार 2018
प्रसारण- भारत में आकाशवाणी इंदौर व भोपाल केंद्र से कई कहानियों व नाटकों का प्रसारण।
विशेष- कई अंग्रेज़ी फ़िल्मों के लिए हिन्दी में सब-टाइटल्स का अनुवाद।
कैनेडियन विश्वविद्यालयों में हिन्दी छात्रों के लिए अंग्रेज़ी-हिन्दी में पाठ्य-पुस्तकों के कई संस्करण प्रकाशित।
संपर्क- Dr. Hansa Deep
22 Farrell Avenue,
North York, Toronto,
ON – M2R1C8, Canada
001 647 213 1817