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इक्कीसवीं सदी की संस्कृत कथाओं में चित्रित समाज- शिखारानी

इक्कीसवीं सदी की संस्कृत कथाओं में चित्रित समाज- शिखारानी

माता पुनरपि विचारेषु निमग्ना भवति यत्‍ कदा मम नेत्रे पिहिते भवेताम् अपि च निमिषा कदा नववधूवेषं धारयेदिति ।[10]

शोधसार

कहानियों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव जीवन। जिस प्रकार मानव जीवन की उत्पत्ति के विषय में स्पष्ट रूप से कोई सर्वसम्मत प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है, उसी प्रकार कहानियों के प्रारम्भ का भी स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, किन्तु इसके कुछ उदाहरण वेदों, पुराणों, उपनिषदों, स्मृतिग्रन्थों, रामायण, महाभारत इत्यादि में प्राप्त होते हैं।     

वैदिककाल से लेकार आज तक संस्कृत कहानियों की एक विशाल परम्परा रही है। जिसमें पंचतंत्र,हितोपदेश, जातक कथाएँ आदि कहानियों के स्वरुप प्राप्त होते हैं। जिसे वर्तमान समय में पश्चिम देशों में तीन भागों में विभाजित किया गया हैं-1.फेअरी टेल्स (परियों की कहानियाँ) 2.फेबुल्स (जन्तु कथाएँ) 3.डायडेक्टिक टेल्स (उपदेशमयी कहानियाँ)। आधुनिक संस्कृत साहित्य इन तीन भागों से अधिक समृद्ध हो चुका है। उसमें आज परियों की कहानियों, जन्तु कथाओं, उपदेशमयी कथाओं से हटकर वर्तमान सामाजिक परिवेश को प्रस्तुत करने वाली कहानियाँ लिखी जा रही हैं। जिनमें प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी, प्रो.बनमाली बिश्वाल, डॉ.हर्षदेव माधव, डॉ.प्रमोद भारतीय, डॉ.प्रवीण पण्ड्या, डॉ.ऋषिराज जानी आदि की कहानियाँ प्रमुख हैं।  इस शोधपत्र में इन लेखकों की कहानियों में चित्रित वर्तमान समाज का निरूपण किया गया है।   

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की-वर्ड : वर्तमान समय, सामाजिक यथार्थ और संस्कृत का समकाल |

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मूललेख-संस्कृत में गद्यकाव्य की अनेक  विधाएँ-कथा,आख्यायिका आदि प्राचीनकाल से प्रचलित हैं। कथा विधा की परम्परा संस्कृत साहित्य में सहस्त्राब्दियों पुरानी है। वेद और पुराण के उपाख्यान भी कथाएँ हैं और संक्षिप्त हैं। पंचतन्त्र की कथाओं को कथा साहित्य की जननी माना जा सकता है। हितोपदेश, भोजप्रबन्ध, वेतालपचीसी, सिंहासनबत्तीसी, सुआबहत्तरी तथा दशकुमारचरितम् आदि अनेक ऐसी कथाएँ हैं जिन पर किसी प्रकार का विदेशी प्रभाव नहीं है। अरबी साहित्य की कहानियों (अलिफ़ लैला) का प्रभाव भी भारतीय भाषाओं पर रहा और वह अंग्रेजी अनुवादों के माध्यम से आया।  

इक्कीसवीं सदी के कुछ प्रतिनिधि कथाकार और उनकी प्रतिनिधि कथाओं (जिसमें समाज का यथार्थ निरुपित है ) का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।           

आचार्य देवर्षि कलानाथ शास्त्री के दो कथासंग्रह हैं-1.आख्यानवल्लरी 2.कथानकवल्लरी। इसमें आचार्य जी ने समकालीन समाज को अपनी कथाओं का वर्ण्यविषय बनाया है। [1]

पद्मश्री प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र की कहानियाँ भी मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ प्रस्तुत  करती हैं। [2]

डॉ.केशवचन्द्र दाश ने अपने कथासंग्रह ‘निम्नपृथिवी’(2001 ई.) में समाज में बढ़ रही संवेदनहीनता,नारी समस्या को अपनी कथाओं का विषय बनाया है। [3]

डॉ.जनार्दन हेगड़े की कहानियों में भी समाज का यथार्थ देखने को मिलता है। इनकी ‘निस्तार’ कहानी में सम्पत्ति हड़पने के लिए गिद्धदृष्टि रखने वाले अर्थ पिशाचों की मनोवृत्ति का यथार्थ चित्रण है। ‘अनभिषङ्ग’ कहानी में अस्पताल में होने वाले कदाचार को दिखाया  गया है। [4]

डॉ.एच.विश्वास की कथाओं में भी समाज का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। एच.विश्वास वस्तुत:  गार्हस्थ जीवन के कथाकार हैं। [5]

प्रो.प्रभुनाथ द्विवेदी की कथाएँ भी सामाजिक कथाएँ हैं। [6]

‘त्रीणि मित्राणि’ डॉ.हर्षदेव माधव का कथासंग्रह है। इसमें दस कथाएँ हैं। यह सन् 2021 ई. में संस्कृति प्रकाशन अहमदाबाद गुजरात से प्रकाशित है।  ‘दरिद्रब्राह्मणस्य कथा’[7] एक ऐसे ब्राह्मण की कथा है जो अपनी दरिद्रता से तंग आकर आत्महत्या करने का प्रयास करता है।       

‘मध्येस्रोत:’ कहानी प्रो.बनमाली बिश्वाल द्वारा लिखित है। यह एक ऐसी  युवती की कथा है जो अपने पति के बाहर रहने पर एक दुकानदार के झाँसे में आकर अपनी इज्जत गँवा बैठती है। 

“भोजन-समये अपरिचित: स: अतिथि: नाचम्माया यौवनोद्दीप्तं रूपं पिबन्नासीत्  स्वचक्षुर्भ्याम्। नाचम्मा यद्यपि कृष्णवर्णा काचित् सुन्दरी तु आसीत्। [8]  

इसी कथा में लेखक लिखता है कि- गरीबी पेट भरने के लिए क्या नहीं करवा देती। नाचम्मा अपनी भूख मिटाने वाले पुरुष के साथ सम्बन्ध में बनाने में कोई आपत्ति नहीं करती। 

“येन एतावद् व्ययीकृत्य तस्या: उदरक्षुधा शामिता, तस्य-क्षुधाया: उपशमनं तस्या: कर्तव्यं भवेत्।  सा निर्विवादम् तस्मै तमधिकारं दत्तवती।  कियत्कालं यावत् पत्युरनागमन-कष्टम् अविगणय्य सा यौवनसुखमुपभुक्तवती। [9]                         

‘बसंतपंचमी’ कहानी डॉ.ऋषिराज जानी द्वारा प्रणीत है। इस कहानी में एक निम्नवर्गीय परिवार की मनोदशा को दिखाया गया है कि किस प्रकार एक माँ अपनी पुत्री के विवाह के लिए सदैव चिन्‍तित रहती है।

माता पुनरपि विचारेषु निमग्ना भवति यत्‍ कदा मम नेत्रे पिहिते भवेताम् अपि च निमिषा कदा नववधूवेषं धारयेदिति ।[10]

डॉ.प्रमोद भारतीय अपने कथासंग्रह ‘सहपाठिनी’ में लिखते हैं कि यह सार्वभौम सत्य है कि-प्रेम प्रस्ताव सदैव पुरुष की ओर से होता है । लेखक भी मधुमिता के समक्ष प्रेम प्रस्ताव रखता है।

त्वं मम हृदये तु वसस्येव, इदानीमहं त्वां स्वकीयगृहेऽपि आनेतुमिच्छामि ।[11]

आजकल होटलों में क्या-क्या उपलब्ध होता है। इसका बड़ा ही सजीव वर्णन डॉ.प्रमोद भारतीय ने किया है । वासना की पूर्ति के युवक-युवती किस स्तर तक गिर गये है इसका उदाहरण इस कहानी में है।

“साहब, भवतां प्रमोदायात्र षोडसी, अष्टादशी, द्वाविंशद्वर्षीया वा-सर्वं प्राप्येत । भवतां केवलम्‍ आदेशस्य विलम्ब....|[12]

निष्कर्ष- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृत कथा साहित्य लेखन विभिन्न शैलियों और वस्तुओं को लेकर आज भी प्रवर्तमान है। डॉ.नलिनी शुक्ला, दुर्गादत्त शास्त्री, प्रो.बनमाली बिश्वाल, प्रो.नारायण दाश, डॉ.प्रमोद भारतीय, डॉ.प्रमोद नायक, डॉ.पराम्बा श्रीयोगमाया, डॉ.नवलता, डॉ.हर्षदेव माधव, डॉ.प्रवीण पण्ड्या, डॉ.ऋषिराज जानी इत्यादि की कहनियों में भी समाज का यथार्थ चित्रण  दृष्टिगोचर होता है। 

[1]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1009      

[2]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1010       

[3]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1010       

[4]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1013      

[5]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1013      

[6]संस्कृत साहित्य का समग्र इतिहास, प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी,प्रथम संस्करण 2020,पृष्ठ संख्या 1013      

[7] त्रीणि मित्राणि,डॉ.हर्षदेव माधव, संस्कृति प्रकाशन अहमदाबाद गुजरात,प्रथम संस्करण 2021 ई.,पृष्ठ संख्या 93    

[8]जिजीविषा, डॉ. वनमाली विश्वाल, पद्मजा प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 2006 ई., पृष्ठ संख्या 26  

[9]जिजीविषा, डॉ. वनमाली विश्वाल, पद्मजा प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 2006 ई., पृष्ठ संख्या 27  

[10]रक्तशाटीधारिणी माता, डॉ.ऋषिराज जानी,ग्रन्थम् प्रकाशन अहमदाबाद गुजरात,प्रथम संस्करण 2014 ई.,पृष्ठ संख्या 24      

[11]सहपाठिनी,डॉ.प्रमोद भारतीय,समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून, द्वितीय संस्करण 2022 ई.,पृष्ठ संख्या 43  

[12]सहपाठिनी,डॉ.प्रमोद भारतीय,समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून, द्वितीय संस्करण 2022 ई.,पृष्ठ संख्या 45     

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[1]रक्तशाटीधारिणी माता, डॉ.ऋषिराज जानी,ग्रन्थम् प्रकाशन अहमदाबाद गुजरात,प्रथम संस्करण 2014 ई.,पृष्ठ संख्या 24      

[1]सहपाठिनी,डॉ.प्रमोद भारतीय,समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून, द्वितीय संस्करण 2022 ई.,पृष्ठ संख्या 43  

[1]सहपाठिनी,डॉ.प्रमोद भारतीय,समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून, द्वितीय संस्करण 2022 ई.,पृष्ठ संख्या 45   

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रचनाकार परिचय

शिखारानी

ईमेल : 291shikhashikha@gmail.com

निवास : सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 07 अप्रैल, 1983  
जन्मस्थान- लखनऊ (उ.प्र.)
लेखन विधा- कविता,कहानी,नाटक, शोधपत्र, आलेख, समीक्षा अदि
शिक्षा- एम.ए.(संस्कृत),/बी.एड./एम.फिल./नेट/पीएचडी/यूपी टेट/सीटेट 
सम्प्रति- शोधछात्रा 
संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ |
प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, नाटक,  शोधपत्र प्रकाशित |
सम्मान- कालेज एवं विश्वविद्यालय स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में सम्मानित
विशेष-नृत्य, संस्कृत गायन,पेंटिंग, (आधुनिक संस्कृत साहित्य में विशेष योग्यता)
संपर्क- केशवनगर लखनऊ (स्थायी पता-ग्राम-अर्जुनपुर, पोस्ट-बेलहरी, जनपद-सुल्तानपुर उ.प्र.पिन-228133)      
मोबाइल- 6386418743