Ira
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इला प्रसाद की कहानी- दहशत

इला प्रसाद की कहानी- दहशत

केमिकल फ़ैक्ट्रियों की गोद में बसा था यह हाई स्कूल। निवेदिता को अगर कुछ परेशान करता था तो वह उन फ़ैक्ट्रियों से उठने वाला रंगीन धुँआ था या फ़िर वह दुर्गंध जो किन्हीं खास दिनों में बादलों भरे आसमान से न निकल पाने की विवशता में उसके स्कूल तक तैर आती थी। सुबह-सुबह जब वह पार्किंग एरिया में कार पार्क करके बाहर आती तो लगभग दौड़ती हुई सड़क पार करती, सीढ़ियाँ चढ़, शीशे के बड़े दरवाजे को धकेलती, स्कूल में दाखिल हो जाती, साँस रोकती हुई।

कई सालों से वह इस स्कूल में पढ़ा रही है लेकिन इतनी दहशत उसने कभी महसूस नहीं की। स्कूल सुरक्षित था! सब ओर से, अपने पूरे परिसर के साथ सुरक्षित। भारत के स्कूलों की तरह भले ही यहाँ अमेरिका में स्कूल के बाहर कोई चारदीवारी न होती हो, नियमत: स्कूल के अन्दर दो-तीन कान्स्टेबल अपनी पिस्तौल के साथ ड्यूटी पर मौजूद होते पूरे दिन और बाहर उनकी गाड़ियाँ खड़ी होतीं। सब स्कूल इस मामले में एक जैसे!

केमिकल फ़ैक्ट्रियों की गोद में बसा था यह हाई स्कूल। निवेदिता को अगर कुछ परेशान करता था तो वह उन फ़ैक्ट्रियों से उठने वाला रंगीन धुँआ था या फ़िर वह दुर्गंध जो किन्हीं खास दिनों में बादलों भरे आसमान से न निकल पाने की विवशता में उसके स्कूल तक तैर आती थी। सुबह-सुबह जब वह पार्किंग एरिया में कार पार्क करके बाहर आती तो लगभग दौड़ती हुई सड़क पार करती, सीढ़ियाँ चढ़, शीशे के बड़े दरवाजे को धकेलती, स्कूल में दाखिल हो जाती, साँस रोकती हुई……

हर टीचर की तरह उसका एक क्लास रूम था। वह पाँच सौ नम्बर हॉल वे में थी। कमरा नम्बर पाँच सौ एक। यानी हॉल वे का पहला कमरा। उस हॉल वे में आठ क्लास रूम हैं। यह हॉल वे दो सौ नम्बर हाल वे से जुड़ता है और दो सौ नम्बर हॉल वे एक सौ नम्बर हॉल वे से जिस पर प्रिंन्सिपल का आफ़िस और बाहर का प्रवेश द्वार है जो केवल अन्दर की तरफ़ खुलता है। उसे अपना कार्ड स्वाइप करना होता दरवाजा खोलने के लिए यदि वह स्कूळ आवर खत्म होने पर फ़िर से अन्दर जाना चाहती।

स्कूल का चप्पा –चप्पा क्लोज सर्किट टी वी पर था। सारे हॉल वे- जिसे हम भारत में कॉरिडोर कहते हैं- एक दूसरे से जुड़े हुए और छत पर थॊड़ी – थोड़ी दूर पर लगे कैमरे की आँख सब पर।

वह कैमरे की आँख से बाहर नहीं, इसकी समझ उसे अपने शिक्षण के पहले ही वर्ष में हो गई थी। अगले कुछ वर्षों में वह स्कूल के सारे तौर तरीकों से परिचित हो गई। अब तो सारे कोनों – मोड़ों से परिचित हो चुकी है। नियमों की जानकारी है उसे। किसी को सार्वजनिक रूप से सवालों के घेरे में नहीं लाती। स्कूळ के अनुशासन से भी परिचित है। तब भी उलझ गई है आजकल । इतने सारे प्रश्नों से घिरी रहती है अपने अन्दर। ऊपर से सहज दिखती हुई…..
“मैम अगर अगले मंगलवार को हम क्लास से वाक आउट करें तो आप हमारी उपस्थिति काट देंगी?” ब्रियाना और जेसिका ने पूछा था।

“क्यों? वाक आउट क्यों करोगे तुम?” वह चौंकी थी।
हम स्कूल के बाहर खड़े हो कर गन कन्ट्रोल की माँग करना चाहते हैं। आप जानती हैं न, फ़्लोरिडा में क्या हुआ?”
“हाँ, मालूम है मुझे। मैं जाने दूँगी तुम सबको।“

उसे अच्छा लगा था कि अमेरिका में पहली बार स्कूली बच्चे इतने सचेत, जागरूक दिख रहे हैं। अपनी बात कहने, एक जुट हो कर, सड़क पर आ रहे हैं। लड़कियाँ खुश हो गई थीं।

वह काफ़ी देर तक उनसे बातें करती रही थी। उनसे ही जाना था उसने कि शहर के अन्य स्कूलों के छात्र-छात्राएँ भी संगठित हो रहे हैं। उनका इरादा पहले अपने स्कूल के बाहर प्रदर्शन करने का है फ़िर वे सिटी में मार्च पास्ट करेंगे और अन्तिम चरण में सारे स्कूलों के बच्चे मिलकर डाउन टाउन की मुख्य सड़क पर जुलूस निकालेंगे। उसने सहमति दी थी। बिना कुछ आगे-पीछे सोचे हुए।

उसे यूँ भी यह विचित्र लगता था! आप अट्टारह की उम्र के हुए बिना सिगरेट नहीं खरीद सकते। शराब नहीं खरीद सकते। लेकिन आप बन्दूक खरीद सकते हैं। बन्दूक, आत्मरक्षा के नाम पर कोई भी, कभी भी खरीद सकता है।लाइसेंस ले सकता है। और फ़िर जाकर लोगों को गोलियों से भून सकता है। कहीं भी, कभी भी, कैसे भी। किसी के जीवन से खेलना इतना आसान है इस देश में।
एक के बाद दूसरा स्कूळ, स्कूळ शूटिंग का शिकार। बच्चॊं के बाद बड़ों का स्कूळ। वहाँ अट्टारह बच्चे मरे…यहाँ बीस…वहाँ पहली कक्षा के बच्चे गोलियों से भूने गए…यह हाई स्कूळ था…शूट करने वाला कोई छात्र ही था जो पहले उस स्कूळ में पढ़ता था या कि अभी भी पढ़ता है…बच्चों को बचाने में कोई टीचर शहीद हुआ, किसी कान्स्टेबल की जान गई….

वह खबरें पढ़ती और हैरान होती। आत्माओं की शान्ति के लिए मन ही मन प्रार्थना करती। उन माता-पिताओं के बारे में सोचती जिन्होंने सुबह अपने बच्चॊं को स्कूल छोड़ा था और वे शाम को वापस नहीं लौटे!

उस शूटर के बारे में जानना चाहती कि आखिर क्यों उसने इतने बच्चॊं को मारा! ऐसे कैसे किसी का दिमाग इतना खराब हो जाता है कि वह अपनी व्यक्तिगत समस्या का बदला इस तरह सार्वजनिक तौर पर ले! अपने को उस टीचर की जगह रख कर सोचती। यदि उस जगह पर वह होती तो…! और अन्दर से काँप जाती।

कभी आधी रात को नींद खुल जाती, फ़ायर ड्रिल, लॉक डाउन, लॉक आउट, सारे निर्देश चलते रहते सपने में। सारी सुरक्षा सम्बंधी प्रैक्टिस चलती स्कूल में आए दिन और रात में उसके सपने में। अब कोई असावधानी नहीं, कोई छूट नहीं किसी के लिए।

“नहीं ऑस्कर, तुम बाथरूम नहीं जा सकते, अभी पाँच मिनट के अंदर सायरन बजने वाला है। लॉक डाउन ड्रिल।“
“मैं तब तक वापस आ जाऊँगा।“
“नो, सॉरी। मुझे तुम्हें कक्षा के अंदर रखना है। कक्षा के दरवाजे के शीशे पर लगाया गया काला कागज पूरी तरह खोल कर चिपका दो और बत्तियाँ बंद कर देंगे हम, जैसे ही इंटरकॉम पर घोषणा होगी। तुम इतनी जल्दी वापस नहीं आ सकोगे।“
"मैम आई विल पी इन माई पैंट। इट्स अर्जेंट।(मैम मैं पैंट में पेशाब कर दूंगा। मैं अपने को नहीं रोक सकता।“
“कम ऑन। तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे। लॉक डाउन ड्रिल तुम्हें अपनी और सबकी सुरक्षा के लिए तैयार रखने के लिए है। इसे गम्भीरता से लो।“ वह चुप हो गया था।

भय, आतंक और तनाव! जब मात्र बीस मील की दूरी पर सीनियर हाई स्कूळ में शूटिंग हुई तो लगा कि मौत अब दरवाजे तक आ गई है। एक बेचैनी सबके चेहरे पर साफ़ दिखाई देती। कोई भी अपराधी हो सकता था, कोई भी व्यवस्था से विद्रोह कर सकता था। किसी भी क्षण...।

फिर कुछ दिन बाद उन्ही लड़कियों से उसे जानकारी मिली कि उनके आन्दोलन का पहला चरण असफ़ल हो गया है।

“मैम, इस एरिया के दूसरे स्कूल के टीचर्स ने कहा है कि यदि स्टूडेंट ने वाक आउट किया तो उसे सस्पेंड कर दिया जायेगा। क्या ऐसा भी नियम है?”
उसे तो इस बारे में कुछ नहीं मालूम। उसने तो जानने की कोशिश भी नहीं की और आन्दोलन को अपना समर्थन दे दिया। टीचर हैंड बुक ही पलट लिया होता, दूसरे टीचरों से पूछा होता। अब?
“हो सकता है उस स्कूल में ऐसा नियम हो। ऐसा करना स्कूल के नियमों के विरुद्ध हो।“

फिर उसने नहीं पूछा कि योजना का अगला चरण क्या है? वे आगे क्या करनेवाले हैं? वे अपने स्कूळ के स्तर पर वाकआउट करेंगे या नहीं। उन्होंने भी उसे कुछ नहीं बताया। वे शायद आपस में आगे की योजना पर विचार कर रहे थे। वह जानना चाहती थी, लेकिन अब खुलेआम चर्चा करने से डरती थी। क्या पता यह उसकी नौकरी के लिये समस्या बन जाए! उन्होंने भी उसे कुछ नहीं बतलाया उसके बाद। एक सप्ताह बीता। उसके ई मेल बाक्स में प्रिंसिपल का ई मेल था। लाल अक्षरॊं में। अनिवार्य मीटिंग की सूचना।

वह स्टूडेंट केयर क्लब की सलाहकार थी। इसलिये यह मेल उसके लिए भी था। प्रिन्सिपल ने अगली सुबह अनिवार्य, तात्कालिक मीटिंग बुलाई थी जिसमें सारे स्टूडेंट क्लब के ऑफ़ीसर, सारे गेम के कैप्टन और अन्य ऑफ़ीसर, सबकी उपस्थिति अनिवार्य थी। उसने अपने आफ़िसर्स को “रिमाइन्ड” पर तत्काल सूचना भेज दी।

“टोनी, एमिली, एडि और जेसिका, तुम सब को कल प्रिन्सिपल की मीटिंग में होना है। सुबह साढ़े आठ बजे। लाइब्रेरी में, अपर फ़्लोर।“
“यस मैम, हम जाएँगे।“ वह आश्वस्त हुई।

अगली मीटिंग टीचर्स के लिए। यह तो होना ही था। वह अन्य टीचरों के साथ, स्कूल के बाद, कैफ़ेटेरिया में थी। प्रिन्सिपल का भाषण चल रहा था- “हमने इस घटना को गम्भीरता से लिया है। एन्जेल हाई स्कूल हमारे स्कूळ से केवल बीस मील दूर है। उस स्कूळ में जो हुआ वह हमारे लिए सबक है। कल हमने सारी कक्षाओं के दरवाजों का आकस्मिक निरीक्षण किया गया। कई क्लास रूम के दरवाजे खुले पाए गए। आपसब जानते हैं, यह कानूनन ग़लत है। स्टूडेंट की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। हमें याद रखना चाहिए कि कक्षाओं के खुले दरवाज़े आक्रामक के लिये निमंत्रण हैं। खुले दरवाज़े से कोई भी, कभी भी अन्दर आ सकता है। आपको मालूम होगा कि फ़्लोरिडा में शूटर उन क्लास रूम में घुसा जिनके दरवाज़े खुले हुए थे। वे बच्चे, टीचर मरे, जिन्होंने कमरे का दरवाज़ा खुला छोड़ दिया था। क्लासरूम बच्चॊं का दूसरा घर हैं। हम अपने घरों के दरवाज़े खुले नहीं रखते, रखते हैं क्या? तो फ़िर आप क्लासरूम का दरवाज़ा खुला कैसे छोड़ देते हैं?“
निवेदता ने लक्ष्य किया, प्रिन्सिपल की आवाज़ कठॊर होती जा रही थी।
“इसीलिये न कि बार-बार दरवाज़ा खोल–बंद न करना पड़े ? स्टूडेंट बाहर जाएँगे, आपकी परमीशन से जाएँगे। बाथरूम जाएँगे, काउन्सिलर आफ़िस जाएँगे, लाइब्रेरी जाएँगे, लेकिन हर बार यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप दरवाज़ा बंद करेंगे। नब्बे मिनट का जो आपका इन्स्ट्रक्शन टाइम है, उस पूरे समय क्लासरूम का दरवाज़ा बंद रहना है। यह असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन हमें यह करना है। इतनी सी असुविधा हमें उठानी ही है, बच्चॊं की सुरक्षा के लिए।“

वह चुप सुन रही थी, सबके साथ। उसकी आँखों के आगे भारत में अपने पिता के घर का दरवाज़ा घूम रहा था। खुले कपाट और उस पर झूलता नीला रेशमी परदा। पिता घर पर हों और दरवाज़ा बंद हो, असम्भव! वे खुले दरवाज़े के सामने सोफ़े पर बैठे काम करते रहते। स्कूळ के क्लास रूम के खुले दरवाज़े, कॉलेज के दरवाज़े, सब चलचित्र की तरह सामने आ रहे थे। बंद दरवाज़े का संस्कार तो उसे मिला ही नहीं! तो क्या यह उसके संस्कारों का दोष है कि वह अपने क्लासरूम का दरवाज़ा भी खुला छोड़ देती है कभी-कभी!

प्रिंसिपल ने निश्चित ही उसके दरवाज़े का भी निरीक्षण किया होगा। उसके क्लासरूम का दरवाज़ा खुला रहा था चौथे पीरियड में। थॊड़ी-थोड़ी देर पर एक न एक स्टूडेंट, किसी न किसी वजह से बाहर जा रहा था और अटकन दरवाज़े पर लगा जाता रहा था। उसने तो उन्हें ऐसा करने से मना नहीं किया था!

उसकी नज़र के आगे अब सारे खुले दरवाज़े घूमने लगे थे। किस-किस दिन, कब-कब उसने क्लासरूम का दरवाज़ा खुला छोड़ा, याद आने लगा था। अब उसके सामने स्कूल शूटर खड़ा था, खुले दरवाज़े से उसके क्लासरूम में घुसता हुआ….।

चेहरे पर पसीना तैर आया। उसने अपना माथा एक ओर झटका, कहाँ भटक जाती है! पेपर नेपकिन से पसीना पॊंछा। पानी की बोतल से एक घूँट पानी पिया और अपने को संयत करने की कोशिश करने लगी।

प्रिन्सिपल का भाषण लम्बा खिंच गया था, लेकिन अब समाप्ति पर था-
“हमने स्कूल में सारे क्लब आफ़िसर्स की एक कमिटी बनाई है, “यूथ फ़ार यूथ’। क्लब आफ़िसर्स की ड्यूटी है कि वे अपने आस-पास की घटनाओं पर नज़र रखें। घटनाओं पर ही नहीं, वरन अपने मित्रॊं, सहपाठियों पर भी। आपस में संवाद कायम करें और एक दूसरे की समस्याओं को जानकर उन्हें दूर करने की कोशिश करें। आपस में जुड़ें और स्कूल को बेहतर बनाएँ। हम वायलेंस फ़्री स्कूल रहे हैं। रहेंगे।“
“स्टूडेंट गन कन्ट्रोल के लिये जूलुस निकालने या उसमें हिस्सा लेने का शौक न पालें। इसकी आवश्यकता नहीं है।” निवेदिता ने मन ही मन जोड़ा।
“मीटिंग के बाद कुछ क्लब प्रेसिंडेट ने मुझसे कहा- “सर, हम तो एक दूसरे का ख़याल रखेंगे लेकिन क्या हमारे टीचर हमारा ख़याल रखते हैं? यदि हम एक दिन स्कूल नहीं आते तो हमें अपने टीचर से यह क्यों नहीं सुनने को मिलता कि कहाँ थे तुम? मैंने तुम्हें मिस किया!”
“इसे अपने लिये एक लेसन की तरह लीजिए। आपके स्टूडेंट की आपसे क्या अपेक्षा है, समझिए । वे स्कूल मात्र पढ़ने के लिए नहीं आते, उन्हें आपसे स्नेहपूर्ण सदव्यवहार की उम्मीद भी है। सुरक्षा के साथ-साथ अपेक्षित होने का अहसास भी उन्हें मिलना चाहिए। हमें सब बच्चों को प्यार से बरतना है।“
मीटिंग खत्म हुई। वह क्लासरूम में वापस लौटी।

आज उसका ट्यूटोरियल का दिन नहीं था लेकिन कुछ बच्चॊं के अनुरोध को उसने रख लिया था। पिछले सप्ताह वह कई दिन अनुपस्थित रही थी, विभिन्न वजहों से। फ़िर इस सप्ताह मीटिंग। बच्चे परेशान थे। ग्यारहवी- बारहवीं के छात्र सब।अपनी जिम्मेदारी समझते थे। उन्होंने बहुत प्रतीक्षा की थी।

“मैम, आज टयूटोरियल है?” जोया ने अन्य कई बच्चों के साथ पूछा था।
“हाँ, स्कूल मीटिंग ३:३० बजे तक खत्म हो जायेगी। उसके बाद। ३:३० से ४:३० तक।“
“थैंक यू मैम।“
बच्चे आए थे। वे दरवाजे के बाहर उसका इंतजार कर रहे थे।

उसने अपने क्लासरूम के खुले दरवाज़े से आस-पास नज़र दौड़ाई थी। आज शुक्रवार है- टीजीईफ़- थैंक गाड! इट्स फ़्राइडॆ। आज सब स्कूल खत्म होते ही घर की राह लेते हैं, या फ़िर खेल के मैदान की। सारे गेम्स शुक्रवार को ही होते हैं, स्कूल के बाद। बास्केटबाल, फ़ुटबाल, सॉकर, सब। कुछ स्कूल के अंदर बने आडिटोरियम में, कुछ बाहर खेल के मैदान में। कुछ किसी और स्कूल में। लेकिन वह रुकेगी। यूँ भी उसे खेलों में खास दिलचस्पी नहीं।

पाँच सौ हॉल वे के सारे कमरों की बत्ती बन्द हो चुकी थी। यानी वही थी अकेली- इस हॉल वे में। कोई बात नहीं! वह बच्चॊं को अन्दर ले गई, क्लास रूम में। बच्चॊं ने अपने वर्क शीट पूरे करने शुरू किए। जहाँ सहायता चाहिए थी, पूछा। उसने उनके सवालों के जवाब दिए। मिस्ड कानसेप्ट फ़िर से समझाए। अन्त में मात्र राबर्ट बचा था। वह देर से आया ही था। ४:३० हो चुके थे, लेकिन उसने तय कर लिया था कि वह रुकेगी। रोबर्ट उसका सर्वश्रेष्ठ छात्र था। कुछ बीस मिनट, आधे घंटे की बात है। कमरे का दरवाज़ा खुला था, अब भी, सबके लिए।
सहसा एक चीख़ जैसे पूरी स्कूळ बिल्डिंग में गूँज गई! फ़िर रोना…।
वह चौंक गई। यह कौन रोया? एक सिहरन दौड़ गई उसके अन्दर। इतनी जोर से किस हॉल वे से आवाज़ आई? शायद दो सौ नम्बर हॉल वे से, वहीं है उसके बाजू में। उसने राबर्ट की ओर देखा। राबर्ट अपने वर्कशीट में गुम। पता नहीं उसने सुना भी या नही। रोने की आवाज़ क़रीब आती जा रही थी!

निवेदिता की साँस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। स्कूळ में लेट ड्यूटी पर रहने वाले कांस्टेबल और सहायक प्रिन्सिपल जा चुके। क्लीनिंग लेडीज ऊपर की मंजिल पर हैं। ऊपर की मंजिल पर कुछ टीचर्स के ट्यूटोरियल अब भी चल रहे होंगे लेकिन नीचे, यहाँ? कोई नहीं है यहाँ, वह अकेली है। वह अकेली है यहाँ एक स्टूडेंट के साथ, जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी है!

वह लगभग दौड़ती हुई गई और उसने झटके से क्लासरूम का दरवाजा बंद कर दिया। फ़िर दरवाजे के बीचॊंबीच बनी शीशे की खिड़की पर लगा काले कागज का परदा पूरा बंद किया। इतना करने के बाद वह थोड़ा थमी। वह नाइन वन वन काल कर सकती है। क्लास रूम में फ़ोन है। उसके पास अपना सेल फ़ोन भी है। लेकिन… लेकिन, वक़्त बहुत कम है। आवाजें पास आती लग रही हैं। ख़तरा पास आता जा रहा है। कमरे की बत्ती बुझा देनी होगी। राबर्ट को समझाना होगा, इट्स लॉकडाउन। उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था। भय उसके अन्दर भरता जा रहा था। लेकिन तब भी, तब भी…..कोई भी निर्णय लेने से पहले उसने सारी शक्ति बटोर कर, काग़ज के परदे को थोड़ा सा हटा कर, क्लासरूम के दरवाज़े के शीशे से बगल के हॉल वे में झाँकने की हिम्मत की। पसीना सिर से उठकर उसकी पलकों तक उतरा और…और पसीने से लथपथ वह ज़मीन पर धम्म से बैठ गई। पैरों में कोई ताकत नहीं बची थी।
उसके मुँह से बस इतना निकला, “ओss!”

बाहर दो सौ नम्बर हॉल वे में दो वयस्क लड़कियाँ एक प्रैम चलाती हुई, मुस्कराती हुई, उसे देखते हुए जा रही थीं। प्रैम में लेटा बच्चा गला फ़ाड़ कर रो रहा था!

(लाक डाउन१ ड्रिल, लाक आउट२ ड्रिल और फ़ायर ड्रिल३ स्कूल के अंदर खतरे की स्थिति पैदा होने पर, स्कूल के गेट से बाहर खतरे की स्थिति पैदा होने पर और स्कूळ मे आग लगने की स्थिति में कराये जाने वाले अभ्यास हैं।)

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शशि श्रीवास्तव

11 July 2024

बेहद रोमाचक पठनीय व यर्थाथ परक कहानी

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रचनाकार परिचय

इला प्रसाद

ईमेल : ila_prasad1@yahoo.com

निवास : टेक्सास(यू.एस. ए.)

जन्मस्थान- राँची, बिहार (अब झारखण्ड)
शिक्षा- पी एच डी (भौतिकी) , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय। मुंबई आई.आई.टी. में कुछ वर्षों तक शोध कार्य
संप्रति- अध्यापन (भौतिकी), संत थामस यूनिवर्सिटी , ह्यूस्टन
साहित्यिक गतिविधियाँ- पिछले डेढ़ दशक से लेखन की लगभग सभी प्रमुख विधाओं में एक साथ सक्रिय।अब तक देश-विदेश की लगभग सभी प्रमुख पत्रिकाओं - तथा वेब पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। कई संकलनों में रचनाएँ संकलित। हिंदी में विज्ञान सम्बन्धी लेखों का अनुवाद और स्वतंत्र लेखन भी| कुछ रचनाओं का मराठी, तेलुगु ,नेपाली, ओड़िया एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ है। लेखन के आरंभिक दौर में कुछ रचनाएँ इला नरेन नाम से भी प्रकाशित हुई है। रचनाओं का रेडियो से प्रसारण। कई रचनाएँ यू tube पर सुनी जा सकती हैं। शोध दिशा पत्रिका के प्रवासी रचनाकार अंक के दो खंडों का सम्पादन। कनाडा की पत्रिका हिंदी चेतना के कामिल बुल्के विशेषांक का सह सम्पादन। विश्व हिंदी न्यास, अमेरिका के निदेशक मंडल की सदस्य तथा " हिंदी जगत" पत्रिका की सह सम्पादिका। साहित्य- प्रवाह संस्था, बड़ोदरा की अमेरिका इकाई की कार्याध्यक्ष। कई अंतर राष्ट्रीय कार्यकर्मों का सञ्चालन और भागीदारी। टैगोर विश्व विद्यालय, भोपाल
द्वारा आयोजित " विश्व रंग २०२० " में अमेरिका की ओर से आयोजन समिति की सदस्य, कहानी मंच की परिकल्पना एवं सञ्चालन।
उनका लेखन प्रवासी रचनाकारों की कृतियों पर हो रहे शोध प्रबंधों का अनिवार्य अंग है। कई रचनाएँ विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
द सन्डे इंडियन द्वारा हिंदी की सर्वश्रेष्ठ १११ रचनाकारों में उल्लिखित। देश- विदेश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी साहित्य सेवा के लिए सम्मानित।
प्रकाशित कृतियाँ-
कविता संकलन- धूप का टुकड़ा, नए रास्तों पर
कहानी संकलन- इस कहानी का अंत नहीं, उस स्त्री का नाम, तुम इतना क्यों रोईं रुपाली,
आवाजों की दुनिया, मेरी चयनित कहानियाँ, जीवन कहाँ हैं।
उपन्यास- रोशनी आधी-अधूरी सी, वह दिन आएगा जरूर
सम्पादन- कहानियाँ अमेरिका से
सम्पर्क- 12934 Meadow Run
Houston, TX 77066
USA