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जयराम सिंह गौर की कहानी- अपवाद

जयराम सिंह गौर की कहानी- अपवाद

पुतान भाई बड़े मस्त अपने काम से काम रखने वाले आदमी थे। बिलावजह किसी के काम में टांग नहीं अड़ाते थे। उनका बस एक शौक था तीतर पालने का,उसके लिए बड़ा सुंदर सा पिंजड़ा बनवाए थे वह पिंजड़ा उनके साथ खेतों में भी रहता था। जब वह कानपुर आते या कहीं रिश्तेदारी में जाते तो अपनी भाभी को सौंप कर आते थे। इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई अमल नहीं था। पर किसी की दुःख तकलीफ में अपनी जान लगा देते थे।

आज पुतान भाई का छोटा भतीजा रज्जू डाकखाने के काम से मुझसे मिलने मेरे दफ्तर में आया। उसके मुड़े हुए सिर को देख कर उससे पूछा,‘सर क्यों मुड़ा है?’
‘चाचा नहीं रहे।’
‘कौन?’
‘पुतान चाचा।’
‘कैसे, क्या हुआ था?’
‘कुछ नहीं चाचा, रात को खा-पी के सोए सबेरे नहीं उठे, जब उन्हें जगाने गए तो पता लगा वह नहीं रहे।’
‘तुमने इस बात की मुझे खबर क्यों नहीं दी?’
‘चाचा यह तौ गलती हुइगय। ग्यारह तारीख को उनकी तेरहवीं है, अम्मा कह रहीं थीं कि आप ब्राम्हण हैं शायद आने में परहेज करें पर खबर करना जरूरी है।’
‘अपनी अम्मा से पूछना मेरे और पुतान भाई के बीच में ब्राम्हण यादव कभी आया था क्या? मैं तेरहवीं पर आऊँगा।’

पुतान भाई बड़े मस्त अपने काम से काम रखने वाले आदमी थे। बिलावजह किसी के काम में टांग नहीं अड़ाते थे। उनका बस एक शौक था तीतर पालने का,उसके लिए बड़ा सुंदर सा पिंजड़ा बनवाए थे वह पिंजड़ा उनके साथ खेतों में भी रहता था। जब वह कानपुर आते या कहीं रिश्तेदारी में जाते तो अपनी भाभी को सौंप कर आते थे। इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई अमल नहीं था। पर किसी की दुःख तकलीफ में अपनी जान लगा देते थे। फाग की महफिलों की वह जान हुआ करते थे। उन्हें सैकड़ों फाग,बिरहा और देवी गीत आते थे और मौके पर होने वाली महफिलों में खूब गाते थे। उन्होंने अपना विवाह नहीं किया था।

एक बार उनसे पूछा,‘भाई तुमने विवाह क्यों नहीं किया?’

‘बबुआ भइय्या के मरंय के बाद उनके लरिकन-बिटियन का पालंय का रहय,विवाह कर लेतेन तौ जाने कइस मेहरिया आवत, भैया के बच्चन केर जिंदगी खराब न हुइ जाती।’
‘तुम्हार भौजी तुम्हें विवाह के रोकी थीं?’
‘ ना बबुआ ना। उइ तौ अपनी मामा की बिटिया ते हमार ब्याह करावा चहती रहंय। यह तौ तुम जनतय हौ कि भइया और हमरी उमिर मा बहुत फरक आय,अम्मा के न रहंय के बाद भौजी ने हमय अपने लरिका की तरह पाला है, यू हम कइसे भूल जाई। फिर बबुआ कउन कनउज की पाटी(कन्नौज का राज) रहय जेहिकी खातिर परिवार बढ़उतें।’ उन्होंने अपने कान में हाथ लगाते हुए कहा।

उस दिन से उनका सम्मान मेरी निगाहों में और बढ़ गया था। पुतान भाई मेरी खेती बटाई पर करते थे। उनके पास केवल तीन बीघे अपनी जाती जमीन थी। उस जमीन से तो उनका परिवार चल नहीं सकता था मेरी खेती मिल जाने से उनका काम आराम से चल जाता था। वह बड़े मितव्ययी थे और भविष्य के लिए सोचने वाले थे। उन्होंने चार भैंसे पाल रखीं थी जिनका दूध-घी भी बेंच लेते थे। इसी बचत से उन्होंने दो बीघा खेत भी ले लिए थे। वह घी देने महीने में एक बार जरूर कानपुर आते थे। मैं उनका फालतू घी अपने दोस्तों को बिकवा दिया करता था। मैं उन्हें गाँव से शहर आने जाने का किसी न किसी रूप में किराया दे दिया करते थे। जब भी शहर आते दो चार दिन जरूर रुकते और गंगा नहाने बिठूर जरूर जाते। मेरे बच्चों तथा मेरी रिश्तेदारी में वह काफी लोक प्रिय थे। जब फसल पर भुट्टा, गन्ना आदि लाते तो सब को देने चले जाते। वह सायकिल से ही विठूर और मेरी रिश्तेदारियों में जाते थे, वहाँ उनका खूब स्वागत होता था।

एक बार उन्होंने पूछा,’बबुआ, यह सायकिल बच्चा लोग चलावत हंय का?’
मैंने पूछा,‘क्यों,क्या बात है?’
‘कुछ नांही अइसन।’
‘नहीं नहीं कुछ बात तो है।’
‘हम सोचित रहंय कि खाली होय तौ यहिका गाँव लेत जाई।’
‘हाँ लेते जाव, पर यह पुरानी क्योंतुम्हें नई दिलवा देते हैं।’
‘नाईं बबुआ यहय ठीक रही।’

मैंने उसके टायर-ट्यूब बदला दिए। पुतान भाई उसी सायकिल से गाँव चले गए। अब जब भी गाँव से आते वह सायकिल पर सामान लाद कर चले आते। कई बार उन्हें रोका भी पर वह कहाँ मानने वाले थे। एक बार वह बताने लगे कि अब तो सायकिल है न जाने कितने बार वह पैदल आए हैें। उनके रहते मुझे कभी भी गाँव की चीज की कमी नहीं हुई। घी-तेल वह हर महीने लेकर आते थे। फसल की सब चीजें हम लोगों को निर्बाध रूप से मिलती रहती थीं। वह गाँव में रहने के कारण यह नहीं भूल पाए थे कि मैं ब्राम्हण हूँ और वह यादव हैं।

एक दिन मेरे बड़े लड़के ने उनसे पूछा,‘चाचा आप बाटी बना लेते हैं?’

‘काहे पूछेव?’
‘अरे खाना है और क्या?’
‘हमरी छुई खा लेहव?’
‘क्यों नहीं खा लेंगे?’
‘अरे बबुआ हम अहिर आहिन, तुम पंडित आव।’
‘चाचा इतने दिन से आप मेरे घर आ रहे हो कभी आपको मेरे यहाँ आपके प्रति ऐसा व्यवहार दिखा जिससे आप को लगा हो कि हम लोग ब्राम्हण हैं और आप यादव हैं।’
‘नाहीं बबुआ कबौं नहीं।’ उन्होंने ने अपने कानों में हाथ लगाते हुए कहा।
‘तो फिर आज बाटी का प्रोग्राम हो जाए।’

मुझे आज तक याद है एक दिन वे मेरे हर चक की तथा अपने खेत की मिट्टी लेकर आ गए। मैंने पूछा,‘इसका क्या होगा?’
वह बोले,‘बबुआ एक दिना पत्थर कालेज की टीम गाँव आई रहय, उनने बताओ कि माटी की जांच करंय के बाद अगर जांच के हिसाब से खाद डारी जाय तौ अउर नीक पैदावार होई।’

मुझे उनकी समझदारी पर गर्व हुआ। मैं उनको लेकर एग्रीकल्चर कालेज गया और मृदा विभाग में जांच के लिए मिट्टी देदी। तीसरे दिन रिर्पोट मिल गई। उनके साथ गाँव जाकर रिर्पोट के अनुसार खादें दिलवा दीं। उस साल पुतान भाई के प्रयास से खूब अच्छी पैदावार हुई।

एक दिन एक पत्र लेकर फिर आगए। पत्र उनके नाम से एग्रीकल्चर कालेज से आया था, जिसमें उन्हें एक गोष्ठी में शामिल होने के लिए कहा गया था। उन्होंने मुझसे पूछा,‘बबुआ का करंय का परी?’
‘वहाँ एक खेती संबंधी मीटिंग होगी, उसमें तुम्हे खेती संबंधी नई-नई जानकारी दी जाएंगी।’
‘कुछ खर्चा-पानी होई का?’
‘न भाई,चाय-पानी करायंेगे और खाना भी खिलाएंगे।’
‘सच्ची?’
‘हाँ बिल्कुल सच्ची।’
‘फिर तौ बहुत नीक है, पर बबुआ तुम्हू साथय चलेव, तब हम चलिबे।’

मैं भी गया। वहाँ के विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारियों से मैं चमत्कृत था। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधावों का किसान इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहा है। वहाँ पुतान भाई ने भी अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए कुछ सवाल पूछे। यह देख मुझे अच्छा लगा। मैंने उनकी तारीफ भी की। उस गोष्ठी में शामिल होकर पुतान भाई बहुत संतुष्ट दिखे।

घर आकर उनसे पूछा,‘ तुम्हें कौन सी बात सबसे अच्छी लगी?’

‘आरगनिक खाद अउर सब्जी की खेती।’
‘तो फिर शुरू की जाय।’
‘देखव बबुआ, यह सब होई तुम्हरे नाम ते।’
‘ठीक है पर सब कुछ तुम्हीं करोगे। अगले महीने सात तारीख से एक ट्रेनिंग होगी उसको तुम्हें लेना पड़ेगा, मैं भी तुम्हारे साथ रहूँगा।’

ट्रेनिंग के बाद गाँव में आर्गेनिक खाद का काम शुरू हुआ। एग्रीकल्चर काॅलेज के विशेषज्ञ आए और प्रोजेक्ट तैय्यार करने में काफी मदद की और सरकार ने सब्सिडी भी दी। पुतान भाई बड़े फर्टाइल दिमाग के आदमी थे। उन्होंने सब्जी की खेती शुरू की। शुरुवात उन्होंने एक बीघा टमाटर लगा के की। उसमें उन्होंने अच्छा पैसा कमाया। उन्होंने एक आदमीे रख लिया था जो फेरी लगा कर गाँव और पास के गाँवो में बेच आता था। परिणाम अच्छा देख कर उनकी हिम्मत बढ़ी। एक बार वह अपने भाई के ससुराल गए वहाँ पतली मिर्ची की खेती देख कर उनके मन में भी मिर्ची की खेती करने की चाह जगी और वह वहाँ से मेरे यहाँ आए और मिर्ची की खेती की बाबत बताया। मैंने कहा ठीक है करो। उन्होंने दो बीघा मिर्ची से शुरुवात की।

एक बार मैं गाँव गया, तो मालूम हुआ कि पुतान भाई आज कल चक पर ही ट्यूबवेल के कमरे में सोते हैं। मैं चक पर गया तो वह मिले। मैंने कहा,‘तुम चक पर सोते हैं?’
‘हाँ बबुआ।’
‘तुम्हें डर नहीं लगता।’
‘डर कइस।’
‘अरे हार में अकेले रहते हो और कहते हो डर कइस।’
‘बबुआ सब कोऊ अपने अपने चक पर सोवत हैं, फिर सब्जी की खेती आय वहिका ताकंय तौ परिहय।’
‘तो कोई एक और सझियार कर लेव।’
‘ना बबुआ, ज्यादा जोगी मढ़ी उजार, हम अकेलय ठीक हन।’
‘फिर एक काम करते हैं, यहाँ एक कमरा बनवाते हैं। तुम रूरा से ठेकेदार को बुला लाओ।’

वह उसी दिन ठेकेदार को बुला लाए। मैंने उसे नीचे एक गोदाम और उसके ऊपर एक कमरा और जीना भीतर से बनाने के लिए कहा। दो महीने में कमरा बन के तैय्यार हो गया। वह मुझे बुलाने आए। मैं उनके साथ गाँव गया। बाकायदे पुतान भाई नें हवन कराया, इस तरह उसका गृह प्रवेश हुआ। पुतान भाई गोदाम बन जाने से बहुत संतुष्ट दिखे। उन्होंने बताया कि हजारों रुपए का भूसा हर साल आँधी बयारी में उड़ जाता था अब नहीं उड़ेगा। उस रात मैं भी चक पर ही सोया। नई जगह होने के कारण रात में ठीक से नींद नहीं आई। रात भर सियारों, भेड़ियों और जाने किन-किन जानवरों की आवाजें सुनता रहा। पुतान भाई मस्त सोते रहे।

मिर्ची में आशातीत लाभ हुआ। अब तो उनके विचारों के पंख लग गए। अब उन्होंने सीताराम काछी को भी सझियार बना लिया और बैंगन, गोभी, पत्ता गोभी,प्याज, लहसुन आदि की खेती होने लगी। सब्जी की खेती की आमदनी देख कर मैं चमत्कृत था। आॅर्गनिक खाद का प्रयोग हो रहा था, फालतू खाद सब बिक जाती थी। पुतान भाई कानपुर आए थे और मुझसे कुछ कहना चाहते थे पर मारे संकोच के कुछ कह नहीं पा रहे थे।

मेरे लड़के ने बताया कि पुतान चाचा आपसे कुछ कहना चाहते हैं। मैंने उनसे पूछा,‘क्या बात भाई तुम क्या कहना चाहते हो?’

‘बबुआ बुरा न मानेव, हम सोचत रहन कि हमरे पास ट्रेक्टर हुइ जाय तौ ठीक रहय।’
‘बस, ठीक है ट्रेक्टर तो आ जाएगा पर किश्तें आप को भरनी पड़ेंगी।’
‘वहिकी चिंता न करौ।’
‘ट्रेक्टर चलाएगा कौन?’
‘लरिकऊ चला लें हय।’
‘फिर ठीक है।’

बैंक से फाइनेंस करवाके ट्रेक्टर आ गया। पुतान भाई के काम में पंख लग गए। मुझे किश्तों के लिए कभी नहीं सोचना पड़ा। पुतान भाई समय पर सब किश्तें भरते रहे। इतना ही नहीं उन्होंने ट्राली,थ्रेशर वगैरह सब कर लिए। अब वह अपनी खेती के अतिरिक्त दूसरों की खेती भी जोतने लगे,भाड़ा भी ढोने लगे, सब्जी बेचने के लिए दूर के बाजारों में जाने लगे।

मेरी सेवा निवृत्ति के दिन वह कानपुर आए थे। बच्चों ने उस दिन एक कार्यक्रम रखा था जिसकी भनक मुझे नहीं थी, उसी कार्यक्रम में उन्हें भी बच्चों ने बुलाया था। घर आकर देखा की दरवाजे पर टेंट लगा हुआ है, हलवाई खाना बना रहा है। मैंने अपने बेटे से पूछा,‘आज क्या है?’
‘अरे आज आप रिटाॅयर हुए हैं क्या हम लोगों को सेलीब्रेट नहीं करना चाहिए था।’
‘अरे मुझे बता देते तो मैं भी अपने लोगों को बुला लेता।’
‘आप परेशान न हों, मैंने आपके सब लोगों को बुला लिया है।’
दूसरे दिन पुतान भाई ने मुझसे पूछा,‘रिटायर होंय मा तो काफी पइसा मिलिहय।’
‘ठीक कहते हो।’
‘हाँ देखेव न तौ हसेव न गुस्सा होएव तौ एक बात कही।’
‘हाँ कहो।’
‘किसुनपुर मा हमार मौसी के लरिका का अपनी ससुरारी मा अच्छी खासी खेती मिलगय है। वह अपनी खेती बेचो चाहत है।’
‘तो?’
‘वहिके खेत सब सड़क के किनारे हैं थोड़े दिन बाद उनकी कीमत बहुत बाढ़ि जई।’
‘तो?’
‘हम सोचत हन कि तुम वहिका लिखा लेव।’
मैं उनका मुँह देखने लगा। सोचने लगा पुतान भाई किसान हैं और उनके हिसाब से लैंड इन्वेस्टमेंट से अच्छा कुछ होता नहीं है।मेरा बड़ा बेटा मेरे पास बैठा था, उसने मुझसे कहा,‘आप को चाचा के प्रस्ताव पर सोचना चाहिए।’
‘ठीक है, पुतान भाई आप अपने मौसी के लड़के को यहाँ ला सकते हो।’
‘हाँ बबुआ।’
‘पापा एक बात कहें।’ मेरे बेटे ने कहा।
‘हाँ कहो।’
’मैं चाचा को लेकर गाड़ी से चला जाता हूँ, इनके भाई को लेता आऊँगा और खेत भी देखता आऊँगा।’
‘यह ठीक रहेगा।’

दूसरे दिन बेटा पुतान भाई को लेकर किशनपुर मे खेत भी देख आया और उनके भाई को लेकर आगया मेरे बेटे ने खेत की बड़ी तारीफ की, मैंने बेटे का मन देख कर पंद्रह लाख में सौदा तय कर दिया। उनका अनुमान बिल्कुल सही निकला, उस पंद्रह लाख की खेती की कीमत आज पचास लाख के ऊपर हो गई है।

मुझे याद आ रहा है कि मैंने लड़के की शादी में उन्हें निमंत्रण दिया था, वह हफ्ते भर पहले अपनी भाभी के साथ आगए थे। उनकी भाभी ने शादी का सारा काम सम्हाल लिया था। यह लग ही नहीं रहा था कि वह मेरे सझियार हैं। लगता था कि वह मेरे आत्मीय हैं। जब शादी में उन्हें और उनकी भाभी को नए कपड़े दिलाए गए थे तो वह दोनों लोग बहुत भावुक हो गए थे। उनकी भाभी ने मुझसे कहा था,‘बबुआ हम लोगन का कपड़ा काहे दिहेव, हम ठहरे बूढ़ पुरान हमार तौ अइसन काम चल जात।’
‘तुम्हारे भतीजे की शादी है, तुम पुराना कपड़ा पहिनोगी।’ यह सुन कर उनकी आँखे पनीली हो गईं थीं।

बड़े उत्साह से उन लोगों ने शादी में भाग लिया था। बरात में पुतान भाई खूब नाचे थे। विवाह के बाद चलते समय उनके भतीजे-भतीजी को भी कपड़े दिए गए। वह दोनों प्राणी बड़े अभिभूत थे।

मेरी विचार तंद्रा तब टूटी जब बेटे ने कहा,‘पापा आप अभी तैय्यार नहीं हुए गाँव नहीं चलना है क्या? आज पुतान चाचा की तेरहवीं है।’
‘अरे हाँ, चलना क्यों नहीं।’

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शशि श्रीवास्तव

11 July 2024

ग्रामीण जीवन की सोधी मिट्टी की खुशबू से रची बसी रचना

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रचनाकार परिचय

 जयराम सिंह गौर

ईमेल : jairamsinghgaur28@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

 
जन्मतिथि-12 जुलाई 1943
जन्मस्थान- ग्राम व पोस्ट रेरी जनपद कानपुर (देहात)
प्रकाशन-
कथा संग्रह-1- ‘मेरे गाँव का किंग एडवर्ड’ (2012),
2- ‘मंडी’ (2016)
3-‘एक टुकड़ा जमीन  (2020),
4-‘अलगोजा और अन्य कहानियाँ’ (2021)
5-‘झरबेरी के सूखे बेर’(2021)
उपन्यास- 1-‘अपने-अपने रास्ते’ (2020)
2-‘गढ़ी छोर’(2021)
3-‘मुझे सब याद है’(2022)
काव्यकृति-1-‘ये महकती शाम’(2018)
सम्मान- 1-‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार’  (2016)
2-माध्यम साहित्यिक संस्थान कानपुर का श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान              (2017)
3-‘आगमन साहित्य शिरोमणि सम्मान-2018
संपर्क-180/12 बाबूपुरवा कालोनी,किदवईनगर,पोस्ट- टी.पी.नगर,कानपुर-208023
मोबाइल- 9451547042,7355744763